97.सूरह अल खद्र 97:1 إِنَّا أَنزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةِ الْقَدْرِ
हमने इसे क़द्र की रात में अवतरित किया।
97:2 وَمَا أَدْرَاكَ مَا لَيْلَةُ الْقَدْرِ
और तुम्हें क्या मालूम कि क़द्र की रात क्या है?
97:3 لَيْلَةُ الْقَدْرِ خَيْرٌ مِّنْ أَلْفِ شَهْرٍ
क़द्र की रात उत्तम है हज़ार महीनों से,
97:4 تَنَزَّلُ الْمَلَائِكَةُ وَالرُّوحُ فِيهَا بِإِذْنِ رَبِّهِم مِّن كُلِّ أَمْرٍ
उसमें फ़रिश्ते और रूह हर महत्वपूर्ण मामले में अपने रब की अनुमति से उतरते हैं।
97:5 سَلَامٌ هِيَ حَتَّىٰ مَطْلَعِ الْفَجْرِ
वह रात पूर्णतः शान्ति और सलामती है, उषाकाल के उदय होने तक।