ज़कात


ज़कात इस्लाम के अरकान(स्तम्भों) में से तीसरा रुक्न(स्तम्भ) है, ज़कात का संपर्क हुखूंखुंल्लाह(अल्लाह सुब्हानहु के अधिकार उसके बन्दों पर) हुखूंखुंलइबाद(बन्दों के अधिकार बन्दों पर) दोनों से है, यह एक प्रकार की आराधना भी है, आर्थिक दायित्व भी हैऔर इस्लामी अर्थव्यवस्था का भाग भी है।

 

सूचि

 

ज़कात का शाब्दिक अर्थ

ज़कात का शाब्दिक अर्थ "बढ़ना", "परवान चढ़ाना", "विकास होना" एवं स्वच्छ होना के होता है । (अल खांमूसुल मुहीत)

 

ज़कात का धार्मिक अर्थ(इस्लामी अर्थ)

विशिष्ट माल के विशिष्ट भाग को निकाल कर विशिष्ट लोगों को अल्लाह सुब्हानहु तआला की बंदगी के लिये देने का नाम ज़कात है। (अश्शारहुल मुमातता) ज़कात एक ऐसा अधिकार है जो हमारे धन-सम्पत्ति में अनिवार्य है जिसे किसी भिक्षुक, निर्धन(ज़रूरतमंद) एवं ग़रीब या इसी के प्रकार किसी ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है जिसको देने का आदेश दिया गया हो तथा जो धार्मिक रूप से इसके योग्य हो एवं वह उन सारी शर्तों तथा नियमों पर भी पूरा उतरता हो जो ज़कात लेने वालों के लिये बनाई गईं हैं। (अल-फ़िक़्हुलइस्लामी व अदिल्लतुहु)

 

क़ुरआन

क़ुरआन करीम मेँ ८२ बार नमाज़ के साथ साथ ज़कात का आदेश भी आया है, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "नमाज़ का आयोजन करो एवं ज़कात देते रहा करो (अल मुज़म्मिल :२०) और कहते हैं "आप उनके माल में से दान(ज़कात) ले लिजिये जिस के माध्यम से आप उनको पाक स्वच्छ करदें और उनके लिये दुआ(प्रार्थना)करें निसंदेह आपकी दुआ(प्रार्थना)उनके लिये संतोष का कारण है तथा अल्लाह सुब्हानहु तआला बड़ा सुनने वाला एवं बड़ा ही ज्ञान रखने वाला है"। (सूरा तौबह : १०३)

 

हदीस

मुहम्मद सललेल्लाहु अलैही वसल्लम ने कहा "इस्लाम धर्म की बुनियाद ५ चीज़ों पर है, इस बात की गवाही देना कि अल्लाह सुब्हानहु तआला के सिवा कोई इबादत(पूज्ये) के योग्य नहीं एवं मुहम्मद सललेल्लाहु अलैही वसल्लम उसके बन्दे(भक्त) और रसूल हैं, नमाज़ का आयोजन करना, ज़कात देना, हज करना तथा रमज़ान के रोज़े रखना"।(सही बुख़ारी :८, सही मुस्लिम :१६)

 

हदीस २. मुहम्मद सललेल्लाहु अलैही वसल्लम ने जब मआज़ इब्ने जबल रज़ियल्लाहु अन्हु को यमन(Yemen) की ओर भेजा तो कहा "तुम लोगों को इस कालिमा की गवाही की ओर बुलाना कि अल्लाह सुब्हानहु तआला के सिवा कोई इबादत(पूज्ये) के योग्य नहीं एवं मैं(अर्थात मुहम्मद सललेल्लाहु अलैही वसल्लम)अल्लाह सुब्हानहु का रसूल हूँ यदि वे लोक इस बात को मान ले तो फ़िर उन्हें बताना कि अल्लाह सुब्हानहु तआला ने उनपर हर दिन ५ नमाज़ें अनिवार्य की हैं यदि वे इस बात को भी मान ले तो फ़िर उन्हें बताना कि अल्लाह सुब्हानहु तआला ने उनके माल में कुछ दान अनिवार्य किया है जो उनके धनी लोक से लेकर उनके गरीबों में लौटा दिया जाए ग" (सही बुख़ारी :१३९५ , सही मुस्लिम :१९)

 

ज़कात कब लागू होती है

जब विशिष्ट माल धर्म अनुसार बताए गए निसाब(Criteria)तक पहुंचे, (२). तथा ऊस विशिष्ट माल पर १ वर्षका समय बीत जाए l

 

ज़कात का प्रयोजन:यह माल को एक ही हाथ में निवेदन होने से रोकती है एवं उसे प्रत्येक निर्धनों(ज़रूरतमंद) तथा ग़रीबों में फैलाती है, यह मनुष्य के मन में निर्धनों(ज़रूरतमंदों) एवं ग़रीबों के प्रति दयालुता एवं कृपा की भावना को जनम देती है, आत्मा को पवित्र करती है एवं बंदे(भक्त) को अल्लाह सुब्हानहु तआला से जोड़े रखती है ।

