रमज़ानअल्लाह ताला ने रमज़ान के महीने को दूसरे महीनो के प्रतिकूल बहुत सारे भलाइयों और श्रेष्ठताओं से माला माल किया| इसी महीने में खुरआन अवतरित हुई| इसी महीने की अंतिम दस रात्रियों (रातों) में, वह सम्मानित रात है, ज्सिमे उपासना करना हज़ार महीनो से श्रेष्ठ है| जब रमज़ान आरम्भ होता है तो स्वर्ग के द्वार खोल दिए जाते है और नरक के द्वार बंद कर दिए जाते है| इस माह के हर रात के अंत में अल्लाह ताला अपने उन दासो (बन्दों) के पाप क्षमा करता है, जो सहीह तरीके से उपवास रखे और अल्लाह की अविधेयता से बचे रहे| तिरमिज़ी 682, इब्न माजह vol 1:1642, सुनन नसयी vol 3:2109 और इब्न खुजैमह ने उल्लेख किया : “जब रमज़ान की पहली रात आती है तो, शैतान और जिन्न को जंजीरों से बाँध दिया जाता है, नरक के द्वार बंद कर दिए जाते है, एक भी द्वार खुला नहीं रहता| स्वर्ग के द्वार खोल दिए जाते है और एक भी द्वार बंद नहीं रहता| एक पुकारने वाला कहेगा : ‘ऐ भलाई चाहने वाले, आगे बढ़ ; ऐ बुराई चाहने वाले, रुक जा|’ अल्लाह ताला जिसे चाहता है नरक की आग से बचाता है, और यह हर रात होता है|” [शेख अल्बानी ने इसे प्रमाणित किया – सहीह अल जामी : 759] उपवास (सौम, रोज़ा)सौम का अरबी अर्थ है, ‘कुछ चीज़ों से रुक जाना’| इस्लामी अर्थ है कि, ‘खाने से रुक जाना, पीने से रुक जाना, और सम्भोग से रुक जाना, सूर्योदय से सूर्यास्तमय तक, अल्लाह की प्रसन्नता के लिए’| हम उपवास क्यों रखते है, शरिया (इस्लामी कानून) में न्यायिक स्थान क्या है ?इन्सान का स्वभाव है कि, वह जानना चाहता है कि यह कार्य क्यों करे? मुस्लिम अल्लाह की प्रसन्नता के लिए करते है| वह अल्लाह को प्रसन्न उसी समय कर सकते है, जब वह अल्लाह की विधेयता करे और उसके धर्म का पालन करे| यही अल्लाह ताला का आदेश है और कोई दूसरा रास्ता उसके सिवा नहीं है| अल्लाह ताला फरमाते है : “ऐ ईमान वालो ! तुम पर रोज़े उसी प्रकार अनिवार्य कर दिए गए है, जैसे तुम से पूर्व लोगो पर अनिवार्य किये गए, ताकि तुम अल्लाह से डरो|” [खुरआन सूरा बखरह 2:183] इब्न उमर रजिअल्लाहुअन्हु ने उल्लेख किया कि, अल्लाह के रसूल ﷺने फ़रमाया : “इस्लाम के आधार 5 मूल स्तंभ है : 1 यह गवाही (साक्ष्य) देना कि, अल्लाह के सिवा कोई उपासना के योग्य नहीं और मुहम्मद ﷺअल्लाह के रसूल है| 2 नमाज़ पढ़ना (अनिवार्य नमाज़ समूह (जमात) के साथ)| 3 ज़कात देना (विधि दान)| 4 हज करना (मक्का की तीर्थ यात्रा)| 5 रमज़ान के महीने में उपवास रखना| [सहीह बुखारी vol 1:7]
उपवास कब आरम्भ करना चाहिएअबू हुरैरह रजिअल्लाहुअन्हु ने उल्लेख किया कि अल्लाह के रसूल ﷺने कहा : “जब भी तुम नया चाँद (रमज़ान का) देखते हो तो उपवास रखना आरम्भ कर दो, फिर जब नया चाँद (शव्वाल का) देखते हो तो उपवास रखना छोड़ दो, यदि आकाश में बादल हो तो (चाँद नज़र न आये तो) 30 दिन उपवास रहो|” [सहीह मुस्लिम 1081 a (book 6, hadees 2378) & सुनन नसइ vol 1:1654]
जब रमज़ान का या दूसरे महीने का चाँद देखो“अल्लाहुम्म अहिल्लहु अलैना बिल युम्नी वल ईमानी वस् सलामति वल इस्लामी रब्बी व रब्बुकल्लाह” अर्थ : ऐ अल्लाह ! हम पर इसे अनुग्रह और विश्वास (ईमान) के साथ ला, और सुरक्षा तथा इस्लाम के साथ| मेरा और तुम लोगो का पालनहार अल्लाह है| [शेख अल्बानी ने इसे प्रमाणित किया है, सुनन अत तिरमिज़ी 3451]
