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1.सूरह अल फातिहा
2.सूरह अल बखरा
3.सूरह आले इमरान
4.सूरह अन निसा
5.सूरह अल माइदा
6.सूरह अल अनआम
7.सूरह अल आराफ
8.सूरह अल अनफाल
9.सूरह अत तौबा
10.सूरह यूनुस
11.सूरह हूद
12.सूरह यूसुफ
13.सूरह अर राद
14.सूरह इब्राहीम
15.सूरह अल हिज्र
16.सूरह अन नहल
17.सूरह बनी इस्राईल
18.सूरह अल कहफ़
19.सूरह मरयम
20.सूरह ताहा
21.सूरह अल अंबिया
22.सूरह अल हज
23.सूरह अल मोमिनून
24.सूरह अन नूर
25.सूरह अल फुरखान
26.सूरह अश शुअरा
27.सूरह अन नम्ल
28.सूरह अल खसस
29.सूरह अल अनकबूत
30.सूरह अर रूम
31.सूरह लुखमान
32.सूरह अस सज्दह
33.सूरह अल अहज़ाब
34.सूरह सबा
35.सूरह फातिर
36.सूरह यासीन
37.सूरह अस साफ्फात
38.सूरह साद
39.सूरह अज़ ज़ुमर
40.सूरह अल मोमिन
41.सूरह हा मीम अस सज्दह
42.सूरह अश शूरा
43.सूरह अज़ ज़ुखरुफ
44.सूरह अद दुखान
45.सूरह अल जासियह
46.सूरह अल अहखाफ
47.सूरह मुहम्मद
48.सूरह अल फतह
49.सूरह अल हुजुरात
50.सूरह खाफ
51.सूरहअज़ ज़ारियात
52.सूरह अत तूर
53.सूरह अन नज्म
54.सूरह अल खमर
55.सूरह अर रहमान
56.सूरह अल वाखियह
57.सूरह अल हदीद
58.सूरह अल मुजादलह
59.सूरह अल हश्र
60.सूरह अल मुमतहिनह
61.सूरह अस सफ
62.सूरह अल जुमुअह
63.सूरह अल मुनाफिखून
64.सूरह अत तागाबुन
65.सूरह अत तलाख
66.सूरह अत तह्रीम
67.सूरह अल मुल्क
68.सूरह अल खलम
69.सूरह अल हाख्खह
70.सूरह अल मआरिज
71.सूरह नूह
72.सूरह अल जिन्न
73.सूरह अल मुज्ज़म्मिल
74.सूरह अल मुद्दस्सिर
75.सूरह अल खियामह
76.सूरह अद दह्र
77.सूरह अल मूर्सलात
78.सूरह अन नबा
79.सूरह अन नाज़िआत
80.सूरह अबस
81.सूरह अत तक्वीर
82.सूरह अल इन्फितार
83.सूरह अल मुतफ्फिफीन
84.सूरह अल इन्शिखाक
85.सूरह अल बुरूज
86.सूरह अत तारीख
87.सूरह अल आला
88.सूरह अल गाशियह
89.सूरह अल फज्र
90.सूरह अल बलद
91.सूरह अश शम्स
92.सूरह अल लैल
93.सूरह अज़ ज़ुहा
94.सूरह अलम नश्रह
95.सूरह अत तीन
96.सूरह अल अलख
97.सूरह अल खद्र
98.सूरह अल बय्यिनह
99.सूरह अज़ ज़िल ज़ाल
100.सूरह अल आदियात
101.सूरह अल खारिअह
102.सूरह अत तकासुर
103.सूरह अल अस्र
104.सूरह अल हुमजह
105.सूरह अल फील
106.सूरह खुरैश
107.सूरह अल माऊन
108.सूरह अल कौसर
109.सूरह अल काफिरून
110.सूरह अन नस्र
111.सूरह अल लहब
112.सूरह अल इख्लास
113.सूरह अल फलख
114.सूरह अन नास

48.सूरह अल फतह

48:1  إِنَّا فَتَحْنَا لَكَ فَتْحًا مُّبِينًا
निश्चय ही हमने तुम्हारे लिए एक खुली विजय प्रकट की,
48:2  لِّيَغْفِرَ لَكَ اللَّهُ مَا تَقَدَّمَ مِن ذَنبِكَ وَمَا تَأَخَّرَ وَيُتِمَّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكَ وَيَهْدِيَكَ صِرَاطًا مُّسْتَقِيمًا
ताकि अल्लाह तुम्हारे अगले और पिछले गुनाहों को क्षमा कर दे और तुमपर अपनी अनुकम्पा पूर्ण कर दे और तुम्हें सीधे मार्ग पर चलाए,
48:3  وَيَنصُرَكَ اللَّهُ نَصْرًا عَزِيزًا
