80.सूरह अबस 80:1 عَبَسَ وَتَوَلَّىٰ
उसने त्योरी चढ़ाई और मुँह फेर लिया,
80:2 أَن جَاءَهُ الْأَعْمَىٰ
इस कारण कि उसके पास अन्धा आ गया।
80:3 وَمَا يُدْرِيكَ لَعَلَّهُ يَزَّكَّىٰ
और तुझे क्या मालूम शायद वह स्वयं को सँवारता-निखारता और आत्मिक विकास प्राप्त करता हो।
80:4 أَوْ يَذَّكَّرُ فَتَنفَعَهُ الذِّكْرَىٰ
या नसीहत हासिल करता हो तो नसीहत उसके लिए लाभदायक हो?
80:5 أَمَّا مَنِ اسْتَغْنَىٰ
रहा वह व्यक्ति जो बेपरवाही करता है,
80:6 فَأَنتَ لَهُ تَصَدَّىٰ
तू उसके पीछे पड़ा है -
80:7 وَمَا عَلَيْكَ أَلَّا يَزَّكَّىٰ
हालाँकि वह अपने को न निखारे और चरित्रवान न हो तो तुझपर कोई ज़िम्मेदारी नहीं आती -
80:8 وَأَمَّا مَن جَاءَكَ يَسْعَىٰ
और रहा वह व्यक्ति जो स्वयं ही तेरे पास दौड़ता हुआ आया,
80:9 وَهُوَ يَخْشَىٰ
और वह डरता भी है,
80:10 فَأَنتَ عَنْهُ تَلَهَّىٰ
तो तू उससे बेपरवाही करता है।
80:11 كَلَّا إِنَّهَا تَذْكِرَةٌ
कदापि नहीं, वे (आयतें) नसीहत और अनुस्मारक हैं -
80:12 فَمَن شَاءَ ذَكَرَهُ
तो जो चाहे उसे याददिहानी हासिल कर ले -
80:13 فِي صُحُفٍ مُّكَرَّمَةٍ
प्रतिष्ठित, उच्च,
80:14 مَّرْفُوعَةٍ مُّطَهَّرَةٍ
पवित्र पन्नों में अंकित हैं,
80:15 بِأَيْدِي سَفَرَةٍ
ऐसे कातिबों के हाथों में रहा करते हैं।
80:16 كِرَامٍ بَرَرَةٍ
जो प्रतिष्ठित और नेक हैं।
80:17 قُتِلَ الْإِنسَانُ مَا أَكْفَرَهُ
विनष्ट हुआ मनुष्य! कैसा अकृतज्ञ है!
80:18 مِنْ أَيِّ شَيْءٍ خَلَقَهُ
उसको किस चीज़ से पैदा किया?
80:19 مِن نُّطْفَةٍ خَلَقَهُ فَقَدَّرَهُ
तनिक-सी बूँद से उसको पैदा किया, तो उसके लिए एक अंदाज़ा ठहराया,
80:20 ثُمَّ السَّبِيلَ يَسَّرَهُ
फिर मार्ग को देखो, उसे सुगम कर दिया,
80:21 ثُمَّ أَمَاتَهُ فَأَقْبَرَهُ
फिर उसे मृत्यु दी और क़ब्र में उसे रखवाया,
80:22 ثُمَّ إِذَا شَاءَ أَنشَرَهُ
फिर जब चाहेगा उसे (जीवित करके) उठा खड़ा करेगा। -
80:23 كَلَّا لَمَّا يَقْضِ مَا أَمَرَهُ
कदापि नहीं, उसने उसको पूरा नहीं किया जिसका आदेश अल्लाह ने उसे दिया है।
80:24 فَلْيَنظُرِ الْإِنسَانُ إِلَىٰ طَعَامِهِ
अतः मनुष्य को चाहिए कि अपने भोजन को देखे,
80:25 أَنَّا صَبَبْنَا الْمَاءَ صَبًّا
कि हमने ख़ूब पानी बरसाया,
80:26 ثُمَّ شَقَقْنَا الْأَرْضَ شَقًّا
फिर धरती को विशेष रूप से फाड़ा,
80:27 فَأَنبَتْنَا فِيهَا حَبًّا
फिर हमने उसमें उगाए अनाज,
80:28 وَعِنَبًا وَقَضْبًا
और अंगूर और तरकारी,
80:29 وَزَيْتُونًا وَنَخْلًا
और ज़ैतून और खजूर,
80:30 وَحَدَائِقَ غُلْبًا
और घने बाग़,
80:31 وَفَاكِهَةً وَأَبًّا
और मेवे और घास-चारा,
80:32 مَّتَاعًا لَّكُمْ وَلِأَنْعَامِكُمْ
तुम्हारे लिए और तुम्हारे चौपायों के लिेए जीवन-सामग्री के रूप में।
80:33 فَإِذَا جَاءَتِ الصَّاخَّةُ
फिर जब वह बहरा कर देनेवाली प्रचंड आवाज़ आएगी,
80:34 يَوْمَ يَفِرُّ الْمَرْءُ مِنْ أَخِيهِ
जिस दिन आदमी भागेगा अपने भाई से,
80:35 وَأُمِّهِ وَأَبِيهِ
और अपनी माँ और अपने बाप से,
80:36 وَصَاحِبَتِهِ وَبَنِيهِ
और अपनी पत्नी और अपने बेटों से।
80:37 لِكُلِّ امْرِئٍ مِّنْهُمْ يَوْمَئِذٍ شَأْنٌ يُغْنِيهِ
उनमें से प्रत्येक व्यक्ति को उस दिन ऐसी पड़ी होगी जो उसे दूसरों से बेपरवाह कर देगी।
80:38 وُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ مُّسْفِرَةٌ
कितने ही चेहरे उस दिन रौशन होंगे,
80:39 ضَاحِكَةٌ مُّسْتَبْشِرَةٌ
हँसते, प्रफुल्लित
80:40 وَوُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ عَلَيْهَا غَبَرَةٌ
और कितने ही चेहरे होंगे जिनपर उस दिन धूल पड़ी होगी,
80:41 تَرْهَقُهَا قَتَرَةٌ
उनपर कलौंस छा रही होगी।
80:42 أُولَٰئِكَ هُمُ الْكَفَرَةُ الْفَجَرَةُ
वही होंगे इनकार करनेवाले दुराचारी लोग!