सफ़र

इस्लामी कालेंडर का दूसरा महीना ‘सफ़र’ है| सफ़र, मुहर्रम माह के बाद आता है| कुछ इस्लामी विद्वानों का कहना है कि, मक्का खाली होने से (लोग यात्रा के लिए निकलते थे), इस माह को यह नाम दिया गया| इसका एक और कारण यह भी कहा जाता है कि, लोग इस माह में दूसरे वर्ग के लोगों पर आक्रमण करके, उन लोगों का सारा धन लूट लेते थे| [लिसान अल अरब – इब्न अल मंधूर, भाग 4, सफा 462-463]

इसी कारण ‘सफ़र अल मकान’, अर्थात खाली घर मुहावरा प्रचलित हुआ| ‘सफ्रुन’ या ‘सिफ्रुन’ का अर्थ खाली होना है| जब अरब के लोग देखे कि इस माह में कई अपराध हो रहे है और लोग मारे जा रहे है और घर खाली हो रहे है, तो उन्होंने ने इस माह को बद शगुनी से जोड़ दिया| जबकि उन्हें अपने दुष्कर्म तथा गुनाहों पर नज़र डालना चाहिए था| अल्लाहु ताला फरमाते है कि, हर इंसान की दुर्दशा का कारण वह स्वयं, अर्थात उसके कुकर्म होते है|

विषय सूची

भ्रम

इस माह के बारे में लोगों के भीतर कई भ्रम है| बद शगुनी को इस माह से जोड़ देते है| और स्वयं उसका हल भी निकाल लेते है| इस माह में शादी नहीं करते, चूजे का मटर लोगों में बांटते है, ताकि उनके ऊपर की बालाएं दूसरों पर चली जाये, गेहू के 365 गोले बनाकर पानी में छोड़ते है, ताकि उनकी बालाएं टल जाये और उनके धन में समृध्धि हो, सूरा मुज़म्मिल 313 बार पढ़ते है, मृतक लोगों के लिए इस माह को बहुत बुरा समझते है, प्रत्येक तौर पर इस माह के 13 तारीख (तेरा तेज़ी) को बहुत बुरा मानते है| इस्लाम में इन सब गलत बातों का कोई आधार नहीं है| जब अल्लाह ने सब दिनों को बनाया है, तब उनमे कुछ बुरे दिन कैसे हो सकते है?     

 

खुरआन

“और हम ने रात्रि तथा दिन को दो प्रतीक बनाया, फिर रात्रि के प्रतीक को हम ने अन्धकार बनाया तथा दिन के प्रतीक को प्रकाशयुक्त, ताकि तुम अपने पालनहार के अनुग्रह (जीविका) की खोज करो| और वर्षों तथा हिसाब की गिनती जानो, तथा हम ने प्रत्येक चीज़ का सविस्तार वर्णन कर दिया|” [खुरआन सूरा इसरा 17:12]

“(ऐ नबी!) लोग आपसे चन्द्रमा के (घटने बढ़ने) के विषय में प्रश्न करते है| कह दे : इस से लोगों को तिथियों के निर्धारण तथा हज के समय का ज्ञान होता है.........|” [खुरआन सूरा बखरा 2:189]
 

 “वास्तव में महीनों की संख्या बारह महीने है अल्लाह के लेख में जिस दिन से उसने आकाशों तथा धरती की रचना की है............|” [खुरआन सूरा तौबा 9:36]
 

 “जो आपदा आती है वह अल्लाह ही की अनुमति से आती है| तथा जो अल्लाह पर ईमान लाये तो वह मार्ग दर्शन देता है उस के दिल को| तथा अल्लाह प्रत्येक चीज़ को जनता है|” [खुरआन सूरा तघाबुन 64:11]

 

हदीस

अबू हुरैरा रजिअल्लाहुअन्हु ने उल्लेख किया : अल्लाह के रसूल मुहम्मद फरमाते है : “अल्लाहु ताला ने कहा, ‘आदम की संतान ज़माने को कोसती है, इस से मुझे बहुत कष्ट होत है : मेरे हाथो में हर चीज़ है और मै दिन और रात को निकालता हूँ|” [सहीह बुखारी 4875 (vol 6:351)]

 

