हज्ज (हज)


इस्लाम के ५ (5) स्तंभ (pillar) है,

१ . "शहादत" यानि "गवाही देना": अल्लाह (सुब्हानहु तआला) एक है और मुहम्मद (सललेल्लाहु अलैही वसल्लम) उसके रसूल हैं।

२ . सलाह (नमाज़)

३ . ज़कात

४. तीर्थयात्रा(हज) और

५ .रोज़ा(सौम)

 

इन ५मूलस्तंभके बारे में हदीस ऐ जिब्रील में बताया जाया (सहीह मुस्लिम१:१  सहीहुलबुखांरी १ :८)

 

हज्ज सर्वश्रेष्ठ उपासनाओं और महान आज्ञाकारिताओं में से है, और वह इस्लाम के स्तंभों में से एक स्तंभ है जिसके साथ अल्लाह तआला ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भेजा है और जिसके बिना बंदे का धर्म संपूर्ण नहीं हो सकता।

 

विषय सूची

 

खुरान

 अल्लाह फरमाते है: अल्लाह ने उनलोगों पर जो इस की रस्ते की तरफ जाने योग्य है उसे हज्ज फ़र्ज़ करदिया है। खुरान सुरह अले इमरान 3 :आयात 97

 

कामों की स्वीकृति के लिए शर्तेँ

दो चीज़ों के बिना किसी इबादत के द्वारा अल्लाह तआला की निकटता प्राप्त नहीं होती और न ही वह इबादत स्वीकार होती हैः

 

पहली:

अल्लाह सर्वशक्तिमान के लिए निःस्वार्थता (इख्लास) है इस प्रकार कि उसके द्वारा उसका उद्देश्य अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करना और आखिरत का दिन हो, वह उसके द्वारा दिखावा, पाखंड और सांसारिक लांभ का इच्छुक न हो।

 

दूसरा:

करनी और कथन में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुपालन करना, और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुपालन करना आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत की जानकारी के बिना संपूर्ण नहीं हो सकती।

 

इसीलिए उस व्यक्ति पर, जो किसी इबादत - हज्ज या उसके अलावा - के द्वारा अल्लाह की उपासना करना चाहता है, यह अनिवार्य है कि वह उसके अंदर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तरीक़े को सीखे ताकि उसका कार्य सुन्नत के अनुसार हो।

 

हज्ज के प्रकार

हज्ज के तीन प्रकार हैं :

१.   हज्ज ए तमत्तुअ़  

२.   हज्ज ए इफ्राद 

३.   हज्ज ए क़िरान

 

१. हज्ज ए तमत्तुअ़ 

यह है कि हज्ज करने वाला हज्ज के महीनों में (और हज्ज के महीने शव्वाल, ज़ुल-क़ादा, और ज़ुल-हिज्जा हैं। देखिये: अश्शर्हुल मुम्ते 7/62) केवल उम्रा का एहराम बांधे। जब मक्का पहुँच जाए तो उम्रा के लिए तवाफ और सई करे, अपने सिर के बाल मुँडा ले या उन्हें छोटे करवा ले और अपने एहराम से हलाल हो जाए (अर्थात एहराम के कपड़े उतार दे और एहराम की पाबंदी खत्म बर दे)। जब तर्विया अर्थात आठ ज़ुल-हिज्जा का दिन आए तो केवल हज्ज का एहराम बांधे और उसके सभी कार्यों को करे। तमत्तुअ करने वाला संपूर्ण उम्रा करता है और संपूर्ण हज्ज करता है।

 

२. हज्ज ए इफ्राद 

हज्ज करने वाला केवल हज्ज का एहराम बांधे (अर्थात केवल हज्ज की नीयत करे)। जब मक्का पहुँच जाए तो तवाफे क़ुदूम (आगमन का तवाफ़) करे और हज्ज के लिए सई करे, तथा सिर के बाल न मुंडाए और न उसे छोटा करवाए, और अपने एहराम से हलाल न हो, बल्कि वह मोहरमि बाक़ी रहे यहाँ तक कि वह ईद के दिन जमरतुल अक़बा को कंकरी मारने के बाद हलाल हो, और यदि हज्ज की सई को हज्ज का तवाफ करने के बाद तक विलंब कर दे तो कोई आपत्ति की बात नहीं है।

 

३. हज्ज ए क़िरान

हज्ज करने वाला उम्रा और हज्ज का एक साथ एहराम बांधे (अर्थात नीयत करे) या पहले उम्रा का एहराम बांधे फिर उसका तवाफ आरंभ करने से पहले उस के साथ हज्ज को भी सम्मिलित कर ले, (इस प्रकार कि वह इस बात की नीयत करे कि उसका तवाफ और उसकी सई उसके हज्ज और उम्रा की है).