रमज़ान का अभिवादन करने का प्रत्येक तरीकारमज़ान का अभिवादन करने का कोई प्रत्येक तरीका नहीं है| किन्तु मुसलमान ख़ुशी से और अल्लाह को धन्यवाद देते हुए इसका स्वागत करना चाहिए| क्यों कि अल्लाह ने उन्हें रमज़ान तक जीवित रखा ताकि वह अच्छे कर्म कर सके| रमज़ान तक जीवित रहना भी अल्लाह का बड़ा अनुग्रह है| अल्लाह के रसूल ﷺअपने साथियों को इस माह के आने की शुभ सूचना देते थे और उसकी विशिष्ठता बताते थे| और यह भी बताते थे कि अल्लाह ने इस माह में उपवास रखने वालो और रात में नमाज़ पढ़ने वालो के लिए कैसे उच्च प्रतिफल रखे है| [शेख अल्बानी ने इसे प्रमाणित किया है, सुनन नसइ 2106] हर मुसलामन को इस महान माह का स्वागत शुध्ध पश्चात्ताप और उपवास की तय्यारी और खियामुल्लैल (रात की नमाज़) की तय्यारी के संकल्प से करना चाहिए|
रमज़ान मुबारक सही है, रमज़ान करीम नहींशेख उसैमिन रहिमहुल्लाह ने कहा : इस विषय में, रमज़ान करीम कहना सही नहीं है, रमज़ान मुबारक कहना सही है| क्यों कि केवल रमज़ान ही में दया या कृपा नहीं होई, अल्लाह ताला ने इस माह में इन गुणों को रखा है और इस माह को महान बनाया है|
उपवास कैसे रखे ?हम मुस्लिम लोग केवल अल्लाह ताला को प्रसन्न करने के लिए और अल्लाह के रसूल ﷺके बताये हुए तरीके के प्रकार उपवास रखते है| अल्लाह ताला ने खुरआन में कई स्थान पर यह कहा है कि, अल्लाह की विधेयता करो और रसूल ﷺकी विधेयता करो| इसलिए आप ﷺने हमें जो तरीका बताया और सहाबा (आप ﷺके साथी) ने उसे जैसे समझा, उसी प्रकार हमें उपवास रखना चाहिए| हदीस के अनुसार उपवास इस्लाम का पाँचवाँ मूल स्तंभ है| [सहीह बुखारी vol 1:7] मानसिक रूप से स्वस्थ, निरोग, तंदुरुस्त, परिपक्व मुसलिम (विश्वासी), स्त्री तथा पुरुष – सब पर उपवास अनिवार्य है| जिन्हें उपवास से छूट दी गयी, वह है – मानसिक रोगी, शारीरिक रोगी, परिपक्वता को न पहुँचे लोग (बच्चे), यात्री, जो स्त्री मासिक धर्म में हो, प्रसूति स्त्री (नवजात को जन्म देने के बाद खून बहने वाली स्त्री), बच्चों को दूध पिलाने वाली स्त्री और गर्भवति| किन्तु वह इसका परिहार (कज़ा) अदा करना चाहिए| जैसे कि, रोगी स्वस्थ होने के बाद, यात्री यात्रा पूरा करने के बाद, मासिक धर्म की स्त्री उसे पूरा करने के बाद इत्यादि|
उपवास का उद्देश्यखुरआन सूरा बखरह 2:183 आयत में उपवास को अनिवार्य करने के बाद, अल्लाह ताला ने उसका उद्देश्य भी बताया है| उस आयत के अंत में कहा गया है, “हो सकता है तुम अल्लाह से डरने वाले बनो|” हर मुसलमान को रमज़ान के महीने में उपवास रखना अनिवार्य है और यह इस्लाम के एक मूल स्तंभ है| माहे रमज़ान में इतनी विशिष्ठातायें है, जो दूसरे महीनो में नहीं होती| अल्लाह के रसूल ﷺने फ़रमाया : “जो कोई रमज़ान के उपवास पूरे विश्वास के साथ और अल्लाह ताला के प्रतिफल की आशा के साथ रखता है, उसके पिछले गुनाह (पाप) क्षमा कर दिए जायेंगे|” [सहीह बुखारी 2014 (vol 3, book 32, hadees 231]
उपवास के आवश्यक विषयउपवास के मूल स्तंभ : 1 संकल्प (निय्य) अर्थात, सच्चे मन से अल्लाह के लिए उपवास रखना| संकल्प (निय्य) ज़बान से पढ़ना आवश्यक नहीं| यह दिल से करने वाला कार्य है, जबान का महत्व नहीं| “उसका उपवास नहीं होगा, जो रात ही में संकल्प (निय्य) न कर ले|” [अबुदवूद 2454] 2 “उपवास को भंग करने वाले विषय से बचना चाहिए|” [खुरआन सूरा बखरह 2:187]
सुहूर (सहरी)सुहूर (सूर्योदय से पहले का समय) में हम कुछ खाते और पीते है, उस समय तक खाते पीते है, जब तक कि फजर की अज़ान का समय न हो जाये| अल्लाह के रसूलो ﷺने कहा : “सुहूर कीजिये, क्यों कि उसमे बरकत (अनुग्रह) है|” [सहीह बुखारी 1923 (vol 3:146] “सुहूर का खाना बरकत वाला (अनुग्रहित) है, यह ग्रंथ वालो (यहूदी और ईसाई) से अलग है| विश्वासी के लिए सब में अच्छा सुहूर खजूर है|” [अबू दावूद 2345 ; सहीह तरगीब 1/448] अधिक नहीं खाना चाहिए, क्यों कि अल्लाह के रसूल ﷺने कहा : “आदम का संतान अपने पेट को अधिक भरता है, जो बुरा है|” [जामि तिरमिज़ी vol 4:2380] उपवास को भंग करने वाले विषयकुछ कर्म ऐसे है जो रमज़ान में जानते हुए या अनजाने में करने से