100.सूरह अल आदियात 100:1 وَالْعَادِيَاتِ ضَبْحًا
साक्षी है जो हाँफते-फुँकार मारते हुए दौड़ते हैं,
100:2 فَالْمُورِيَاتِ قَدْحًا
फिर ठोकरों से चिनगारियाँ निकालते हैं,
100:3 فَالْمُغِيرَاتِ صُبْحًا
फिर सुबह सवेरे धावा मारते होते हैं,
100:4 فَأَثَرْنَ بِهِ نَقْعًا
उसमें उठाया उन्होंने गर्द-ग़ुबार।
100:5 فَوَسَطْنَ بِهِ جَمْعًا
और इसी हाल में वे दल में जा घुसे।
100:6 إِنَّ الْإِنسَانَ لِرَبِّهِ لَكَنُودٌ
निस्संदेह मनुष्य अपने रब का बड़ा अकृतज्ञ है,
100:7 وَإِنَّهُ عَلَىٰ ذَٰلِكَ لَشَهِيدٌ
और निश्चय ही वह स्वयं इसपर गवाह है!
100:8 وَإِنَّهُ لِحُبِّ الْخَيْرِ لَشَدِيدٌ
और निश्चय ही वह धन के मोह में बड़ा दृढ़ है।
100:9 أَفَلَا يَعْلَمُ إِذَا بُعْثِرَ مَا فِي الْقُبُورِ
तो क्या वह जानता नहीं जब उगलवा लिया जाएगा जो क़ब्रों में है।
100:10 وَحُصِّلَ مَا فِي الصُّدُورِ
और स्पष्ट अनावृत्त कर दिया जाएगा जो कुछ सीनों में है।
100:11 إِنَّ رَبَّهُم بِهِمْ يَوْمَئِذٍ لَّخَبِيرٌ
निस्संदेह उनका रब उस दिन उनकी पूरी ख़बर रखता होगा।