 

ज़कात के योग्य लोग

अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "सदखें(दान) तो केवल ग़रीबों एवं निर्धनों(ज़रूरतमंदों) एवं उसके प्राप्तकर्ता(वसूल करने वाले) लोक के लिये है एवं उन लोक के लिये जिनके दिलों को आकर्षितकरना हो एवं गर्दनों को छुड़ाने में एवं ख़रज़दारों के लिये एवं अल्लाह सुब्हानहु के मार्ग(राह) में एवं यात्रियों के लिये (अनिवार्य) है,अल्लाह सुब्हानहु की ओर से तथा अल्लाह सुब्हानहु ज्ञान रखने वाला एवं अत्यंत बुद्धिमत्ता वाला है"। (सूरा तौबह : ६०)

 

ज़कात ना देने पर चेतावनी

अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "अय ईमान वालों! बहुधा बहुत से विद्वान तथा पुजारी(सदैव पूजा में व्यस्त रहने वाले), लोगों का माल बिना अधिकार के खा जाते हैं एवं लोगों को अल्लाह सुब्हानहु के मार्ग से रोक देते हैं और जो लोक सोने चांदी की निधि रखते हैं(सोने चांदी को एकत्र करके रखते हैं) तथा अल्लाह सुब्हानहु के मार्ग में खंर्च नहीं करते उन्हें पीड़ाकर पापकष्ट(अज़ाब) की शुभ सूचना दे दीजिये. जिस दिन उस निधि को नरक की आग में तपाया जाएगा फ़िर उससे उनके माथे तथा पहलूओं तथा पीठों को दाग़ा जाएगा (उनसे कहा जाएगा) यह है जिसे तुमने अपने लिये निधि बना कर रखा था तो अब तुम अपने निधान का मज़ा चखो"। (सूरा तौबह: ३४-३५)

 

हदीस :मुहम्मद सललेल्लाहु अलैही वसल्लम ने कहा "जिसे अल्लाह सुब्हानहु ने धन संपत्ति दी और उसने उसकी ज़कात नहीं दी तोखंयामत(पुनर्जागरण) के दिन उसका धन विषमय सांप का रूप में आएगा उसकी आँखों के पास सांप के प्रकार दो काले बिंदु(dot) होगें, फ़िर वह सांप उसके दोनों जबड़ों से उसे पकड़ लेगा और उससे कहेगा मैं तेरा माल हूँ तेरा संजोया हुआ धन हूँ फ़िर मुहम्मद सललेल्लाहु अलैही वसल्लम ने यह आयत पढ़ी "तथा वे लोक यह ना सोचे कि अल्लाह सुब्हानहु ने उन्हें जो कुछ अपने प्राथमिकता(preference) से दिया वे उसपर अपनी कृपणता से काम लेते हैं कि उनका माल उनके लिये श्रेष्ठ है बल्कि वह अत्यंत बुरा माल है जिसके विषय में उन्हूं ने कृपणता की है, खंयामत(पुनर्जागरण) के दिन उसि माल का तौखं बनाकर उनकी गर्दन में डाला जाएगा" (सही बुख़ारी :१४०३ )

 

ज़कात के लाभ

(१). ज़कात से ग़रीबों तथा निर्धनों(ज़रूरतमंदों) की बुनियादी आवश्यकताओं पूरी होती हैं, (२). समाज के दो तबखों के बीच दयालुता से सम्पूर्ण ताल मेल का जनम होता है, (३).ज़कात से मनुष्य का मन तथा धन दोनों पाक स्वच्छ होते हैं, (४). ज़कात के माध्यम से  मनुष्य के अंदर श्रेष्ठ प्रशंसनीय गुण पैदा होते हैं, (४). यह बन्दे(भक्त) को अल्लाह सुब्हानहु के क़रीब करके उसके ईमान में बढ़ोतरी करती है, (६). ज़कात देने के कारण से अल्लाह सुब्हानहु तआला हमारे पापों को क्षमा करदेता है, (७). ज़कात देने के कारण से समाज में फैले हुए अपराध कम होते जाते हैं क्यूंकि अधिक अपराध ग़रीबी तथा क्षुधा के कारण से ही होते हैं, (८). अल्लाह सुब्हानहु तआला ने हमें जो धन संपत्ति प्रदान की उसके कारण हम पर जो अल्लाह सुब्हानहु तआला का धन्यवाद अनिवार्य होता है ज़कात के माध्यम से हम उसका श्रेष्ठतर धन्यवाद कर पाते हैं।

 

और देखये

अरकाने ईमान( ईमान के स्तम्भ) ,अरकाने इस्लाम(इस्लाम के स्तम्भ), इबादत(अराधना), सद्खां, ज़कात का निसाब और अन्य ।

 

संदर्भ

किताब अश्शारहुल मुमातता,शेख़ इब्ने उस्मैन, फ़तावा अश-शेख़ इब्ने उस्मैन ।

http://www.askislampedia.com/ur/wiki/-/wiki/Urdu_wiki/%D8%B2%DA%A9%D9%88%DB%83

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