उपवास भंग हो जाता है और बड़ा पाप है| 1 जानते बूझते खाना या पीना| 2 सम्भोग करना| 3 जानते हुए उलटी करना| अल्लाह के रसूल ﷺने कहा : “यदि कोई भूलकर खाले या पीले तो उसे उपवास पूरा करने दो, क्यों कि अल्लाह ताला ने उसे खिलाया और पिलाया है|” [सहीह बुखारी 1933 (vol 3:154)] अल्लाह के रसूल ﷺने कहा : “जो भी अनजाने में उलटी करता है, वह बाद में उपवास रखने (कज़ा करने) की आवश्यकता नहीं है| किन्तु जो भी जान बूझ कर उलटी करता है, वह उपवास रखना (कज़ा करना) चाहिए|” [सुनन तिरमिज़ी vol 13:89] अल्लाह के रसूल ﷺने कहा : “अल्लाह ताला ने यात्री पर से, अनिवार्य उपवास तथा अनिवार्य नमाज़ का कुछ भाग उठा दिया, और गर्भवती तथा दूध पिलाने वाली महिला पर से भी उपवास उठा दिया|” [सुनन तिरमिज़ी vol 3:85]
अनैच्छिक विषय जो उपवास भंग करती हैजब भी स्त्री को रक्त (खून) दिखाई दे उपवास भंग (उसके बाद उपवास रखने से कोई प्रतिफल नहीं मिलता) हो जाता है : 1 मासिक धर्म 2 बच्चा पैदा होने के बाद खून बहना उपवास की स्थिति में अनुमतित कार्यएक मुसलमान का उपवास यह कार्य करने से भंग नहीं होता : 1 उपवासी को स्नान करने की या ठंडक के लिए पानी में डूबने की अनुमति है| 2 कोई दावा, औषधि जो पेट तक नहीं जाती या शरीर को शक्ति नहीं पहुंचाती, उसे लेने की अनुमति है (अर्थात, आँख की दवा, त्वचा की दवा आदि)| 3 सर के बाल को तेल लगाना, शरीर पर खुशबू लगाना, खुशबू सूंघना अनुमतित है| 4 जो व्यक्ति अपने आप पर काबू रख सके, वह अपनी पत्नि को छूना या चूमना अनुमतित है| [सहीह बुखारी 1927 (vol 3, book 31, हदीस 149] 5 हिजामह (cupping) या रक्त दान (blood donation) की अनुमति है| 6 वह विषय जो इन्सान के बस में न हो, जैसे थूक, लार को निगलना तथा सड़क पर की धूल आदि|
रमज़ान का उपवास भंग करने की अनुमति किसे दी गयी ?पागल व्यक्ति गर्भवती और दूध पिलाने वाली स्त्री यात्री और अस्वस्थ व्यक्ति
उपवास न रखने की अनुमति किसे है, परन्तु उपवास का हर्जाना (परिहार) देना चाहिएबड़े उमर के स्त्री तथा पुरुष, व्याधि ग्रस्त (जिनकी व्याधि कम होने की कोई संभावना न हो), और वह सारी स्थिति जिनमे इन्सान को उपवास रखना कष्ट हो| वह लोग इन उपवास की भरपाई (कज़ा) करने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु (परिहार के रूप में) एक निर्धन व्यक्ति को खाना खिलाना चाहिए, एक ‘मुदद’ खाना एक दिन के उपवास के बदले| निर्धन को धन देने से भरपाई पूरी नहीं होती, किन्तु उस स्थान का खाना, जैसे चावल आदि देना चाहिए| [अल मुन्तखा मिन फतावा अल शेख सालिह अल फौज़ान, 3/140]
रमज़ान में एक साथ 30 निर्धन को खाना खिलानाअनस रजिअल्लाहुअन्हु उपवास रखने की स्थिति में न थे| तो उन्होंने एक थाली ‘थारिद’ (मांसरस, ब्रेड, मांस) बनायी और 30 निर्धन लोगो को बुलाकर खिलाया|” [तफसीर इब्न कसीर, vol 1, पेज 498, eng translation & शेख अल्बानी रहिमहुल्लाह की इरवा उल घलील 4/21] arabic text गर्भवती और दूध पिलाने वाली स्त्री“इसी प्रकार का नियम गर्भवती और दूध पिलाने वाली स्त्री के लिए है, यदि वह अपने लिए और अपने शिशु के लिए डर हो तो| वह केवल निर्धनों को खाना खिलाना चाहिए, उपवास की भरपाई (कज़ा) करने की आवश्यकता नहीं है| सहाबा में अब्दुल्लाह इब्न अब्बास रजिअल्लाहुअन्हु का यही विचार था| इब्न उमर रजिअल्लाहुअन्हु द्वारा इब्न खुदामह ने ‘मुघ्नी 3/37’ में यही उल्लेख किया| अल बज्ज़ार ने इसके अंत में कुछ जोड़ा है : इब्न अब्बास रजिअल्लाहुअन्हु गर्भवती महिला से कहते थे कि : “तुम उन जैसे हो जो उपवास नहीं रख सकते, इसलिए तुम परिहार (फिदिया) दे दो और उपवास की भरपाई की आवश्यकता नहीं है|” [अल दारखतुनी ने इसे सहीह कहा है, अल हाफ़िज़ ने अल तल्खीस में उल्लेख किया| तफसीर इब्न कसीर में भी है – सूरा बखरह 2:184 की तफसीर में, vol 1, पेज 498, इंग्लिश अनुवाद]