चारित्रिक सन्दर्भ – अरब लोगों की जाहिलियत  

 

अरब के लोग सफ़र के माह के बारे में दो बड़े गुनाह के दोषी थे| पहला गुनाह यह था कि वह लोग इस माह को आगे पीछे करते थे और दूसरा गुनाह यह था कि इस माह के बारे में वह भ्रम में थे| अल्लाह ने एक वर्ष में बारह महीने बनाये, उनमे चार महीने पवित्र है| इन महीनो की पवित्रता की मर्यादा का ध्यान रखते हुए, इन महीनो में युध्ध करने से रोका गया| यह माह है : जुल कदा, जुल हिज्जाह, मुहर्रम और रजब|

 

“वास्तव में महीनो की संख्या बारह महीने है अल्लाह के लेख में जिस दिन से उसने आकाशों तथा धरती की रचना की है| उन में से चार हराम (सम्मानित) महीने है| यही सीधा धर्म है| अतः अपने प्राणों पर अत्याचार न करो.......” [खुरआन सूरा तौबा 9:36]

 

मुशरिकीन (बहुदैवाराधना करने वाले) इस विषय से अवगत थे परन्तु वे अपने अभिलाषा, इच्छा के अनुसार इस माह (सफ़र) को आगे पीछे करते थे| उदाहरण के लिए सफ़र को मुहर्रम की जगह रख देते| हज के माह में उमरा करना बहुत बड़ा गुनाह समझते थे| इस विषय पर इस्लामी विद्वाम्सों की आलोचना यह है – इब्ने अब्बास रजिअल्लाहुअन्हु ने उल्लेख किया : “हज के माह में उमरा करना, धरती पर सबसे बड़े गुनाहों में एक माना जाता था| वह लोग मुहर्रम को सफ़र में बदल देते थे, और कहते थे कि, ‘जब ऊँटों के पीट के घाव ठीक हो जाते (हज से लौटने के बाद) और ऊँटों के पाँव के निशान मिट जाते और सफ़र का माह समाप्त हो जाता (उस समय) जो उमरा करना चाहे करने की अनुमति है|”’ [सहीह बुखारी 1564 (vol 2:635) & सहीह मुस्लिम 1240]

 

इब्न अल अरबी ने कहा : “दूसरा विषय : कैसे आगे बढाया जाता था :

इब्न अब्बास ने उल्लेख किया कि, जुनादा इब्न औफ़ इब्न उमय्याह अल किनानी हर वर्ष इस समय आता था और कहता था कि, कोई भी अबू समामह पर निंदा नहीं डालेगा या उस की कही बात को टालेगा| वह एक वर्ष माहे सफ़र को पवित्र मानेगा और दूसरे वर्ष उसे पवित्र नहीं मानेगा| वह लोग हवाज़िन, घताफ़ान और बनी सुलैम के साथ थे|   

 

दूसरे उल्लेख के प्रकार वह ऐसा कहता था, “हम मुहर्रम को आगे लाये और सफ़र को विलम्ब कर दिए|” अगले वर्ष वह ऐसा कहता था, “हम सफ़र को पवित्र मानेंगे और मुहर्रम को विलम्ब कर देंगे|”

 

पवित्र माह को विलम्ब करना

 (पवित्र माह) को विलम्ब करना अविश्वास में वृध्धि करता है| वह लोग दो वर्ष हज जुल हिज्जाह माह में करते थे, फिर दो वर्ष मुहर्रम में करते थे, फिर दो वर्ष सफ़र के माह में करते थे| वह लोग हर दो वर्ष में हज की माह को बदलते थे| यह उस समय तक होता रहा जब अबू बकर रजिअल्लाहुअन्हु ने हज जुल खादा में किये थे| उसके उपरांत अल्लाह के रसूल मुहम्मद ने जुल हिज्जाह के माह में हज किये| अल्लाह के रसूल मुहम्मद अपने धर्मोपदेश में फरमाते है, “ज़माना (एक चक्कर) बीत चुका है और अल्लाह ताला ने स्वर्ग व नर्क को जिस दिन बनाया था वह घडी आ चुकी है|”  [इस हदीस के उल्लेखकर्ता (रावी) इब्न अब्बास रजिअल्लाहुअन्हु है, यह हदीस सहीह है, सहीह अबी दावूद 1947]     


