रसूलों पर ईमान (पूर्ण विश्वास)


रसूल(رسول) यह अराबी बाषा का शब्द है जिसका अर्थ है पैग़म्बर(संदेशवाहक), भेजे गए, जो किसी चीज़ को पहुंचाने के लिये भेजा गया हो, रसूल(رسول) का बहुवचन रुसुल(رسل) आता है, यहाँ रसूल से मतलब वे महान हस्तियां हैं जिनकी ओर अल्लाह सुब्हानहु तआला ने वही(Revelation or रहस्योदघाटन) द्वारा शरीअत(धार्मिक नियम,विनियम) उतारी एवं उनकी आज्ञाकारिता करने का आदेश दिया, "रसूलों पर ईमान रखना"ईमान के अरकान(स्तम्भों) में से चौथा रुक्न(स्तम्भ) है, रसूलों पर ईमान रखना अर्थात इस बात पर ईमान रखना कि अल्लाह सुब्हानहु तआला ने अपने बन्दों(भक्तों) के मार्गदर्शन के लिये उनकी ओर रसूल भेजे, और उनके माध्यम से धर्म से संबंधित सभी सर्व वस्तुएं जैसे नियम विनियम, उचित अनुचित, सत्य असत्य ,वैध अवैध सभ कुछ सिखलाया, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं: " रसूल सललेल्लाहु अलैही वसल्लम ईमान लाए (उस चीज़ पर) जो उनकी ओर अल्लाह सुब्हानहु की ओर से उतरी और ईमान वाले भी ईमान लाए- ये सभी अल्लाह सुब्हानहु पर एवं उसके फ़रिश्तों पर एवं उसकी किताबों पर एवं उसके रसूलों पर ईमान लाए"। (अल बखंरा :२८५ )

 

अल्लाह सुब्हानहु तआला ने सब से पहले आदम अलैहिस्सलाम(इन पर अल्लाह की सलामती हो) को धरती पर उतारा और इनके लिये खानपान तथा उन सारी चीज़ें का आयोजन किया जो जीवन बिताने के लिये आवश्यक हैं, उनकी संतान धरती में फैल गई फ़िर उनपर तथा उनकी संतान पर वही(Revelation) को उतारा तो उनमें से कुछ अल्लाह सुब्हानहु पर ईमान लाए और कुछ ने अल्लाह सुब्हानहु का इंकार किया तथा सारे रसूल जो अल्लाह सुब्हानहु द्वारा इस धरती पर आए सब ने एक ही सन्देश दिया कि एकाकी अल्लाह सुब्हानहु को मानो एवं उसी की पूजा(इबादत) करो जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं: “ हमने हर जाति में रसूल भेजा कि (लोगों) केवल अल्लाह सुब्हानहु की बंदगी करो एवं ताग़ूत(अल्लाह सुब्हानहु के सिवा वे सभी जन एवं वस्तुएं जिनकी पूजा की जाती है) से बचो तो कुछ लोगों को अल्लाह सुब्हानहु ने हिदायत(मार्गदर्शन) दी और कुछ लोगों पर गुमराही(Mislead) प्रमाणित होगई ” । (अन नहल: ३६)

 

यदि कोई रसूलों को ना मानता हो या किसी एक रसूल को ना मानता हो तो वह ऐसा है कि उसने अल्लाह सुब्हानहु तआला का इंकार किया और उसके सारे रसूलों का इंकार किया और वह काफिंर(नास्तिक) होगया क्यूंकि इनको मानना ईमान का स्तम्भ है एवं इनको बिना माने ईमान असंपूर्ण एवं अस्वीकार्य होगा, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "जो लोग अल्लाह सुब्हानहु तथा उसके रसूलों का इंकार करते हैं और जो यह चाहते हैं कि अल्लाह सुब्हानहु तथा उसके रसूलों के बीच विच्छेद करें और जो लोग कहते हैं कि कुछ रसूलों को हम मानते हैं कुछ को नहीं और चाहते हैं कि बीच का कोई रास्ता निकालें, तो यही लोग वास्तव में इंकार करने वाले हैं और इंकार करने वालों के लिये हम ने अपमानजनक यातना का निर्माण किया है" (सूरा निसा :१५१-१५२) और कहते हैं "जो व्यक्ति अल्लाह सुब्हानहु और उसके फ़रिश्तों एवं उसकी किताबों एवं  उसके रसूलों एवं खंयामत के दिन(Day of resurrection) को नकारे तो वह बहुत बड़ी गुमराही(Mislead) में जा पड़ा"।(सूरा निसा : १३६) रसूलों में सबसे पहले रसूल नूह अलैहिस्सलाम(इन पर अल्लाह की सलामती हो) और अंतिम रसूल मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम हैं, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "निसंदेह हम ने तुम्हारी ओर उसी प्रकार वही(Revelation)  भेजी जिस प्रकार नूह और उनसे पिछले पैग़म्बरों की ओर भेजी थी"। (सूरा निसा : १६३)