 

क़िरान हज्ज करने वाले का काम इफ्राद हज्ज करने वाले के काम के समान है, केवल इतना अंतर है कि क़िरान करने वाले पर हदी (जानवर की क़ुर्बानी) अनिवार्य है और इफ्राद हज्ज करने वाले पर हदी अनिवार्य नहीं है।

 

हज्ज के इन तीनों प्रकार में सबसे श्रेष्ठ तमत्तुअ हज्ज है, इसी का नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम को आदेश दिया था और इसी पर बल दिया था, यहाँ तक कि यदि मनुष्य क़िरान हज्ज या इफ्राद हज्ज की नीयत करे तब भी उसके लिए महत्वाकांक्षिक बात यह है कि वह अपने एहराम को उम्रा में परिवर्तित कर दे फिर वह हलाल हो जाए ताकि वह तमत्तुअ हज्ज करने वाला हो जाए, चाहे यह तवाफे क़ुदूम और सई करने के बाद ही क्यों न हो, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जब हज्जतुल वदाअ़ के साल तवाफ और सई कर लिया और आपके साथ आपके सहाबा भी थे तो आप ने हर उस व्यक्ति को जिसके पास हदी नहीं थी, अपने एहराम (हज्ज की नीयत) को उम्रा में बदलने और बाल कटवाकर हलाल हो जाने का आदेश दिया और फरमाया : “यदि मैं अपने साथ हदी को न लाया होता तो उसी तरह करता जिसका मैं ने तुम्हें आदेश दिया है।”

 

एहराम

यहाँ एहराम की उन सुन्नतों को किया जायेगा जैसे - स्नान करना, सुगंध लगाना और नमाज़ पढ़ना।

 

फिर अपनी नमाज़ से फारिग होने के बाद या अपनी सवारी पर बैठने के बाद एहराम बांधे (अर्थात हज्ज की इबादत में प्रवेश करने की नीयत करे)

  • फिर यदि वह तमत्तुअ करने वाला है तो : “लब्बैका अल्लाहुम्मा बि- उम्रह” कहे।
  • यदि वह हज्ज क़िरान करने वाला है तो : “लब्बैका अल्लाहुम्मा बि-हज्जतिन व उम्रह” कहे।
  • और यदि वह इफ्राद हज्ज करने वाला है तो : “लब्बैका अल्लाहुम्मा हज्जा” कहे।
  • फिर कहे : अल्लाहुम्मा हाज़िही हज्जतुन ला रियाआ फीहा वला सुमअह (ऐ अल्लाह यह ऐसा हज्ज है जिसमें कोई दिखावा और पाखंड नहीं है)।
  • फिर वही तल्बिया पढ़े जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पढ़ी थी और वह यह है :
  • “लब्बैका, अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैका ला शरीका लका लब्बैक, इन्नल हम्दा वन्नेमता लका वल मुल्क, ला शरीका लक”

 

(मैं उपस्थित हूँ, ऐ अल्लाह मैं उपस्थित हूँ, मैं उपस्थित हूँ, तेरा कोई साझी नहीं, मैं उपस्थित हूँ, हर प्रकार की स्तुति और सभी नेमतें तथा राज्य तेरा ही है, तेरा कोई साझी नहीं।)

 

तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तल्बिया में से ये शब्द भी हैं: “लब्बैका इलाहल हक़्क़” (ऐ सत्य पूज्य मैं उपस्थित हूँ)। तथा इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु तल्बियह में इन शब्दों की वृद्धि करते थे : “लब्बैका व सा'दैक, वल-खैरो बि-यदैक, वर्रग़्बाओ इलैका वल अमल”। पुरूष इसे ऊँचे स्वर में कहेगा, परंतु महिला इतनी आवाज़ में कहेगी कि अपनी बगल वाली को सुना सके, लेकिन यदि उसके बगल में कोई पुरूष है जो उसका महरम नहीं है तो वह धीमी स्वर में तल्बिया पढ़ेगी।