अल्लाह के रसूल मुहम्मद ने फ़रमाया : ‘ऐ लोगों, मेरी बात ध्यान से सुनो, मुझे यकीन नहीं की हम इस जगह फिर दोबारा मिलेंगे| ऐ लोगों, तुम्हारा खून और तुम्हारी संपत्ति प्रलय दिन तक के लिए तुम पर हराम (पवित्र) कर दी गयी- यह दिन, यह माह और यह प्रदेश जिस तरह पवित्र है| तुम अपने पालनहार से मिलोगे और वह तुम्हारे कर्मों के बारे में पूछेगा|
मै ने सन्देश (दैव वाणी) पहुंचा दी| जिसे भी जो ज़िम्मेदारी दी गयी, वह उसे निभाए|  


हर तरह की रिबा (सूद) मिटा दी गयी है| तुम जो धन दिए हो उसे वापस ले सकते हो, लोगों के साथ अन्याय मत कीजिये, अल्लाह तुम पर अन्याय नहीं करेगा| अल्लाह ने रिबा (सूद) को हराम (निषेध) किया| अब्बास इब्न अब्दुल मुत्तलिब का सूद अंत कर दिया गया| जाहिलियत के ज़माने के खून के बदले माफ़ कर दिए गए| पहली हत्या जिन का खून माफ़ किया जा रहा है वह है- इब्न रबीअ इब्न अल हारिस इब्न अब्दुल मुत्तलिब| वह बनू लैंथ में हुदैल द्वारा मारे गए|” जाहिलिय के दौर का पहला खून माफ़ यही था|    


“ऐ लोगों, शैतान की पूजा निषेध है, परन्तु तुम जब उसकी इच्छा के अनुसार चलते हो तो वह खुश होता है| इसलिए धार्मिक विषयों में उस से चौकन्ना रहना चाहिए| पवित्र (हराम) माह को विलंबित करना अविश्वास में वृध्धि करता है| इस से अविश्वासी गुमराह हो जाता है| वक़्त का एक चक्कर पूरा हो चुका और अल्लाह ने जिस दिन यह धरती और आकाश बनाया, वह दिन आ गया| अल्लाह के पास महीनों की संख्या 12 है, उनमे चार पवित्र (हराम) महीने है, तीन लगातार है और रजब है जो जुमादा और शाबान के बीच में आती है....|” [अहकाम अल खुरआन 2/503-504]

 

इस्लामी विद्वाम्सों का दृष्टिकोण

अबू हुरैरा रजिअल्लाहुअन्हु ने उल्लेख किया : अल्लाह के रसूल मुहम्मद फरमाते है : “ ‘अदवा’ (कोई भी व्याधी अल्लाह के अनुमति के बिना दूसरों को नहीं लगती) नहीं है, कोई बुरा शगुन (परिंदों से) नहीं है, ‘हामह’ भी नहीं है, सफ़र के माह में (बुरा शगुन) नहीं है, और कोढ़ की व्याधी वाले से दूर ऐसा भागो, जैसा शेर को देखकर भागते हो|” [सहीह बुखारी 5707(vol 7:608) & सहीह मुस्लिम 2220]

 

शेक इब्न उसैमिन रहिमहुल्लाह ने कहा : ‘सफ़र’ शब्द को कई तरीके से उपयोग किया गया|

·         पहले इसे माह सफ़र में उपयोग करते है, जिस माह को अरब के लोग अपशगुन मानते थे|
 

·         दूसरा इसे ऊँटों के पेट की व्याधी के लिए प्रयोग करते थे, यह व्याधी एक ऊँट से दूसरे ऊँट को लगती थी| इसे ‘अदवा’ (संक्रामक) माना जाता था|


 

·         तीसरा इसे माह सफ़र के लिए उपयोग करते थे, अर्थात पवित्र (हराम) माह को आगे पीछे करते थे| एक वर्ष सफ़र को पवित्र मानते, और दूसरे वर्ष उसे पवित्र न मानते थे|

 

इस बारे में सबसे सही राइ यह है कि, समय का इंसानी जीवन पर कोई असर नहीं होता| अल्लाह ने कभी ऐसा नहीं चाहा| दूसरे माह की तरह ही, माह सफ़र में भी अच्छा व बुरा दोनों हो सकते है|