और अल्लाह तुम्हें प्रभावकारी सहायता प्रदान करे।
48:4  هُوَ الَّذِي أَنزَلَ السَّكِينَةَ فِي قُلُوبِ الْمُؤْمِنِينَ لِيَزْدَادُوا إِيمَانًا مَّعَ إِيمَانِهِمْ ۗ وَلِلَّهِ جُنُودُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا
वही है जिसने ईमानवालों के दिलों में सकीना (प्रशान्ति) उतारी, ताकि अपने ईमान के साथ वे और ईमान की अभिवृद्धि करें - आकाशों और धरती की सभी सेनाएँ अल्लाह ही की हैं, और अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है।
48:5  لِّيُدْخِلَ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَيُكَفِّرَ عَنْهُمْ سَيِّئَاتِهِمْ ۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عِندَ اللَّهِ فَوْزًا عَظِيمًا
ताकि वह मोमिन पुरुषों और मोमिन स्त्रियों को ऐसे बाग़ों में दाख़िल करे जिनके नीचे नहरें बहती होंगी कि वे उनमें सदैव रहें और उनसे उनकी बुराइयाँ दूर कर दे - यह अल्लाह के यहाँ बड़ी सफलता है।
48:6  وَيُعَذِّبَ الْمُنَافِقِينَ وَالْمُنَافِقَاتِ وَالْمُشْرِكِينَ وَالْمُشْرِكَاتِ الظَّانِّينَ بِاللَّهِ ظَنَّ السَّوْءِ ۚ عَلَيْهِمْ دَائِرَةُ السَّوْءِ ۖ وَغَضِبَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ وَلَعَنَهُمْ وَأَعَدَّ لَهُمْ جَهَنَّمَ ۖ وَسَاءَتْ مَصِيرًا
और कपटाचारी पुरुषों और कपटाचारी स्त्रियों और बहुदेववादी पुरुषों और बहुदेववादी स्त्रियों को, जो अल्लाह के बारे में बुरा गुमान रखते हैं, यातना दे। उन्हीं पर बुराई की गर्दिश है। उनपर अल्लाह का क्रोध हुआ और उसने उनपर लानत की, और उसने उनके लिए जहन्नम तैयार कर रखा है, और वह अत्यन्त बुरा ठिकाना है!
48:7  وَلِلَّهِ جُنُودُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا
आकाशों और धरती की सब सेनाएँ अल्लाह ही की हैं। अल्लाह प्रभुत्वशाली, अत्यन्त तत्वदर्शी है।
48:8  إِنَّا أَرْسَلْنَاكَ شَاهِدًا وَمُبَشِّرًا وَنَذِيرًا
निश्चय ही हमने तुम्हें गवाही देनेवाला और शुभ सूचना देनेवाला और सचेतकर्त्ता बनाकर भेजा,
48:9  لِّتُؤْمِنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَتُعَزِّرُوهُ وَتُوَقِّرُوهُ وَتُسَبِّحُوهُ بُكْرَةً وَأَصِيلًا
ताकि तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ, उसे सहायता पहुँचाओ और उसका आदर करो, और प्रातःकाल और संध्या समय उसकी तसबीह करते रहो।
48:10  إِنَّ الَّذِينَ يُبَايِعُونَكَ إِنَّمَا يُبَايِعُونَ اللَّهَ يَدُ اللَّهِ فَوْقَ أَيْدِيهِمْ ۚ فَمَن نَّكَثَ فَإِنَّمَا يَنكُثُ عَلَىٰ نَفْسِهِ ۖ وَمَنْ أَوْفَىٰ بِمَا عَاهَدَ عَلَيْهُ اللَّهَ فَسَيُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا
(ऐ नबी) वे लोग जो तुमसे बैअत करते हैं वे तो वास्तव में अल्लाह ही से बैअत करते हैं। उनके हाथों के ऊपर अल्लाह का हाथ होता है। फिर जिस किसी ने वचन भंग किया तो वह वचन भंग करके उसका वबाल अपने ही सिर लेता है, किन्तु जिसने उस प्रतिज्ञा को पूरा किया जो उसने अल्लाह से की है तो उसे वह बड़ा बदला प्रदान करेगा।
48:11  سَيَقُولُ لَكَ الْمُخَلَّفُونَ مِنَ الْأَعْرَابِ شَغَلَتْنَا أَمْوَالُنَا وَأَهْلُونَا فَاسْتَغْفِرْ لَنَا ۚ يَقُولُونَ بِأَلْسِنَتِهِم مَّا لَيْسَ فِي قُلُوبِهِمْ ۚ قُلْ فَمَن يَمْلِكُ لَكُم مِّنَ اللَّهِ شَيْئًا إِنْ أَرَادَ بِكُمْ ضَرًّا أَوْ أَرَادَ بِكُمْ نَفْعًا ۚ بَلْ كَانَ اللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا
जो बद्‌दू पीछे रह गए थे, वे अब तुमसे कहेंगे, "हमारे माल और हमारे घरवालों ने हमें व्यस्त कर रखा था; तो आप हमारे लिए क्षमा की प्रार्थना कीजिए।" वे अपनी ज़बानों से वे बातें कहते हैं जो उनके दिलों में नहीं। कहना कि, "कौन है जो अल्लाह के मुक़ाबले में तुम्हारे लिए किसी चीज़ का अधिकार रखता है, यदि वह तुम्हें कोई हानि पहुँचानी चाहे या वह तुम्हें कोई लाभ पहुँचाने का इरादा करे? बल्कि जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसकी ख़बर रखता है।
48:12  بَلْ ظَنَنتُمْ أَن لَّن يَنقَلِبَ الرَّسُولُ وَالْمُؤْمِنُونَ إِلَىٰ أَهْلِيهِمْ أَبَدًا وَزُيِّنَ ذَٰلِكَ فِي قُلُوبِكُمْ وَظَنَنتُمْ ظَنَّ السَّوْءِ وَكُنتُمْ قَوْمًا بُورًا
"नहीं, बल्कि तुमने यह समझा कि रसूल और ईमानवाले अपने घरवालों की ओर लौटकर कभी न आएँगे और यह तुम्हारे दिलों को अच्छा लगा। तुमने तो बहुत बुरे गुमान किए और तुम्हीं लोग हुए तबाही में पड़नेवाले।"
48:13  وَمَن لَّمْ يُؤْمِن بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ فَإِنَّا أَعْتَدْنَا لِلْكَافِرِينَ سَعِيرًا
और जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान न लाया, तो हमने भी इनकार करनेवालों के लिए भड़कती आग तैयार कर रखी है।
48:14  وَلِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ يَغْفِرُ لِمَن يَشَاءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَاءُ ۚ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا
अल्लाह ही की है आकाशों और धरती की बादशाही। वह जिसे चाहे क्षमा करे और जिसे चाहे यातना दे। और अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।
48:15  سَيَقُولُ الْمُخَلَّفُونَ إِذَا انطَلَقْتُمْ إِلَىٰ مَغَانِمَ لِتَأْخُذُوهَا ذَرُونَا نَتَّبِعْكُمْ ۖ يُرِيدُونَ أَن يُبَدِّلُوا كَلَامَ اللَّهِ ۚ قُل لَّن تَتَّبِعُونَا كَذَٰلِكُمْ قَالَ اللَّهُ مِن قَبْلُ ۖ فَسَيَقُولُونَ بَلْ تَحْسُدُونَنَا ۚ بَلْ كَانُوا لَا يَفْقَهُونَ إِلَّا قَلِيلًا
जब तुम ग़नीमतों को प्राप्त करने के लिए उनकी ओर चलोगे तो पीछे रहनेवाले कहेंगे, "हमें भी अनुमति दी जाए कि हम तुम्हारे साथ चलें।" वे चाहते हैं कि अल्लाह के कथन को बदल दें। कह देना, "तुम हमारे साथ कदापि नहीं चल सकते। अल्लाह ने पहले ही ऐसा कह दिया है।" इसपर वे कहेंगे, "नहीं, बल्कि तुम हमसे ईर्ष्या कर रहे हो।" नहीं, बल्कि वे लोग समझते थोड़े ही हैं।