 

सूचि

 

क़ुरआन

अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं: "हम रसूलों को केवल शुभ-सूचना देने और डराने के लिये भेजा करते हैं फ़िर जो ईमान लाए और सुधर जाए तो इन लोगों पर कोई भयभीत नहीं और ना वे उदास होगें, तथा जो लोक हमारी आयतों को झूठा बताते हैं उनको यातना(पाप-कष्ट) पहुंचेगी  इसलिये कि वे अवज्ञा करते हैं" । (अल अनआम :४८, ४९),  और कहते हैं "निश्चयी हम आप से पहले भी बहुत से रसूल भेज चुके हैं एवं उनमें से कुछ के (वृत्तांत) तो हम ने आपको बताए ही नहीं, तथा किसी रसूल का यह सामर्थ्य नहीं था कि कोई चमत्कार अल्लाह सुब्हानहु की अनुमति के बिना लाए फ़िर जिस समय अल्लाह सुब्हानहु का आदेश आएगा तो सत्य के साथ निर्णय(फ़ैसला) करदिया जाएगा और उस समय झूठ बोलने वाले घाटे में रह जाए गें" । (सूरा ग़फ़िर :७८), और कहते हैं "आप से पहले भी हम ने केवल पुरुषों को ही पैग़म्बर बना कर भेजा जिसकी ओर हम वही(Revelation)  उतारते थे तो आप अह्ले-किताब(यहूदी और नसरानी -Jews and Christians)  से पुछ लीजिये यदि आप ना जानते हो तो, हम ने उनके ऐसे शरीर नहीं बनाए थे कि वे भोजन ना करें और ना वे सदैव रहने वाले थे, फ़िर हमने उनसे किये हुए सारे वचन सच्चे किये उन्हें और जिन जिन को हमने चाहा छुटकारा दिया और हद(मर्यादा) पार करने वालों का विनाश करदिया" । (अल अंम्बिया :७-९)

 

अल्लाह सुब्हानहु तआला ने हर जाति (nation) में रसूल भेजे

कोई जाति ऐसी नहीं रही जिसमें अल्लाह सुब्हानहु तआला ने कोई रसूल ना भेजा हो, अल्लाह सुब्हानहु तआला ने किसी रसूल को उसकी जाति की ओर एक विशेष एवं नित्य शरीअत(धार्मिक नियम,विनियम) के साथ भेजा या फ़िर किसी नबी को उससे पहले वाले रसूल की शरीअत(इस्लामी नियम,विनियम) की नवीकरण के लिये भेजा, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं “हमने हर जाति में रसूल भेजा कि (लोगों) केवल अल्लाह सुब्हानहु की बंदगी करो एवं ताग़ूत(अल्लाह सुब्हानहु के सिवा वे सभी जन एवं वस्तुएं जिनकी पूजा की जाती है) से बचो, (अन नहल: ३६), और कहते हैँ "तथा कोई जाति नहीं गुज़री मगर उसमें एक डराने वाला गुज़र चुका है" (सूरा फ़ातिर : २४), और कहते हैं " निसंदेह हम ने तौरात उतारी जिसमें मार्गदर्शन(guidance) एवं नूर(प्रकाश) है यहूदियों(Jews) में, इसी तौरात के साथ अल्लाह सुब्हानहु के मानने वाले (अंबिया अलैहिमुसस्सलाम) एवं अल्लाह वाले और विद्वान फ़ैसले किया करते थे, (अल्माएदा :४४)

 