यदि इस माह के 25 तारीक को एक प्रत्येक आचरण पूरा करने से – इस माह का अपशगुन समाप्त हो गया कहा जाये, तो यह बात गलत है| यह एक नवाचार (बिदत) है|

 

इस माह के गलतफहमियां, भ्रम तथा नवाचार (बिदात) 

 

·         माहे सफ़र में हुई विवाह असफल होती है|इन्हें मालूम होना चाहिए कि, अली रजिअल्लाहुअन्हु ने अल्लाह के रसूल मुहम्मद के छोटी बेटी फातिमा रजिअल्लाहुअन्हा से इसी माह ‘सफ़र’ (2 हिजरी) में शादी की|
 

·         कई मुस्लिम अभी भी यह समझते है कि इस माह सफ़र में बद शगुनी और बुराई है| उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि सारे महीने और सारे दिन अल्लाह ने बनाये है और सब बराबर है|
 

·         कोई भी नया कारोबार इस माह में आरम्भ करने से नष्ट होता है|
 

·         इस माह के पहले तेरा (13) दिन बुरे है|
 

·         जो भी इस माह के 13 तारीक को कुछ दान करेगा, वह इसके बुराई से बचेगा|
 

·         इस माह के अंतिम बुधवार को उत्सव मनाना और छुट्टी करना|
 

कुछ लोगों को यह ग़लत फहमी है कि, इस्लाम में माहे सफ़र के अंतिम बुधवार को जुहार नमाज़ के बाद 4 रकात नफिल नमाज़, एक तस्लीम के साथ पढ़ना चाहिए| हर रकात में सूरा फातिहा, सूरा कौसर 17 बार, सूरा इखलास 50 बार, सूरा फलख और सूरा नास एक बार पढ़ना चाहिए| इस तरह हर रकात पढ़ी जाती है और फिर सलाम फेरा जाता है| सलाम फेरने के बाद, “.....और अल्लाह अपना आदेश पूरा करके रहता है| परन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं है|” [खुरआन सूरा यूसुफ 12:21] – इस आयत को 360 बार और जवहर अल कमाल 3 बार पढ़ने के बाद, “पवित्र है आप का पालनहार गौरव का स्वामी उस बात से जो वह बना रहे है| तथा सलाम है रसूल पर| तथा सभी प्रशंसा अल्लाह सर्वलोक के पालनहार के लिए है|” [खुरआन सूरा साफ्फात 37:180-182] – यह आयत पढ़कर अंत करना चाहिए|  


 

इसके बाद वह लोग गरीबों को दान करते है और कहते है कि, ऐसा करने से माहे सफ़र में अंतिम बुधवार को आने वाले बुरायियों का अंत हो जाता है|


यह लोग कहते है कि, हर वर्ष 320,000 विपत्तियाँ आती है, और यह सब माहे सफ़र के अंतिम बुधवार को ही आती है| इसलिए वह दिन सारे वर्ष का कठिन दिन होता है| परन्तु जो लोग ऊपर बताये गए तारीखे से नमाज़ पढ़ते है, उन पर आपत्ति नहीं आती और जो लोग नहीं पढ़ते, उन पर आपत्ति आती है| उनमे छोटे बच्चे भी होते है, क्या यह सही बात है?


इस्लामी विद्वाम्सों ने इसका उत्तर इस तरह दिया :

सारी प्रशंसायें केवल अल्लाह के लिए है और अल्लाह के रसूल मुहम्मद पर, आपके घर वालों पर और आपके अनुयायी (सहाबा) पर अल्लाह की शांति हो|   


इस तरह की नमाज़ पढ़ने की खुरआन में या हदीस में कोई दलील (साक्ष्य) नहीं है| और न ही सहाबा ने या उनके बाद के नेक लोगों ने ऐसा किया| यह एक नवाचार (बिदत) है|
 

अल्लाह के रसूल मुहम्मद फरमाते है, “जो भी हमारे दीन (इस्लाम) में जो चीज़ नहीं है, उस कार्य को करता है तो वह स्वीकार नहीं की जायेगी|” और वह फरमाते है, “जो हमारे दीन (इस्लाम) में नयी चीज़ उत्पन्न करता है, जो वास्तव में नहीं है, वह कार्य स्वीकार नहीं किया जायेगा|” [सुनन इब्न माजा vol 1:14]