48:16  قُل لِّلْمُخَلَّفِينَ مِنَ الْأَعْرَابِ سَتُدْعَوْنَ إِلَىٰ قَوْمٍ أُولِي بَأْسٍ شَدِيدٍ تُقَاتِلُونَهُمْ أَوْ يُسْلِمُونَ ۖ فَإِن تُطِيعُوا يُؤْتِكُمُ اللَّهُ أَجْرًا حَسَنًا ۖ وَإِن تَتَوَلَّوْا كَمَا تَوَلَّيْتُم مِّن قَبْلُ يُعَذِّبْكُمْ عَذَابًا أَلِيمًا
पीछे रह जानेवाले बद्‌दूओं से कहना, "शीघ्र ही तुम्हें ऐसे लोगों की ओर बुलाया जाएगा जो बड़े युद्धवीर हैं कि तुम उनसे लड़ो या वे आज्ञाकारी हो जाएँ। तो यदि तुम आज्ञापालन करोगे तो अल्लाह तुम्हें अच्छा बदला प्रदान करेगा। किन्तु यदि तुम फिर गए, जैसे पहले फिर गए थे, तो वह तुम्हें दुखद यातना देगा।"
48:17  لَّيْسَ عَلَى الْأَعْمَىٰ حَرَجٌ وَلَا عَلَى الْأَعْرَجِ حَرَجٌ وَلَا عَلَى الْمَرِيضِ حَرَجٌ ۗ وَمَن يُطِعِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ يُدْخِلْهُ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۖ وَمَن يَتَوَلَّ يُعَذِّبْهُ عَذَابًا أَلِيمًا
न अन्धे के लिए कोई हरज है, न लँगड़े के लिए कोई हरज है और न बीमार के लिए कोई हरज है। जो भी अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करेगा, उसे वह ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी, किन्तु जो मुँह फेरेगा उसे वह दुखद यातना देगा।
48:18  لَّقَدْ رَضِيَ اللَّهُ عَنِ الْمُؤْمِنِينَ إِذْ يُبَايِعُونَكَ تَحْتَ الشَّجَرَةِ فَعَلِمَ مَا فِي قُلُوبِهِمْ فَأَنزَلَ السَّكِينَةَ عَلَيْهِمْ وَأَثَابَهُمْ فَتْحًا قَرِيبًا
निश्चय ही अल्लाह मोमिनों से प्रसन्न हुआ, जब वे वृक्ष के नीचे तुमसे बैअत कर रहे थे। उसने उसे जान लिया जो कुछ उनके दिलों में था। अतः उनपर उसने सकीना (प्रशान्ति) उतारी और बदले में उन्हें शीघ्र मिलनेवाली विजय निश्चित कर दी;
48:19  وَمَغَانِمَ كَثِيرَةً يَأْخُذُونَهَا ۗ وَكَانَ اللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا
और बहुत-सी ग़नीमतें भी, जिन्हें वे प्राप्त करेंगे। अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।
48:20  وَعَدَكُمُ اللَّهُ مَغَانِمَ كَثِيرَةً تَأْخُذُونَهَا فَعَجَّلَ لَكُمْ هَٰذِهِ وَكَفَّ أَيْدِيَ النَّاسِ عَنكُمْ وَلِتَكُونَ آيَةً لِّلْمُؤْمِنِينَ وَيَهْدِيَكُمْ صِرَاطًا مُّسْتَقِيمًا
अल्लाह ने तुमसे बहुत-सी गनीमतों का वादा किया है, जिन्हें तुम प्राप्त करोगे। यह विजय तो उसने तुम्हें तात्कालिक रूप से निश्चित कर दी। और लोगों के हाथ तुमसे रोक दिए (कि वे तुमपर आक्रमण करने का साहस न कर सकें) और ताकि ईमानवालों के लिए एक निशानी हो। और वह सीधे मार्ग की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन करे।