इफ्तार (उपवास खोलना)अल्लाह के रसूल ﷺमग़रिब की नमाज़ स पहले अपना उपवास खोला करते थे| आप कुछ ताज़े खजूर से उपवास खोला करते थे, कभी वह उपलब्ध न होने पर सूखे खजूर से और वह भी न होने पर पानी से उपवास खोला करते थे|” [सुनन अबू दावूद 2348 & 2349, तिरमिज़ी 3:79, रियाज़ उस सालिहीन 1238 & 1239]
इफ्तार (उपवास खोलने) में जल्दी करनाइफ्तार में जल्दी करना अल्लाह के रसूल ﷺकी सुन्नत है| जल्दी करने का अर्थ यह है कि, सूर्यास्तमय के बाद देरी के बिना तुरंत इफ्तार करना चाहिए| अल्लाह के रसूल ﷺने कहा : “लोग उस समय तक अच्छे रहेंगे, जब तक वह इफ्तार करने में जल्दी करेंगे|” [सहीह बुखारी vol 3:178, सहीह मुस्लिम 2417 & रियाज़ उस सालिहीन 1233]
इफ्तार के बाद की दुआ“ज़हबज्ज़मा वबतल्लत अल उरुखा व सबत अल अजरु इंशा अल्लाह” अनुवाद : “प्याज़ समाप्त हो गयी, रगें गीली हो गयी और इंशा अल्लाह (अल्लाह चाहे तो) प्रतिफल अवश्य मिलेगा|” [सुनन अबू दावूद 2350 या अबू दावूद vol 2:765 ; दारखुतनी ने इसे हसन कहा, 2/185]
विशिष्ठताअल्लाह के रसूल ﷺने कहा : “जो कोई रमज़ान के उपवास पूरी श्रध्दा के साथ और अल्लाह के प्रतिफल की आशा के साथ रखता हो, उसके पूर्व पाप क्षमा कर दिए जायेंगे|” [सहीह बुखारी vol 1:38 & vol 3:125]
खियामुल लैल (रात की नमाज़)शरिया का स्थान ‘तरावीह’ ऐच्छिक नमाज है, जिसके द्वारा सच्चा विश्वासी अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करना चाहता है| आइशा रजिअल्लाहुअन्हा ने उल्लेख किया : अल्लाह के रसूल ﷺरात के समय मस्जिद गए और नमाज़ पढ़े, आप के साथ कुछ लोगो ने भी नमाज़ पढ़ा| चौथी रात को लोगो से मस्जिद भर गयी| किन्तु अल्लाह के रसूल ﷺबाहर नहीं आये| कुछ लोगो ने आवाज़ लगायी, ‘नमाज़’| परन्तु आप सुबह की नमाज़ (फजर) तक मस्जिद नहीं आये| जब आप ने फजर की नमाज़ समाप्त की तो लोगो की ओर पलट कर तशह्हुद ‘ला इलाह इल्लल्लाह, मुहम्मदुर रसूलुल्लाह’ पढ़ा, फिर बोले : तुम लोगो के रात का विषय मुझे पता था| मुझे डर था कि कहीं (रोज़ रात में नमाज़ पढने से) वह तुम पर अनिवार्य (फ़र्ज़) न कर दी जाये| और तुम उसे पढ़ न पाओ|” [सहीह मुस्लिम 761 b (NE 1667) & सहीह बुखारी 8:134 (6113)] अल्लाह के रसूल ﷺने रात की नमाज़ निरंतर पढने के लिए प्रोत्साहित किया| इसे रात की नमाज़ (खियामुल लैल) या (तहज्जुद) कहा जाता है| रमज़ान में इसे तरावीह भी कहते है| तरावीह की नमाज़ इशा की नमाज़ के पश्चात फजर की नमाज़ से पहले तक कभी भी पढ़ी जा सकती है| आप ﷺहर समय, चाहे वह रमज़ान हो या गैर रमज़ान हो, रात की नमाज़ में 11 रकात ही पढ़ा करते थे| [सहीह बुखारी 1147 (vol 2, किताब 21, हदीस 248 & vol 8, किताब 75, हदीस 322), सहीह मुस्लिम 736 a (किताब 4, हदीस 1602), सुनन अबी दावूद 1335, जामी अत तिरमिज़ी 440, सुनन नसाई vol 2:1697]
उमर रजिअल्लाहुअन्हु के समयमालिक ने उल्लेख किया इब्न शिहाब से, उन्होंने उर्वा इब्न अज़ जुबैर से कि, अब्दुर रहमान इब्न अब्दुल खारी ने कहा : “मैं रमज़ान में उमर रजिअल्लाहुअन्हु के साथ मस्जिद में गया तो वहाँ लोग वर्गों में बटे हुए थे| कुछ लोग अकेले और कुछ लोग छोटे छोटे जमात के साथ (समूह में) नमाज़ पढ़ रहे थे| उमर रजिअल्लाहुअन्हु ने कहा : ‘अल्लाह की कसम ! मेरे विचार से यह सही होगा, यदि सब लोग एक आदमी के पीछे नमाज़ पढ़े|’ तो उन्होंने सब को उबै इब्न काब के पीछे एकत्रित किया| फिर जब मैं अगली रात उनके साथ मस्जिद गया तो देखा कि, सब एक क़ारी के पीछे नमाज़ पढ़ रहे है| उमर रजिअल्लाहुअन्हु ने कहा : ‘यह नया तरीका कितना अच्छा है| जो तुम निद्रावस्था