इस्लाम में सहाबा का मुखाम या अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺ के अनुयायीसहाबा, वह है जो अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺके अनुयायी (स्त्री व पुरुष) है|
जिन्होने अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺको देखा है या मिला है और उन पर विश्वास किया है (कि वह अल्लाह के रसूल है) और जो उसी (मुसलिम की) हालत में मरा है उन्हें सहाबी कहते है| जिन लोगों ने उन्हें देखा, पर उनकी मृत्यू के बाद उन पर ईमान (विश्वास) लाये, वह सहाबी नहीं कहलाते, परन्तु उन्हें ताबईन कहते है| एक अनुयायी हो तो सहाबी कहते है और एक से ज्यादा हो तो सहाबा कहते है| [1]
हर मुसलिम को, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष हो, सहाबा (अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺके अनुयायी) को अनुसरण करना अनिवार्य है| अल्लाह विश्वासियों को सहाबा के नख्शे खदम पर चलने के लिए कुछ कसौटी कायम की है| इस बारे में खुरआन में अनेक जगह बताया गया है| इसलिए हमें कामयाबी पाना है तो सहाबा के मार्ग पर चलना अनिवार्य है|
“तो यदि वह तुम्हारे ही समान ईमान ले आये, तो वह मार्गदर्शन पा लेंगे| और यदि विमुख हो तो वह विरोध में लीन है| उन के विरुध्ध तुम्हारे लिए अल्लाह बस है| और वह सब सुनने वाला और जानने वाला है|” [खुरआन सूरा बखरा 2:137]
“तथा जो व्यक्ति अपने ऊपर मार्गदर्शन उजागर हो जाने के पश्चात रसूल का विरोध करे, और ईमान वालों की राह के सिवा (दूसरी राह) का अनुसरण करे तो हम उसे वही फेर देंगे जिधर फिरा है| और उसे नरक में झोंक देंगे तथा वह बुरा निवास स्थान है|”[सूरा निसा 4:115] “तथा प्रथम अग्रसर मुहाजिरीन और अन्सारी, और जिन लोगों ने सुकर्म के साथ उन का अनुसरण किया अल्लाह उन से प्रसन्न हो गया| और वे उस से प्रसन्न हो गए| तथा उसने उन के लिए ऐसे स्वर्ग तैयार किये है जिन में नहरे प्रवाहित है| वह उस में सदावासी होंगे, वही बड़ी सफलता है|” [सूरा तौबा 9:100]
“उन का प्रतिफल उन के पालनहार कि ओर से सदा रहने वाले बाग़ है| जिन के नीचे नहरे बहती होंगी| वे उन में सदा निवास करेंगे| अल्लाह उन से प्रसन्न हुआ, और वे अल्लाह से प्रसन्न हुए| यह उस के लिए है जो अपने पालनहार से डरे|” [सूरा बय्यिनह 98:8] [2]
सहाबा लोगों को उम्मत के सबसे अच्छे लोग माना जाता है| इनके बाद ताबेईन और तबे ताबेईन आते है| अब्दुल्लाह (रजि) और आयिशा (रजि) ने उल्लेख किया : अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺने कहा : “मेरे उम्मत में सबसे अच्छे वह लोग है जो मेरे साथ है, उनके बाद वह लोग है जो उनके बाद आने वाले है (बाद की उम्मत), उनके बाद वह लोग जो उनके बाद आने वाले है (उनके बाद की उम्मत), उनके बाद वह लोग आने वाले है जिनकी गवाही उनके शपथ को अधिमान करती है और उनके शपथ उनकी गवाही को अधिमान करते है|” [सही बुखारी vol 5:3 & सही मुसलिम 6159] [4]
अबू हुरैरा रजिअल्लाहुअन्हु ने उल्लेख किया कि, अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺने ऐसा कहा : “मेरे अनुयायियों (सहाबा) में से किसी को भी बुरा मत कहना| क्यों कि, जिस के हाथ में मेरी जान है, उसकी (अल्लाह) कसम, अगर तुम में से कोई उहद पहाड़ के बराबर सोना खर्च भी करे तो, उनके ‘मुद्द’ (पैमाना) के बराबर भी नहीं होता, बल्कि उसका आदा भी नहीं होता|” [सही बुखारी 3673 & सही मुसलिम 2540]