सारे रसूल इन्सान एवं अल्लाह सुब्हानहु की सृष्टि हैं

सारे रसूल इन्सान, प्राणी एवं आश्रित जन हैं ये अल्लाह सुब्हानहु की महान सृष्टि में से हैं ,सृष्टि बनाने एवं पूज्ये जाने जैसी इनमें कोई बात नहीं होती यहाँ तक कि मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इन पर अल्लाह की रहमत और सलामती हो ) जो अल्लाह सुब्हानहु के पास प्रत्येक रसूलों के सरदार एवं सर्वश्रेष्ठ हैं इनके संबंधित अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "मैं अपने आप के लाभ हानि का भी अधिकारी नहीं हूँ मगर जो अल्लाह सुब्हानहु चाहे एवं यदि मैं परोक्ष(ग़ैब) की बात जान सकता तो बहुत कुछ भलाइयां प्राप्त करलेता और मुझे पीड़ा भी नहीं होती, मैं तो केवल डराने वाला एवं शुभ सूचना देने वाला हूँ उन लोगों के लिये जो ईमान रखते हैं"। (अल आराफ़ :१८८ ), और कहते हैं " कहदो मैं तुम्हारे लिये लाभ हानि का कुछ अधिकार नहीं रखता कहदो कि अल्लाह सुब्हानहु के यातना(पाप-कष्ट) से मुझे कोई शरण(पनाह) नहीं देसकता तथा मैं उसके सिवा कोई शरणस्थान(पनाहगाह) नहीं देखता"। (अल जिन :२१-२२), रसूलों के साथ भी सभी मानवतावादी विशेषताएँ जैसे रोग, खानपान, मृत्यु जैसी आवश्यकताऐं लगी हुई थी तो इब्राहीम अलैहिस्सलाम(इन पर अल्लाह की सलामती हो) ने अपने मानवतावादी के बारे में जो कुछ कहा उसका विवरण क़ुरआन में इस प्रकार आया कि "और जो मुझे खिलाता और पिलाता है तथा जब मैं रोगी होता हूँ तो मुझे स्वस्थ करता है और जो मुझे मारेगा फ़िर जीवित करेगा "(सूरा शुअरा :७९ -८१), इसी प्रकार मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इन पर अल्लाह की रहमत और सलामती हो ) ने कहा "मैं भी तुम्हारे तरह इन्सान हूँ, जिस प्रकार तुम भूलते हो उसी प्रकार मैं भी भूलता हूँ- तो जब मैं भूल जाऊ मुझे याद दिला दिया करो" । (सही बुख़ारी :४०१, सही मुस्लिम :५७२ )

 

सारे रसूल बंदगी के ऊँचे पद पर स्थापित थे

अल्लाह सुब्हानहु तआला ने रसूलों को बंदगी के ऊँचे पद से सम्मानित किया इसीलिये अल्लाह सुब्हानहु तआला ने क़ुरआन करीम में अनेक जगहों पर उनकी प्रशंसा की है, उदाहरण के तौर पर नूह अलैहिस्सलाम(इनपर अल्लाह की सलामती हो) के विषय में अल्लाह सुब्हानहु कहते हैं " निसंदेह नूह(हमारे) आभारी(शुक्रगुजांर) बन्दे(भकत) थे" । (अल इसरा :३ ), तथा मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इन पर अल्लाह की रहमत और सलामती हो) के संबंधित कहा कि "वह बड़ी बरकत वाला है जिसने अपने बन्दे(भकत) पर क़ुरआन उतारा ताकि पुरे संसार के लिये डराने वाला हो "। (अल फ़ुरक़ान :१), इसी प्रकार इब्राहीम, इसहाक़, एवं याक़ूब अलैहिमुस्सलाम(इन सब पर अल्लाह की सलामती हो) के बारे में कहा तथा हमारे बन्दों(भक्तों) इब्राहीम, इसहाक़, एवं याक़ूब को याद करो जो हाथों एवं आँखों वाले थे निसंदेह हमने उन्हें एक विशेष स्थान दिया अर्थात आख़िरत(विलंबित) की याद के लिये चुन लिया और निसंदेह वे हमारे कंरीब चुनिंदा बन्दों (भकतों) में से थे" (सूरा साद : ४७-४५), ईसा इब्ने मर्यम अलैहिस्सलाम(इनपर अल्लाह की सलामती हो) के बारे में कहा " वह तो हमारा एक बंदा(भक्त) है जिसपर हमने पुरस्कार किया एवं उसे बनी इसराईलके लिये एक आदर्श बना दिया"। (जुख़रुफ़ : ५९)

 