में खो रहे हो, वह नमाज़ में जागने से उत्तम है|’ उनका अर्थ रात का अंतिम समय था और लोग रात के आरम्भ में नमाज़ पढ़ रहे थे|” [सहीह बुखारी 2010 (vol 3:227) & मुतव्वा मलिक, रमज़ान में नमाज़ की किताब 6, हदीस 3 (अरबी – किताब 6, हदीस 249)] यहया ने मुझसे मालिक, मुहम्मद इब्न यूसुफ द्वारा उल्लेख किया कि, सैब इब्न यज़ीद ने कहा : “उमर बिन खत्ताब रजिअल्लाहुअन्हु ने उबै इब्न काब और तमीम अद दारी को रात की नमाज़ में 11 रकात पर निगरानी रखने का आदेश दिया| क़ारी (नमाज़ पढाने वाला) ऐसे सूरे पढ़ता जो मध्य (न ज्यादा बड़े न ज्यादा छोटे) हो| तब तक पड़ते जब तक थक न जाये| और प्रभात समय तक नमाज़ पढ़ते|” [मुवत्ता मलिक, रमज़ान में नमाज़ किताब 6, हदीस 4 (अरबी – किताब 6, हदीस 250)]
विशिष्ठताअल्लाह के रसूल ﷺने कहा : “जो कोई रमज़ान में पूरी श्रध्दा के साथ और अल्लाह के प्रतिफल की आशा के साथ रात की नमाज़ पढता हो, उसके पूर्व पाप क्षमा कर दिए जायेंगे|” [सहीह बुखारी 2008 (vol 3:226 & vol 1:37]
ऐतिकाफ (मस्जिद में बैठना)रमज़ान के प्रत्येक कार्य में ऐतिकाफ भी है| इसमें इन्सान पूरे तरीके से अल्लाह की उपासना के लिए मस्जिद में बैठ जाता है और सांसारिक तथा निजी जीवन से अलग हो जाता है| इसका उद्देश्य सच्चे तन मन से केवल अल्लाह की उपासना करना होता है| वह केवल अल्लाह को प्रसन्न करने की चिंता में रहता है| वह कई तरह की उपासना कर सकता है| जैसे – तौबा (पश्चात्ताप), अल्लाह से क्षमा माँगना आदि| वह जितनी चाहे नफिल (ऐच्चिक) नमाज़ें पढ़ सकता है| अल्लाह के नामस्मरण में समय बिता सकता है| ऐतिकाफ के द्वारा इन्सान कई उपासनायें एक साथ कर सकता है|
रमज़ान में ऐतिकाफ के दिनअल्लाह के रसूल ﷺऐतिकाफ़ रमज़ान के अंतिम दस दिन में करते थे| [सहीह बुखारी 2025 (vol 3, किताब 33, हदीस 242)]
शरिया (इस्लामी कानून) के नियमइसका मूल नियम यह है कि, ऐतिकाफ़ नफिल (ऐच्छिक) उपासना है, अनिवार्य नहीं| यदि कोई इसकी शपथ ले तो, यह अनिवार्य हो जाता है| उमर रजिअल्लाहुअन्हु ने कहा : “ऐ अल्लाह के रसूल ! इस्लाम स्वीकार करने से पहले (जहिलिय्यत के समय) मैंने मस्जिदे हराम में एक रात ऐतिकाफ़ करने का शपथ लिया था|” आप ﷺने कहा : “तुम्हारी शपथ पूरी करो|” [सहीह बुखारी 2042 (vol 3, किताब 33, हदीस 258)] पुरुष और स्त्री, दोनों एतिकाफ मस्जिद ही में करना चाहिएअल्लाह ने कहा : “....और उनसे सहवास न करो, जब मस्जिदों में ऐतिकाफ़ में रहो....| [खुरआन सूरा बखरह 2:187] आइशा रजिअल्लाहुअन्हा कहती है कि, अल्लाह के रसूल ﷺ, अपने मृत्यु तक रमज़ान के अंतिम दस दिनों में ऐतिकाफ़ करते थे| बाद में आप के पत्नियां ऐतिकाफ़ करते रहे|” [सहीह बुखारी 2026, सहीह मुस्लिम 1172]
ऐतिकाफ़ के बारे में इस्लामी विद्वाम्सो का अवलोकनअल मज्मू (6/505) में अल नववी रहिमहुल्लाह ने कहा : पुरुष हो या स्त्री, ऐतिकाफ़ केवल मस्जिद ही में करना चाहिए; अथवा स्वीकार नहीं होगी| स्त्री हो या पुरुष, अपने घर में नमाज़ पढने के स्थान पर ऐतिकाफ़ करना स्वीकार योग्य नहीं है| यदि कोई स्त्री ऐतिकाफ़ करना चाहे तो मस्जिद में ऐतिकाफ़ करना चाहिए, परन्तु शरिया (इस्लामी कानून) के विरुध्ध कोई चीज़ न हो| यदि कोई निषेधित चीज़ हो तो, वह ऐतिकाफ़ न करना चाहिए| [शेख उसैमिन रहिमहुल्लाह – मज्मू अल फतावा – 20/264 & शेख बिन बाज़ – मज्मू अल फतावा – 15/437] इसलिए ऐतिकाफ़ केवल मस्जिद ही में करना चाहिए|
आवश्यकता होने पर मस्जिद से बाहर जाने की अनुमतिमुअतकिफ (एतिकाफ रखने वाला) आवश्यकता के बिना घर न जायेआइशा रजिअल्लाहुअन्हा, अल्लाह के रसूल ﷺके सर को घर के भाग में लेकर (जब वह मस्जिद में ऐतिकाफ़ में थे) तेल लगाया करती थी और बाल सवारा करती थी| आप ﷺऐतिकाफ़ के स्थिति में आवश्यकता के बिना घर में नहीं आया करते थे| [सहीह बुखारी 2029 (vol 3, किताब 33, हदीस 246]