इब्ने मसूद (रजि) ने उल्लेख किया : अल्लाह अपने दासों के दिलों को देखा तो उसे मुहम्मद ﷺका दिल सब लोगों में अच्छा पाया| इसलिए अल्लाह ने उन्हें अपने लिए चुन लिया और उनके द्वारा अपने सन्देश को भेजा| फिर अल्लाह ने अपने दासोंके दिलों को देखा तो उसने पाया कि, अनुयायी (सहाबा) के दिल सबसे अच्छे है| इसलिए उन्हें अपने रसूल के सहायक बनाया और वह लोग अल्लाह के दीन के लिए कई युध्ध किये| जो मुसलिम ठीक समझते है, अल्लाह के नज़र में वही ठीक है और जो मुसलिम बुरा समझते है, वही अल्लाह के नज़र में बुरा है| [मुसनद अहमद 1/379] [5]
इमाम अहमद बिन हम्बल (रहिमहुल्लाह) कहते है : “अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺके सुन्नत पर अमल करना हो तो, सहाबा ने जिस तरह अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺके सुन्नतों को समझा और अमल किया, उसे जानना ज़रूरी है और उसी तरह अमल करना चाहिए|”
शेक रबी बिन हादी अल मद्खली (रहिमहुल्लाह) ने इमाम अहमद के शब्दों का विश्लेषण करते हुए कहते है, “अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺके अनुयायी (सहाबा), जिस तरह इस्लाम को समझे थे, उसी तरह इस्लाम को समझना, एक सच्चे मुसलिम के लिए ज़रूरी है| “
सहाबा (रजि अल्लाहु अन्हुम) अल्लाह की किताब (खुरआन) पर सख्ती के साथ अमल करते थे| और वह लोग अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺके सुन्नत पर, चाहे वह – इबादत हो, एक दूसरे के साथ व्यवहार हो – हर विषय में सुन्नत पर अमल करते थे| [6]
पहले तीन पीढ़ी को हर विषय में अनुसरण करना चाहिए| ऐसा करने वाले सीधे मार्ग पर है| चाहे वह – अखीदा हो, इबादत हो, आपस के व्यवहार हो – पहले तीन पीढ़ी को अनुसरण करना चाहिए| विशेष तौर पर अखीदे में कोई मिलावट (कम करना या बढ़ाना) नहीं करना चाहिए| इस बारे में खुरआन का सूरा निसा 4:59 में विवरण दिया गया है| सहाबा के गुण भी अपने अन्दर उत्पन्न करने की कोशिश करे| जैसा की :
सहाबा (अनुयायी) का हर कर्म इस्लामी कानून के अनुसार होता था| वह हर समय मृत्यू के बारे में सोचते थे| अपने को चोट पहुचाने वालों को क्षमा करदिया करते थे| अपने साथी मुस्लिमों का बहुत आदर करते थे| साथी मुसलिम के बारे में हर पल अच्छा सोचा करते थे| अपने नमाज़ों का सही पालन किया करते थे| वह लोग परलोक को इस दुनिया के बदले ज्यादा तरजी दिया करते थे| वह जानते थे कि, अल्लाह को सही तारीखे से कृतज्ञता नहीं अदा कर सकते, इसलिए वे बुरे कार्यों से और बुरी सांगत से दूर रहा करते थे| अल्लाह खुरआन में इस तरह कहता है : “मुहम्मद अल्लाह के रसूल है, तथा जो लोग आपके साथ है वह काफिरों के लिए कड़े, और आपस में दयालु है| तुम देखोगे उन्हें रुकू सजदा करते हुए वह खोज कर रहे होंगे अल्लाह की दया तथा प्रसन्नता की| उन के लक्षण उन के चेहरों पर सजदों के चिह्न होंगे....|” [खुरआन सूरा फतह 48:29]
हम अल्लाह से दुआ करते है कि, हमें अल्लाह सहाबा के बारे में ज्ञान प्राप्त करने की सद्भुबुध्धि दे और हमें उन जैसा बनादे| इब्ने तैमिया ने सहाबा के बारे में ऐसा कहा : “जो लोग सहाबा की ज़िन्दगी के बारे में पढ़ते है और उस पर घौर करते है, उन्हें ये पता चलता है कि, अल्लाह ने उन पर कितनी कृपा की, और मानवजाति में रसूलों तथा नबियों के बाद सबसे उच्च लोग सहाबा है| उन के जैसा न कोई था और न कोई होगा|” [7]
[1] http://www.kalamullah.com/aqeedah15.html (english) [2] http://quran.com/ (english) [3] http://hilaalalislamiy.blogspot.in/ (english) [4] http://www.sunnah.com/ (english) [5] http://islamqa.info/en/ref/83121 (english) [6] http://hilaalalislamiy.blogspot.in/ (english) [7] http://www.kalamullah.com/aqeedah15.html (english) |
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