इस नमाज़ को जो भी अल्लाह के रसूल मुहम्मद से या साहबा से साबित करता है, वह घोर अपराध का दोषी माना जाता है| अल्लाह ताला उसे इस झूट की सज़ा देगा| [फतावा अल लजनह अल दाइमह, 2/354]   

 

सफ़र के माह मेंअल्लाह के रसूल मुहम्मद  के जीवन के प्रमुख घटनाये                   

इब्न अल खय्यिम ने कहा :

मख़शी इब्न अम्र अल दुमारी से शांति संधि

अल्लाह के रसूल मुहम्मद युध्ध की तयारी के लिए अल अबवा (जो वद्दान के नाम से भी जाना जाता है) गए| ऐसा पहली बार हुआ जब अल्लाह के रसूल मुहम्मद किसी युध्ध की तय्यारी में स्वयं भाग लिए| हिजरत के एक साल बाद सफ़र के महीने में यह संघटना हुई| इसका ध्वज सफ़ेद रंग का था और इसे हमजा इब्न अब्दुल मुत्तलिब ने पकड़ा था|  अल्लाह के रसूल मुहम्मद ने अपने अनुपस्थिति में मदीना की निगरानी का भार साद इब्न उबादह को सौंपा| अल्लाह के रसूल मुहम्मद केवल मुहाजिरीन के साथ गए| खुरैश के काफिले को रोकने गए थे, लेकिन कोई युध्ध नहीं हुआ|  

इस संघटना के समय अल्लाह के रसूल मुहम्मद मख्शीय इब्न अल दुमारी, जो उस समय बनी दुमरह का सरदार था, उस से शांति संधि की| इस संधि में यह था कि, वह एक दूसरे पर आक्रमण नहीं करेंगे और न ही किसी शत्रु को उनके विरुध्ध साथ देंगे| यह संधि लिखी गयी थी, उस समय अल्लाह के रसूल मुहम्मद पंद्रह रातों तक बाहर थे| [ज़ाद अल माद, 3/164,165]

 

फातिमा रजिअल्लाहुअन्हा की शादी

फातिमा रजिअल्लाहुअन्हा अल्लाह के रसूल मुहम्मद बेटियों में सबसे छोटे थे| उनकी शादी अली इब्न अबी तालिब रजिअल्लाहुअन्हु से सफ़र के महीने में 2 AH को हुई| आपकी चार संतान थी – अल हसन, अल हुसैन, उम्मे कुलसुम और जैनब| अल्लाह के रसूल मुहम्मद के मृत्यू के 6 महीने बाद ही फातिमा रजिअल्लाहुअन्हा की मृत्यू हो गयी| अल्लाह के रसूल मुहम्मद के मृत्यू के बाद आप के परिवार से मिलने वाली वह पहली व्यक्ति थी| [अल बिदाया वल निहाया – इब्न कसीर, 5/321; ज़ाद अल माद - इब्न अल खय्यिम, 1/100]  

 

बिर माऊनह (माऊनह का कुआ) युध्ध

इसी सफ़र के महीने 4 AH में बिर माऊनह युध्ध हुआ|

अबू बरा आमिर इब्न अल मालिक (जो मुलाइब अल असिन्नह से भी जाने जाते थे) अल्लाह के रसूल मुहम्मद के पास मदीना आये| अल्लाह के रसूल मुहम्मद ने उन्हें इस्लाम की दावत दी, वह स्वीकार नहीं किये, लेकिन इस्लाम से दूर भी नहीं थे| उसने कहा, “ऐ अल्लाह के रसूल! आप अपने कुछ अनुयायी (सहाबा) को नज्द के इलाके में क्यों नहीं भेजते, ताकि वह लोगों को इस्लाम की दावत दे? मुझे आशा है कि वहां के लोग इस्लाम स्वीकार करेंगे|” अल्लाह के रसूल मुहम्मद ने फ़रमाया, “मुझे डर है कि कई नज्द के लोग उन्हें हानी न पहुंचाए|” अबू बरा ने कहा, “उन्हें (सहाबा) को मै सुरक्षा दूंगा|” इब्न इस्हाख के उल्लेखन के प्रकार अल्लाह के रसूल मुहम्मद ने उनके साथ चालीस लोगों को भेजा| अल सहीह के उल्लेखन के प्रकार सत्तर लोग थे| अल सहीह का उल्लेखन सही है|    