खद्र की रातखद्र की रात (लैलतुल खद्र) हज़ार महीनो से ज्यादा पवित्र है| रमज़ान के इसी रात को खुरआन लोहे महफूज़ से बैतुल इज्ज़ा लायी गयी| अल्लाह ताला ने खुरआन में कहा : “निस्संदेह हम ने उस (खुरआन) को ‘लैलतुल खद्र’ (सम्मानित रात्रि) में उतारा| और तुम क्या जानों कि वह ‘लैलतुल खद्र’ (सम्मानित रात्रि) क्या है? ‘लैलतुल खद्र’ (सम्मानित रात्रि) हज़ार मास से उत्तम है|” [खुरआन सूरा खद्र 97:1-3]
श्रेष्ठताअल्लाह के रसूल ﷺने कहा : “जो कोई रमज़ान में पूरी श्रध्दा के साथ और अल्लाह के प्रतिफल की आशा के साथ खद्र की रात्रि, रात की नमाज़ पढता हो, उसके पूर्व पाप क्षमा कर दिए जायेंगे|” [सहीह बुखारी 2014 (vol 3, किताब 32, हदीस 231 & vol 1:35]
वह (खद्र की रात) कब आती हैयह रात हर वर्ष रमज़ान के अंतिम दस दिनों के विषम (ताक़) रात्रि में आती है| इसका ठीक समय पता नहीं| इसके बारे में इतना ही पता है कि, यह रमज़ान के अंतिम दस रातों में है (अंतिम दस विषम (ताक़) रातों में, अथवा – 21,23,25,27,29)| [सहीह बुखारी 2020 (vol 3, किताब 32, हदीस 237)]
रमज़ान के विषम (ताक़) रातों में पढ़ी जाने वाली दुआ (21,23,25,27,29)‘अल्लाहुम्म इन्नक अफुव्वुन तुहिब्बुल अफव, फाफु अन्नि|’ अनुवाद – “ऐ अल्लाह ! आप क्षमाशीली है, क्षमा पसंद करते है, इसलिए मुझे क्षमा कीजिये|” [इब्न माजह vol 5, किताब 34, हदीस 3850 & जामि अत तिरमिज़ी 3513] खद्र के रात का ज्ञान उठा लिया गया, झगडे के कारणउबादा बिन अस समित ने उल्लेख किया : अल्लाह के रसूल ﷺहमें खद्र की रात के बारे में बताने के लिए बाहर आये| किन्तु उस समय दो मुसलमान आपस में झगड़ रहे थे| तो अल्लाह के रसूल ﷺने कहा : “मैं तुम्हे खद्र की रात के बारे में बताने के लिए बाहर आया, परन्तु वह लोग झगड रहे थे, इसलिए उसका ज्ञान (इल्म) उठा लिया गया ; किन्तु यह तुम्हारे अच्छे के लिए हो सकता है, इसलिए उसे (रमज़ान के) 29, 27, 25 (की रातों) में ढूँडो (तलाश करो)|” [सहीह बुखारी 2023 (vol 3, किताब 32, हदीस 240)]
ज़कात (विधि दान)इस्लाम में दो प्रकार के दान है – अनिवार्य और ऐच्छिक| ज़कात अनिवार्य दान (विधि दान) है| ज़कात के अलावा खुरआन और हदीस में ‘सदखह’ (ऐच्छिक दान) की भी श्रेष्ठता बताई गयी है| यह धन तथा खाने के रूप में दी जा सकती है| यह निर्धनों की सहायता के लिए उद्देशित है और इसका कोई निर्धारित समय नहीं है|
शरिया (इस्लामी कानून) का नियमयह अल्लाह के आदेश पर आधारित है : “...तथा जो सोना-चांदी एकत्र कर के रखते है और उसे अल्लाह की राह में दान नहीं करते, उन्हें दुःखदाई यातना की शुभसूचना सुना दे|” [खुरआन सूरा तौबा 9:34] ज़कात अनिवार्य कार्य है, उन पर जो उसकी शक्ति रखते है| ज़कात देना अनिवार्य है, क्यों कि, यह इस्लामी मूल स्तंभ में से है|” [सहीह बुखारी vol 1:7]
ज़कात अनिवार्य होने के नियमदो चीज़ें ज़कात के लिए आवश्यक है| धन और समय, जो इस्लाम ने निर्धारित किया| हर मुसलमान जिसके पास निर्धारित (निसब) धन हो और जो दूसरे नियम भी पूरा करता हो, वह ज़कात देना अनिवार्य है| ज़कात देने के लिए कौनसी चीज़ें होना चाहिएनिर्धारित धन (निसाब) सोने के लिए बीस मिथखल या 85 ग्राम है| चाँदी के लिए निसब 140 मिथखल या 535 ग्राम है| यदि निसाब से कम सोना या चाँदी हो तो उस पर ज़कात नहीं|
सोनाज़कात देने के लिए 85 ग्राम सोना होना चाहिए| इस के बराबर या इस से बढ़कर धन एक व्यक्ति के पास एक साल पूरा रहे तो उस पर ज़कात अनिवार्य हो जाता है| इस पर (अर्थात 85 ग्राम सोने पर) 2.5%, यानी लग भाग 2.125 ग्राम है|