 

यदि एहराम बांधने का इरादा रखने वाला आदमी किसी ऐसी रूकावट के पेश आने से डर रहा है जो उसे उसके हज्ज के कामों को पूरा करने से रोक सकती है (जैसे- बीमारी, दुश्मन, या क़ैद इत्यादि) तो उसके लिए उचित यह है कि वह एहराम बांधते समय शर्त लगा ले और कहे :

“इन हबसनी हाबिसुन फ-महिल्ली हैसो हबस्तनी”

(यदि मुझे कोई रूकावट पेश आ गई तो मैं वहीं हलाल हो जाऊँगा जहाँ तू मुझे रोक दे।)

 

अर्थात् यदि कोई रूकावट जैसे बीमारी या विलंब या कोई रूकावट ने मुझे अपने हज्ज के कामों को पूरा करने से रोक दिया तो मैं अपने एहराम से हलाल हो जाऊँगा - क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ज़बाअह बिंत ज़ुबैर को जबकि उन्हों ने एहराम बांधने का इरादा किया और वह बीमार थीं तो आप ने उन्हें आदेश दिया कि वह शर्त लगा लें और फरमाया : तुम्हारे लिअ अपने पालनहार पर वह चीज़ है जिसे तुम मुस्तसना (अपवाद) कर दो।” (बुखारी: हदीस संख्या : 5089,मुस्लिम: हदीस संख्या: 1207) . अतः जब भी वह शर्त लगा ले और उसे वह रूकावट पेश आ जाए जो उसे उसके हज्ज के कामों को पूरा करने से रोक दे तो वह अपने एहराम से हलाल हो जायेगा और उसके ऊपर कोई चीज़ अनिवार्य नहीं है।

 

किंतु जो व्यक्ति किसी ऐसी रूकावट के पेश आने से डर महसूस नहीं कर रहा है जो उसे उसके हज्ज के कामों को पूरा करने से रोक सकती है, तो उसके लिए शर्त लगाना उचित नहीं है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शर्त नहीं लगाई और न तो हर एक को शर्त लगाने का आदेश ही दिया है, आप ने ज़बाआ बिंत ज़ुबैर को उनके बीमारी से ग्रस्त होने के कारण इसका आदेश दिया था।

 

मेहरिम को चाहिए कि अधिक से अधिक तल्बियह पढ़े, विशेष रूप से स्थितियों और ज़माने के बदलने के समय उद्हारण के तौर पर जब किसी ऊँचाई पर चढ़े, यी नीची जगह उतरे, या रात या दिन आये। तथा उसके बाद अल्लाह तआला से उसकी प्रसन्नता और स्वर्ग का प्रश्न करे और उसकी दया व कृपा के द्वारा नरक से पनाह मांगे।

 

उम्रा के अंदर तल्बिया कहना एहराम से लेकर तवाफ शुरू करने तक धर्म संगत है।

 

और हज्ज में एहराम बांधने से लेकर ईद के दिन जमरतुल अक़बह को कंकरी मारने तक धर्म संगत है।

 

मक्का में प्रवेश करने के लिए स्नान करना :

मोहरिम के लिए उचित है कि जब वह मक्का के निकट पहुँच जाए तो उसमें प्रवेश करने के लिए यदि उसके लिए आसान है तो स्नान कर ले, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मक्का में प्रवेश करने के समय स्नान किया। (मुस्लिम: हदीस संख्या : 1259).

 

फिर जब मस्जिदुल हराम में प्रवेश करे तो अपने दाहिने पैर को पहले रखे और कहे : “बिस्मिल्लाह वस्सलातो वस्सलामो अला रसूलिल्लाह, अल्लाहुम्मग़ फिर्ली ज़ुनूबी वफ-तह् ली अब्वाबा रहमतिक, अऊज़ो बिल्लाहिल अज़ीम वबि-वज्हेहिल करीम वबि-सुल्तानिहिल क़दीम मिनश्शैतानिर्रजीम” (मैं अल्लाह के नाम से - प्रवेश करता हूँ - तथा दुरूद व सलाम हो अल्लाह के पैगंबर पर, ऐ अल्लाह ! तू मेरे लिए मेरे गुनाहों को क्षमा कर दे और मेरे लिए अपनी दया के द्वारों को खोल दे, मैं महान अल्लाह, उसके दानशील चेहरे और उसके प्राचीन राज्य की शरण में आता हूँ शापित शैतान से), फिर हज्रे अस्वद (काले पत्थर) की ओर जाए ताकि तवाफ शुरू करे।