रसूलों पर ईमान लाने की ४ बातें

(१). इस बात पर ईमान लाना कि उनका रसूल होना सत्य तथा अल्लाह सुब्हानहु तआला की ओर से था , यदि कोई रसूलों को अस्वीकार करता हो या किसी एक रुसुल को अस्वीकार करता हो तो वह ऐसा है कि उसने अल्लाह सुब्हानहु तआला को नकारा और उसके साथ साथ उसके सारे रसूलों का नकारा और वह काफिंर(नास्तिक) होगया जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं " नूह की जाति ने रसूलों को झुठलाया "(सूरा शुअरा : १०५ ), यहाँ महत्त्वपूर्ण(विचारणीय) बात यह है कि इस आयत में नूह अलैहिस्सलाम(इनपर अल्लाह की सलामती हो) की जाति को सारे रसूलों को झुठलाने वाली जाति बताया गया जबकि उस समय नूह अलैहिस्सलाम(इनपर अल्लाह की सलामती हो) के सिवा कोई दूसरे रसूल उनके हाँ नहीं आए थे, इसी प्रकार जिन ईसाईयों ने मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) को झुठलाया और उनकी आज्ञाकारिता नहीं की तो वह ऐसा है कि उसने ईसा अलैहिस्सलाम(इनपर अल्लाह की सलामती हो) को भी झुठलाया एवं उनकी अवज्ञा करने वालों में से होगया क्यूंकि ईसा अलैहिस्सलाम(इनपर अल्लाह की सलामती हो) ने अपनी जाति को मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) के आने की शुभसूचना दी थी और यह शुभसूचना सुनाने का केवल यह मतलब था कि मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) उनकी ऒर अल्लाह सुब्हानहु द्वारा भेजे गए रसूल होगें और उनके माध्यम से उन लोगों का मार्गदर्शन करेगें और उन्हें गुमराहियों(mislead) से बचाएगें  ।

 

२. उन रसूलों पर विस्तृत रूप से ईमान लाना जिनके नाम हमें मालूम हैं उदाहरण के तौर पर मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो), इब्राहीम, मूसा, ईसा एवं नूह अलैहिमुस्सलाम(इन सब पर अल्लाह की सलामती हो) तथा ये पांच रसूल ऊलुल अज़्म (प्रभावशाली, मज़बूत इरादों वाले) रसूल भी हैं, क़ुरआन करीम में दो बार इनका उल्लेख आया है, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "तथा जब हमने नबियों से वचन लिया और आप(मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम) से और नूह और इब्राहीम और मूसा और मरयम के बेटे ईसा से भी"। (अल अहज़ाब :७), और कहते हैं "तुम्हारे लिये वही धर्म निर्धारित किया जिसका नूह को आदेश दिया था एवं उसी पथ की हमने आपकी ओर वही(Revelation) की थी और उसी का हमने इब्राहीम एवं मूसा एवं ईसा को आदेश दिया था कि इसी धर्म पर स्थापित(खांईम) रहो और उसमें विभाजित ना करो "। (सूरा शुअरा : १३) इन चुनिंदा रसूलों के सिवा जिनके नामों का हम ज्ञान नहीं रखते उनपर इजमालन(समस्त रूप से) ईमान लाना अनिवार्य है

 

अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "निश्चयी हम आप से पहले भी बहुत से रसूल भेज चुके हैं एवं उनमें से कुछ के (वृत्तांत) तो हम ने आपको बताए ही नहीं ”।  (सूरा ग़फ़िर :७८)

 

३. उनकी सूचनाओं को सच मानना

 

४. रसूलों में से जो रसूल हमारे पास आएं उनकी लाई हुई शरीअत(धार्मिक नियम,विनियम) के अनुसार कार्य करना, उनकी आज्ञाओं का पालन करना, हमारे लिये अल्लाह सुब्हानहु तआला ने अंतिम रसूल प्यारे नबी मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) को भेजा, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "तुम्हारे रब(Lord) की क़सम ये लोग जब तक अपने आपस के झगड़ों में आपको न्यायकर्ता(Judge) ना बनाए और जो फ़ैसला(निर्णय) आप करदें उससे अपने दिल में तंग ना हों बल्कि उसे ख़ुशी से स्वीकार कर लें तबतक मोमिन नहीं होगें"। (सूरा निसा :६५ )

 

