93.सूरह अज़ ज़ुहा 93:1 وَالضُّحَىٰ
साक्षी है चढ़ता दिन,
93:2 وَاللَّيْلِ إِذَا سَجَىٰ
और रात जबकि उसका सन्नाटा छा जाए।
93:3 مَا وَدَّعَكَ رَبُّكَ وَمَا قَلَىٰ
तुम्हारे रब ने तुम्हें न तो विदा किया और न वह बेज़ार (अप्रसन्न) हुआ।
93:4 وَلَلْآخِرَةُ خَيْرٌ لَّكَ مِنَ الْأُولَىٰ
और निश्चय ही बाद में आनेवाली (अवधि) तुम्हारे लिए पहलेवाली से उत्तम है।
93:5 وَلَسَوْفَ يُعْطِيكَ رَبُّكَ فَتَرْضَىٰ
और शीघ्र ही तुम्हारा रब तुम्हें प्रदान करेगा कि तुम प्रसन्न हो जाओगे।
93:6 أَلَمْ يَجِدْكَ يَتِيمًا فَآوَىٰ
क्या ऐसा नहीं कि उसने तुम्हें अनाथ पाया तो ठिकाना दिया?
93:7 وَوَجَدَكَ ضَالًّا فَهَدَىٰ
और तुम्हें मार्ग से अपरिचित पाया तो मार्ग दिखाया?
93:8 وَوَجَدَكَ عَائِلًا فَأَغْنَىٰ
और तुम्हें निर्धन पाया तो समृद्ध कर दिया?
93:9 فَأَمَّا الْيَتِيمَ فَلَا تَقْهَرْ
अतः जो अनाथ हो उसे मत दबाना,
93:10 وَأَمَّا السَّائِلَ فَلَا تَنْهَرْ
और जो माँगता हो उसे न झिड़कना,
93:11 وَأَمَّا بِنِعْمَةِ رَبِّكَ فَحَدِّثْ
और जो तुम्हारे रब की अनुकम्पा है, उसे बयान करते रहो।