चाँदीज़कात देने के लिए 595 या उस से बढ़कर चाँदी होनी चाहिए| और वह भी एक साल से उसके पास रहनी चाहिए| इस के विषय में भी ज़कात 2.5% है, जो लग भाग 14.87 ग्राम है|
नकद धननकद धन भी सोना या चांदी के निसाब के बराबर और एक साल तक रहने पर ज़कात अनिवार्य होता है| इसका भी 2.5% होता है|
ज़कात किसे देनी चाहिएखुरआन के अनुसार, ज़कात 8 प्रकार के लोगो में देनी चाहिए| खुरआन में कहा गया : “ज़कात (विधि दान) केवल फ़कीरों, मिस्कीनों और कार्य-कर्ताओं के लिए, तथा उन के लिए जिन के दिलो को जोड़ा जा रहा है| और दास मुक्ति, तथा ऋणियों (की सहायता) के लिए, और अल्लाह की राह में तथा यात्रिओं के लिए है| अल्लाह की ओर से अनिवार्य है| और अल्लाह सर्वज्ञ तत्वज्ञ है|” [खुरआन सूरा तौबा 9:60] निर्धन लोग – जिनके पास बहुत कम चीज़ें है| कंगाल लोग – जिनके पास कुछ न हो| ज़कात जमा करने वाले – जो ज़कात जमा करते और बांटते है| नौ मुस्लिम – जो इस्लाम स्वीकार करने के कारण अपने घरो से निकाल दिए गए और सहायता के अभावग्रस्त हो| सेवक, दास – जहाँ दास्यता हो, वहाँ के दासो को स्वतन्त्र करने के लिए| करजदार, ऋणी – ऋणी को उसके बोझ से मुक्त करने के लिए| अल्लाह के आर्ग में काम करने वाले| यात्री – जो अपनी यात्रा में फंस जाते है|
ज़कात कैसे दे ?मुस्लिम राज्य में ज़कात इकठ्ठा करने का उत्तरदायित्व (ज़िम्मेदारी) उसके सरदार (खलीफा) पर है| उसे उनके हकदार तक पहुँचाना भी उसकी ज़िम्मेदारी है| जो गैर मुस्लिम देश में रहता है, वह अपनी ज़कात स्वयं उसके हकदार तक पहुंचायें|
ज़कात न देने का दंडअल्लाह के रसूल ﷺने कहा : “जिसे अल्लाह ने धनवान बनाया और वह ज़कात न दे, अल्लाह ताला प्रलय के दिन उसके धन को दो मुंह वाला ज़हरीला पुरुष सांप बनाता है, जो गंजा होता है और जिसके आखों पर दो काले निशान होते है (या मुंह में दो ज़हरीले ग्रंथि होते है)| वह सांप उसके गले पर लिपट कर उसके गाल पर डस मारता है और कहता है, ‘मैं तेरा धन हूँ, मैं तेरी संपत्ति हूँ|” [सहीह बुखारी 1403 (vol 2:486)]
संपत्ति के प्रकारवह संपत्ति जिस पर ज़कात है – सोना, चाँदी और नकद धन के अतिरिक्त| स्त्री की गहने, जो सोना और चाँदी से बनायी जाती है और सुन्दरता के लिए उपयोग होती है| पशु – ऊँट, गाय और बकरी| खाध्यान्न और फल आदि|
ज़कातुल फ़ित्रज़कातुल फ़ित्र या सदखतुल फ़ित्र का अर्थ, “उपवास भंग का दान|” यह एक निर्धारित अन्नदान है जिसे मुसलमान रमज़ान के अंतिम दिनों में देते है| इसे कुछ मुसलमान जमा करके निर्धनों में बांटते है या फिर ईद की नमाज़ से पहले निर्धनों को देते है| ज़कातुल फ़ित्र को अल्लाह ने दो कारण से अनिवार्य किया : उपवासियों को पवित्र करने के लिए – उनके उपवास को छोटे छोटे पाप से पवित्र करना| निर्धनों को ईद के दिन कुछ अच्छा खाने मिल जाये| [अबू दावूद 1622, नसई vol 5:550 & इब्न माजह vol 1:585]
इसे देने का समयइसे देने का सही समय यह है कि, ईद के दिन (शव्वाल माह के पहले दिन) प्रभात समय से ईद के नमाज़ से पहले तक| [सहीह बुखारी 1503] यदि कोई ईद के दिन से पहले (ईद से एक दो दिन पहले) दे तो, उसने अपना फ़र्ज़ पूरा कर लिया| जो नमाज़ के बाद देते है, वह साधारण (ऐच्छिक) दान (सदखा) में आता है| उसे ज़कातुल फ़ित्र में नहीं लिया जाता|
ज़कातुल फ़ित्र में क्या देना चाहिएअल्लाह के रसूल के साथी (सहाबी) सईद अल खुदरी रजिअल्लाहुअन्हु ने कहा : “अल्लाह के रसूल ﷺके समय हम ज़कातुल फ़ित्र बूढ़े और बच्चे, स्वतन्त्र और सेवक, सब की ओर से देते थे| एक ‘सा’ खाना या एक ‘सा’ पनीर या एक ‘सा’ जौ या एक ‘सा’ खजूर या एक ‘सा मुनक्का|” [सहीह बुखारी 1510 (vol 2, किताब 25, हदीस 586] गलत धारणा :खाद्य पदार्थ के बदले उसके बराबर का धन देना उचित नहीं है और उस स्थान का खाना चावल या गेहू भी दे सकते है| [शेख सालेह अल फौज़ान रहिमहुल्लाह - अल मुन्तखा मिन फतावा - 3/140]