अंम्बिया और रसूलों की गिनती

अंम्बिया और रसूल बहुत सारे हैं, ये कितने हैं अर्थात इनकी गिनती अल्लाह सुब्हानहु तआला के सिवा कोई नहीं जनता, इनमें से कुछ के बारे में अल्लाह सुब्हानहु तआला ने हमको बताया एवं कुछ रसूलों के बारे में कुछ नहीं बताया जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "और आप से पहले बहुत से रसूलों के वृत्तांत तो हम ने आपको बतादिये एवं बहुत से रसूलों  के नहीं भी बताए"। (सूरा निसा :१६४), अल्लाह सुब्हानहु तआला ने जितने भी रसूल भेजे अर्थात सारे रसूलों में से २५ का अल्लेख क़ुरआन मजीद में आया तथा वे ये हैं, आदम, इदरीस, नूह, हूद, सालेह, इब्राहीम, लूत, इस्माईल, इस्हाक़, याक़ूब, यूसुफं, शुएब, अइयूब, ज़ुलकिफ़्ल, मूसा, हारून, दावूद, सुलेमान, इल्यास, अलयसा, यूनुस, ज़करिय्या, यहया, ईसा, मुहम्मद सललेल्लाहु अलैहीम जमीआ (इन सब पर अल्लाह की  सलामती हो) ।

 

रसूलों को भेजने का प्रयोजन

अल्लाह सुब्हानहु तआला ने इंसानों में से ही अंम्बिया एवं रसूलों को चुनकर हर जाति में भेजा और उन्हें लोगों को एकाकी अल्लाह सुब्हानहु तआला को पूजने की ओर निमंत्रण करने एवं धर्म से संबंधित सभी सर्व वस्तुएं जैसे नियम विनियम, उचित अनुचित, सत्य असत्य वैध अवैध सभ कुछ सिखलाने का आदेश दिया, तथा जो व्यक्ति ईमान लाय उसे स्वर्ग की शुभ सूचना देने और जो व्यक्ति कुफ़्र(नकारे) करे उसे नरक से डराने का आदेश दिया जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "हमने हर जाति में रसूल भेजा कि (लोगों) केवल अल्लाह सुब्हानहु की बंदगी करो एवं ताग़ूत(अल्लाह सुब्हानहु के सिवा वे सभी जन एवं वस्तुएं जिनकी पूजा की जाती है) से बचो तो कुछ लोगों को अल्लाह सुब्हानहु ने हिदायत(मार्गदर्शन) दी और कुछ लोगों पर गुमराही(Mislead) प्रमाणित होगई ” । (अन नहल: ३६)

 

ऊलुल अज़्म(प्रभावशाली, मज़बूत इरादों वाले)

अल्लाह सुब्हानहु तआला ने कुछ अंम्बिया और रसूलों को कुछ पर प्राथमिकता दी है उनमें सबसे सर्वश्रेष्ठ ऊलुल अज़्म(प्रभावशाली, मज़बूत इरादों वाले) रसूल पांच हैं, वे ये हैं, इब्राहीम, नूह,मूसा, ईसा,एवं मुहम्मद अलैहिमुस्सलाम(इन सब पर अल्लाह की सलामती हो), अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं  "जबकि हमने प्रत्येक नबियों से वचन लिया एवं (विशेष रूप से) आप से(मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम) एवं नूह से एवं इब्राहीम से एवं मूसा से एवं मरयम के बेटे ईसा से, एवं हम ने उनसे (पक्का और) कड़ा वचन लिया"।(अल अहज़ाब :७), तथा ऊलुल-अज़्म (प्रभावशाली, मज़बूत इरादों वाले) रसूलों में से सर्वश्रेष्ठ रसूल मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इन पर अल्लाह की रहमत और सलामती हो)  हैं क्यूंकि इनकी विशेषता यह है कि जिस प्रकार हर नबी की एक विशेष जाति होती थी तथा वह अपनी विशेष जाति की ओर ही भेजे जाते थे परंतु मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इन पर अल्लाह की रहमत और सलामती हो) पूरे संसार एवं प्रत्येक मानवजाति की ओर भेजे गए जैसे कि अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "हमने आपको  परत्येक लोक के लिये शुभ सूचना देने वाला एवं डराने वाला बना कर भेजा परंतु बहुधा लोक नहीं जानते "।  (सबा :२८)

 