उसने बनी साईदह के अल मुन्धिर इब्न अम्र को उनका सरदार बनाया| वह लोग सबसे अच्छे मुस्लिम थे| वह लोग सफ़र के लिए निकले और बिर माऊनह के पास जाकर रुके| बिर माऊनह बनी आमिर और हर्रा (बनी सुलैम की लावा ज़मीन) के बीच थी, जहाँ वे ठहरे| उसके बाद वे लोग उम्म सुलैम के भाई, हराम इब्न मिल्हान को अल्लाह के रसूल मुहम्मद के लेख के साथ अल्लाह के दुश्मन आमिर इब्न अल तुफैल के पास भेजा|

उसने लेख को नहीं देखा और अपने आदमी से कहा कि आये हुए व्यक्ति को भाले से उसके पीठ में भोक दे| और जब भोका गया तो उसने कहा, “मै विजयी हो गया, काबा के अल्लाह के दया से (यानी मुझे शहादत मिल गयी)|”
तब अल्लाह के दुश्मन ने बनू आमिर से पूरे मुसलमानों को खतल करने को कहा| लेकिन वह ऐसा नहीं किये, क्योंकि सारे मुसलमान अबू बरा की सुरक्षा में थे| ताब उसने बनी सुलैम, असियह राल और धक्वान को यह कार्य सौंपा| उनलोगों ने अल्लाह के रसूल मुहम्मद के अनुयायियों को चारों तरफ से घेर लिया और सब को खतम कर दिया| केवल काब इब्न ज़ैद इब्न अल नज्जार ही बचे रहे, वह घायल हो गए|  वह खंदख के युध्ध तक जीवित रहे और उस युध्ध में मारे गए| अम्र इब्न उमय्यह अल दुमारी और अल मुन्धिर इब्न उख्बा इब्न आमिर मुसलमानों के जानवरों की देख भाल कर रहे थे| उन्होंने देखा कि एक पक्षी युध्ध भूमि पर मंडरा रही है| अल मुन्धिर इब्न मुहम्मद आये और मुशरिकों से लड़ते हुए मारे गए| अम्र इब्न उमय्याह अल दुमारी खैदी बनाये गए| उन्होंने जब कहा कि वे मुदार से है तो, आमिर ने उनके सर के बाल काटकर उन्हें छोड़ दिया|  

अम्र इब्न उमय्यह वापस होते हुए अल खरखरा प्रदेश में एक झाड़ के नीचे लेट गए| बनी किलाब के दो लोग आकर वही लेट गए| और जब वह लोग सो गए तो अम्र ने उन दोनों की हत्या कर दी| उन्होंने सोचा कि वह अपने साथी (सहाबा) का बदला ले लिए| लेकिन उनलोगों की अल्लाह के रसूल मुहम्मद  के साथ संधि हुई थी, जिसका उनको पता नहीं था| जब वे मदीना लौटे तो उन्होंने जो कुछ हुआ, अल्लाह के रसूल मुहम्मद को बताया| तब अल्लाह के रसूल मुहम्मद ने ऐसा कहा, “तुमने ऐसे दो लोगों की हत्या की है, जिनका मै दियह (रक्त दान) ज़रूर करूंगा|” [ज़ाद अल माद 3/246-248]

 

खैबर की यात्रा की

इब्न अल खय्यिम ने कहा : मै जब खैबर के लिए निकला, तो वह मुहर्रम माह का अंत था, आरम्भ नहीं| और उन्होंने सफ़र के माह में उस पर विजय पाया|” [ज़ाद अल माद 3/339-340]

 

आधार

·         http://almunajjid.com/books/8273(english)
 

·         http://www.download.farhathashmi.com/dn/Portals/0/Latest-Events/Safar/home.html(english)
 

·         http://islamqa.info/en/60399(english)
 

·         http://www.a2youth.com/articles/special_months_and_times/the_month_of_safar/4(english)

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