ज़कातुल फ़ित्र किसे देइसे निर्धन और जिसे अवसर हो उसे देना चाहिए| [शेख उसैमिन रहिमहुल्लाह - अल शरह अल मुम्ति - 6/117] ‘सा’ लग भाग 3 किलो होता है| यह शेख इब्न बाज़ रहिमहुल्लाह का अनुमान तथा विचार है| इसे शेख अल फौज़ान रहिमहुल्लाह ने भी सही कहा| [शेख सालेह अल फौज़ान - अल मुन्तखा मिन फतावा - 3/140]
ईदईद वह दिन है, जिस दिन सब एकत्र होते है| यह ‘आदा’ (लौटना) शब्द से आया है| क्यों कि यह हर वर्ष आती है| इस्लामी अर्थ के अनुसार इस दिन अल्लाह ताला अपने बन्दों (दास) पर अपनी दया तथा अनुग्रह बरसाता है| उस दिन सब लोगो को (अच्छे और बुरे) पश्चात्ताप करने का और अल्लाह के अनुग्रह प्राप्त करने का अवसर मिलता है| प्रमाणित हदीसो के अनुसार मुसलमानों के एक वर्ष में दो ईद है – ईद उल फ़ित्र (रमज़ान) और ईद उल अजहा (बकरीद)| अनस रजिअल्लाहुअन्हु ने कहा : “अल्लाह के रसूल ﷺजब मदीना आये तो वहाँ के लोग अनागरिकता (जाहिलियत) के कारण दो दिन खेल कूद किया करते थे (नियारूज़ (नव वर्ष का दिन) और महारजान (वर्ष का अंतिम दिन)| अल्लाह के रसूल ﷺने कहा : “मैं तुम लोगो के पास आया और तुम लोग जाहिलियत के कारण, दो दिन खेल कूद करते थे| अल्लाह ताला ने उन दिनों के बदले दो दिन निर्धारित किये है, जो उनसे श्रेष्ठ है : नहर का दिन (क़ुरबानी) और फ़ित्र का दिन (उपवास छोड़ने का दिन)|” [मुस्नद अहमद vol 3:103, 178, 235]
ईद के नमाज़ का आदेशईद की नमाज़ फ़र्ज़ ए ऐन (व्यक्तिगत फ़र्ज़ - अनिवार्य) है| यह नमाज़ पुरुष लोग छोड़ना नहीं चाहिए, बल्कि अदा करना चाहिए| क्यों कि अल्लाह के रसूल ﷺने इसे पढ़ा| आप ﷺने तो महिलाओं को भी इस नमाज़ को पढने के लिए कहा| आप ने तो कन्याओं को भी ईद की नमाज़ के लिए आने को कहा, जबकि साधारण रूप से उन्हें परदे में रहना चाहिए| आप ने तो मासिक धर्म वाली महिलाओं को भी आने को कहा, पर वह नमाज़ के स्थान से अलग रहना चाहिए|” [सहीह बुखारी 971 & सहीह मुस्लिम 1933 (vol 2, किताब 15, हदीस 88)]
ईद का अभिवादनमुहम्मद बिन ज़ियाद ने कहा : “ईद की नमाज़ से लौटते समय मैं अबू उमामह अल बाहिली रजिअल्लाहुअन्हु और दूसरे सहाबा (अल्लाह के रसूल ﷺके साथियों) के साथ था, वह आपस में इस तरह कह रहे थे, ‘तखब्बलल्लाहु मिन्ना व मिन्कुम’ (अल्लाह आप से और हम से यह स्वीकार करे)| [फत हुल बारी 2:446 & इब्न खुदामह – अल मुघनी 2:259]
रमज़ान में या दूसरे माह में अल्लाह का नाम स्मरण (ज़िक्र)अल्लाह के रसूल ﷺने कहा : “अल्लाह का नाम स्मरण (ज़िक्र) करने वाले और न करने वाले की तुलना जीवित और मृतक जैसी है|” [सहीह बुखारी 6407 NE (vol 8:416)] सब से अच्छा नाम स्मरण ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ है| [सहीह मुस्लिम vol 4:2073, तिरमिज़ी 3383] ‘अस्तघफिरुल्लाह’ पढ़ना| [सहीह बुखारी vol 8:319] एक दिन में ‘सुब्हानल्लाह वबि हम्दिही’ 100 बार पढना| [सहीह बुखारी 6405 (vol 8, किताब 75, हदीस 414)] ‘सुब्हानल्लाह हिल अज़ीम’ & ‘सुब्हानल्लाही वबि हम्दिही’ पढ़ना| [सहीह बुखारी 6406 (vol 8, किताब 75, हदीस 415)] ‘ला इलाहा इल्लल्लाह वहदहू ला शरीक लहु, लहुल मुल्क व लहुल हम्द व हुव अला कुल्लि शैइन खदीर’ दिन में 100 बार पढ़ना| [सहीह बुखारी 6403 (vol 8, किताब 75, हदीस 412)]
आधारAll the references of ahadith are taken from English books of ahadith and few of them are from Arabic books of ahadith. Opinions of scholars are taken from islamqa.info/en [1] http://www.quran4u.com/Tafsir%20Ibn%20Kathir/002%20Baqarah%20I.htm |
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