रसूल लोगों के लिये सर्वश्रेष्ठ आदर्श हैं

अंम्बिया और रसूलों को अल्लाह सुब्हानहु तआला ने चुना एवं उन्हें लोगों के लिये आदर्शस्वरूप बनाया उनकी शिक्षा की उन्हें शिष्टाचार सिखाया एवं उन्हें रसूल बना कर पूरी मानवता के लिये आदरणीय एवं सम्माननीय बनाया, उन्हें पाप-कर्म और दुष्टता से बचाया तथा चमत्कारों से उनकी सहायता की तो वे पूरी सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ और उत्तम प्राणी एवं सबसे अधिक ज्ञान रखने वाले एवं सबसे अधिक सच बोलने वाले सबसे अचछे चरित्र वाले होगए, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "तथा हमने उन्हें मार्ग दर्शक(Leader) बना दिया कि हमारे आदेश से लोगों का मार्गदर्शन करें एवं हमने उनकी ओर पुण्य के कर्मों को करने एवं नमाज़ का आयोजन करने एवं ज़कात(अनिवार्य दान) देने की वही(Revelation) की और वे सब के सब हमारे उपासक(आराधना करने वाले) बन्दे(भक्त) थे " । (अल अंम्बिया :७३), इसीलिये अल्लाह सुब्हानहु तआला ने उनकी आज्ञापालन करने का आदेश दिया , अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं " यही लोक ऐसे थे जिनको अल्लाह सुब्हानहु ने हिदायत(मार्गदर्शन) दी तो आप भी उन्हीं के ढंग पर चलिये" (अल अनआम :९० ) तथा हमारे प्यारे नबी अंतिम रसूल मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम में प्रत्येक रसूलों की विशेषताऐं एवं गुण एकत्रित करदी और हर पदार्थ में उनकी आज्ञाकारिता करने का आदेश दिया, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "निश्चयी नबी करीम(मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम) तुम्हारे लिये सर्वश्रेष्ठ आदर्श हैं हर उस व्यक्ति के लिये जो अल्लाह सुब्हानहु तआला एवं खंयामत(पुनर्जागरण) के दिन की आशा रखता हो एवं अधिकाधिक रूप से अल्लाह सुब्हानहु तआला को याद करता हो "। (अल अहज़ाब :२१ )

 

रसूलों पर ईमान लाने के लाभ

(१). अल्लाह सुब्हानहु तआला ने केवल अपने बन्दों(भक्तों) के मार्गदर्शन के लिये रसूल भेजे एवं उनके माध्यम से धर्म से संबंधित सभी सर्व वस्तुएं सिखलाई इस से अल्लाह सुब्हानहु तआला की (अपने बन्दों(भक्तों) के प्रति) कृपा एवं अत्यंत दयालुता का पता चलता है क्यूंकि केवल इंसानी बुद्धिमत्ता एवं साधारण ज्ञान के माध्यम से इन चीज़ों की मान्यता असंभव है,

(२). इस बड़ी संतुष्टि(नेअमत,delight) पर अल्लाह सुब्हानहु तआला के आभारी होना,

(३). सारे रसूल सललेल्लाहु अलैहीम जमीआ(इन सब पर अल्लाह की सलामती हो) का अत्यधिक आदर करना उनसे अधिकाधिक रूप से प्रेम करना एवं उनकी प्रशंसा करना क्यूंकि वे अल्लाह सुब्हानहु तआला के चुनिंदा एवं उपासक(आराधना करने वाले) बन्दे(भक्त) थे,  वे अल्लाह सुब्हानहु द्वारा दी गई उत्तरदायित्व को पूर्णतया के साथ निभाने वाले, मनुष्यत्व का उत्तमता से मार्गदर्शन करने वाले, हमें धर्म सिखलाने वाले एवं हमारे वास्तविक शुभचिंतक थे, अल्लाह सुब्हानहु तआला से प्रार्थना है कि अल्लाह सुब्हानहु तआला हमें हर अवस्था में उनकी आज्ञाकारिता करने तथा उनकी शिक्षण का पालन करने वालो में से बनाए । (आमीन या रब्बुल आलमीन)

 

और देखये

अरकाने ईमान(ईमान के स्तम्भ), अरकाने इस्लाम(इस्लाम के स्तम्भ), फ़रिशते(देवदूत), आसमानी किताबें, आख़िरत(विलंबित) के दिन पर ईमान(पूर्ण विश्वास) स्वर्ग, इबादत(आराधना) और अन्य;

 

संदर्भ

शरह उसूलुल ईमान: अश-शेख़ मुहम्मद बिन सालेह अलउस्मैन,   शरह उसूलुस सलासा : शेख़ मुहम्मद बिन सालेह अलउस्मैन,  उसूलुद-दीनील-इस्लामी:शेख़ मुहम्मद बिन इबराहीम

http://www.askislampedia.com/ur/wiki/-/wiki/Urdu_wiki/%D8%B1%D8%B3%D9%88%D9%84%D9%88%DA%BA+%D9%BE%D8%B1+%D8%A7%DB%8C%D9%85%D8%A7%D9%86

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