48:21  وَأُخْرَىٰ لَمْ تَقْدِرُوا عَلَيْهَا قَدْ أَحَاطَ اللَّهُ بِهَا ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرًا
इसके अतिरिक्त दूसरी और विजय का भी वादा है, जिसकी सामर्थ्य अभी तुम्हें प्राप्त नहीं, उन्हें अल्लाह ने घेर रखा है। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।
48:22  وَلَوْ قَاتَلَكُمُ الَّذِينَ كَفَرُوا لَوَلَّوُا الْأَدْبَارَ ثُمَّ لَا يَجِدُونَ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا
यदि (मक्का के) इनकार करनेवाले तुमसे लड़ते तो अवश्य ही पीठ फेर जाते। फिर यह भी कि वे न तो कोई संरक्षक पाएँगे और न कोई सहायक।
48:23  سُنَّةَ اللَّهِ الَّتِي قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلُ ۖ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّةِ اللَّهِ تَبْدِيلًا
यह अल्लाह की उस रीति के अनुकूल है जो पहले से चली आई है, और तुम अल्लाह की रीति में कदापि कोई परिवर्तन न पाओगे।
48:24  وَهُوَ الَّذِي كَفَّ أَيْدِيَهُمْ عَنكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ عَنْهُم بِبَطْنِ مَكَّةَ مِن بَعْدِ أَنْ أَظْفَرَكُمْ عَلَيْهِمْ ۚ وَكَانَ اللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرًا
वही है जिसने उसके हाथ तुमसे और तुम्हारे हाथ उनसे मक्के की घाटी में रोक दिए, इसके पश्चात कि वह तुम्हें उनपर प्रभावी कर चुका था। अल्लाह उसे देख रहा था जो कुछ तुम कर रहे थे।
48:25  هُمُ الَّذِينَ كَفَرُوا وَصَدُّوكُمْ عَنِ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَالْهَدْيَ مَعْكُوفًا أَن يَبْلُغَ مَحِلَّهُ ۚ وَلَوْلَا رِجَالٌ مُّؤْمِنُونَ وَنِسَاءٌ مُّؤْمِنَاتٌ لَّمْ تَعْلَمُوهُمْ أَن تَطَئُوهُمْ فَتُصِيبَكُم مِّنْهُم مَّعَرَّةٌ بِغَيْرِ عِلْمٍ ۖ لِّيُدْخِلَ اللَّهُ فِي رَحْمَتِهِ مَن يَشَاءُ ۚ لَوْ تَزَيَّلُوا لَعَذَّبْنَا الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا
ये वही लोग तो हैं जिन्होंने इनकार किया और तुम्हें मस्जिदे हराम (काबा) से रोक दिया और क़ुरबानी के बँधे हुए जानवरों को भी इससे रोके रखा कि वे अपने ठिकाने पर पहुँचें। यदि यह ख़याल न होता कि बहुत-से मोमिन पुरुष और मोमिन स्त्रियाँ (मक्का में) मौजूद हैं, जिन्हें तुम नहीं जानते, उन्हें कुचल दोगे, फिर उनके सिलसिले में अनजाने तुमपर इल्ज़ाम आएगा (तो युद्ध की अनुमति दे दी जाती, अनुमति इसलिए नहीं दी गई) ताकि अल्लाह जिसे चाहे अपनी दयालुता में दाख़िल कर ले। यदि वे ईमानवाले अलग हो गए होते तो उनमें से जिन लोगों ने इनकार किया उनको हम अवश्य दुखद यातना देते।
48:26  إِذْ جَعَلَ الَّذِينَ كَفَرُوا فِي قُلُوبِهِمُ الْحَمِيَّةَ حَمِيَّةَ الْجَاهِلِيَّةِ فَأَنزَلَ اللَّهُ سَكِينَتَهُ عَلَىٰ رَسُولِهِ وَعَلَى الْمُؤْمِنِينَ وَأَلْزَمَهُمْ كَلِمَةَ التَّقْوَىٰ وَكَانُوا أَحَقَّ بِهَا وَأَهْلَهَا ۚ وَكَانَ اللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمًا
याद करो जब इनकार करनेवाले लोगों ने अपने दिलों में हठ को जगह दी, अज्ञानपूर्ण हठ को; तो अल्लाह ने अपने रसूल पर और ईमानवालों पर सकीना (प्रशान्ति) उतारी और उन्हें परहेज़गारी (धर्मपरायणता) की बात का पाबन्द रखा। वे इसके ज़्यादा हक़दार और इसके योग्य भी थे। अल्लाह तो हर चीज़ जानता है।
48:27  لَّقَدْ صَدَقَ اللَّهُ رَسُولَهُ الرُّؤْيَا بِالْحَقِّ ۖ لَتَدْخُلُنَّ الْمَسْجِدَ الْحَرَامَ إِن شَاءَ اللَّهُ آمِنِينَ مُحَلِّقِينَ رُءُوسَكُمْ وَمُقَصِّرِينَ لَا تَخَافُونَ ۖ فَعَلِمَ مَا لَمْ تَعْلَمُوا فَجَعَلَ مِن دُونِ ذَٰلِكَ فَتْحًا قَرِيبًا
निश्चय ही अल्लाह ने अपने रसूल को हक़ के साथ सच्चा स्वप्न दिखाया, "यदि अल्लाह ने चाहा तो तुम अवश्य मस्जिदे हराम (काबा) में प्रवेश करोगे बेखटके, अपने सिर के बाल मुड़ाते और कतरवाते हुए, तुम्हें कोई भय न होगा।" हुआ यह कि उसने वह बात जान ली जो तुमने नहीं जानी। अतः इससे पहले उसने शीघ्र प्राप्त होनेवाली विजय तुम्हारे लिए निश्चित कर दी।
48:28  هُوَ الَّذِي أَرْسَلَ رَسُولَهُ بِالْهُدَىٰ وَدِينِ الْحَقِّ لِيُظْهِرَهُ عَلَى الدِّينِ كُلِّهِ ۚ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ شَهِيدًا
वही है जिसने अपने रसूल को मार्गदर्शन और सत्यधर्म के साथ भेजा, ताकि उसे पूरे के पूरे धर्म पर प्रभुत्व प्रदान करे और गवाह की हैसियत से अल्लाह काफ़ी है।
48:29  مُّحَمَّدٌ رَّسُولُ اللَّهِ ۚ وَالَّذِينَ مَعَهُ أَشِدَّاءُ عَلَى الْكُفَّارِ رُحَمَاءُ بَيْنَهُمْ ۖ تَرَاهُمْ رُكَّعًا سُجَّدًا يَبْتَغُونَ فَضْلًا مِّنَ اللَّهِ وَرِضْوَانًا ۖ سِيمَاهُمْ فِي وُجُوهِهِم مِّنْ أَثَرِ السُّجُودِ ۚ ذَٰلِكَ مَثَلُهُمْ فِي التَّوْرَاةِ ۚ وَمَثَلُهُمْ فِي الْإِنجِيلِ كَزَرْعٍ أَخْرَجَ شَطْأَهُ فَآزَرَهُ فَاسْتَغْلَظَ فَاسْتَوَىٰ عَلَىٰ سُوقِهِ يُعْجِبُ الزُّرَّاعَ لِيَغِيظَ بِهِمُ الْكُفَّارَ ۗ وَعَدَ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ مِنْهُم مَّغْفِرَةً وَأَجْرًا عَظِيمًا
अल्लाह के रसूल मुहम्मद और जो लोग उनके साथ हैं, वे इनकार करनेवालों पर भारी हैं, आपस में दयालु हैं। तुम उन्हें रुकू में, सजदे में, अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता चाहते हुए देखोगे। वे अपने चहरों से पहचाने जाते हैं जिनपर सजदों का प्रभाव है। यही उनकी विशेषता तौरात में और उनकी विशेषता इंजील में उस खेती की तरह उल्लिखित है जिसने अपना अंकुर निकाला; फिर उसे शक्ति पहुँचाई तो वह मोटा हुआ और वह अपने तने पर सीधा खड़ा हो गया। खेती करनेवालों को भा रहा है, ताकि उनसे इनकार करनेवालों का जी जलाए। उनमें से जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनसे अल्लाह ने क्षमा और बदले का वादा किया है।