 

फिर तवाफ करने और दो रक्अत नमाज़ पढ़ने के बाद सई करने के स्थल पर आये और सफा व मर्वा के बीच सई करे। जहाँ तक तमत्तुअ करने वाले का संबंध है तो वह उम्रा के लिए सई करेगा, लेकिन इफ्राद और क़िरान करने वाले हज्ज के लिए सई करेंगे, तथा वे दोनों तवाफे इफाज़ा के बाद तक सई को विलंब भी कर सकते हैं।

 

सिर के बाल मुंडाना या छोटे करवाना

जब वह सात चक्कर अपनी सई पूरी कर ले तो यदि वह पुरूष है तो अपने सिर को मुंडाए, या उसके बालों को छोटा करवाए, तथा ज़रूरी है कि उसका सिर मुंडाना सिर के सभी बालों के लिए हो, इसी तरह बालों को सिर के सभी ओर से छोटा करवाया जायेगा। जबकि सिर के बालों को मुंडाना उन्हें छोटा करवाने से सर्वश्रेष्ठ है। क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने “सिर के बालों को मुंडाने वालों के लिए तीन बार दुआ की और बालों को छोटा करवाने वालों के लिए एक बार दुआ फरमाई।” (मुस्लिम:हदीस संख्या : 1303).

 

हाँ, यदि हज्ज का समय इतना निकट हो कि सिर के बालों के उगने भर के लिए समय न हो तो सर्वश्रेष्ठ बालों को छोटा करवाना ही है, ताकि हज्ज में मुंडाने के लिए उसके सिर में बाल बाक़ी रहें, इस प्रमाण के आधार पर कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज्जतुल वदाअ़ के अवसर पर अपने साथियों (सहाबा) को उम्रा के लिए बाल छोटे करवाने का आदेश दिया था ; इसलिए कि उन लोगों का आगमन ज़ुल-हिज्जा के चौथे दिन की सुबह को हुआ था। जहाँ तक महिला की बात है तो वह अपने बालो से उंगली के एक पोर के बराबर काट लेगी।

 

इन कामों के कर लेने से उम्रा संपूर्ण हे जायेगा और इसके बाद वह पूरी तरह हलाल हो जायेगा, और वह उसी तरह करेगा जिस तरह कि बिना एहराम वाले लोग कपड़े पहनते हैं, सुगंध लगाते हैं और अपनी पत्नियों से संभोग करते हैं इत्यादि।

 

जहाँ तक क़िरान और इफ्राद हज्ज करने वालों का संबंध है तो वे दोनों न सिर के बाल मुंडायें गे न छोटे करवायें गे और न ही वे दोनों अपने एहराम से हलाल होंगे (एहराम नहीं खोलेंगे), बल्कि वे दोनों अपने एहराम पर बाक़ी रहेंगे यहाँ तक कि ईद के दिन जमरतुल अक़बह को कंकरी मारने और सिर मुंडाने या सिर के बाल छोटे करवाने के बाद हलाल होंगे।

 

फिर जब तर्वियह अर्थात ज़ुल-हिज्जा का आठवां दिन होगा तो तमत्तुअ हज्ज करने वाला चाश्त के समय मक्का में अपने स्थान से ही हज्ज का एहराम बांधेगा, और उसके लिए अपने हज्ज का एहराम बांधते समय वही चीज़ें करना मुस्तहब (एच्छिक) है जो उसने अपने उम्रा का एहराम बांधते समय किया था जैसे- स्नान करना, सुगंध लगाना और नमाज़ पढ़ना, चुनाँचे वह हज्ज का एहराम बांधने की नीयत करेगा और तल्बियह कहेगा, वह कहेगा : “लब्बैका अल्लाहुम्मा हज्जा” (ऐ अल्लाह मैं हज्ज की नीयत से उपस्थित हूँ)।

 

और यदि वह किसी ऐसी रूकावट के पेश आने से डर रहा है जो उसे उसके हज्ज को पूरा करने से रोक सकती है तो वह शर्त लगा ले और कहे :

“इन हबसनी हाबिसुन फ-महिल्ली हैसो हबस्तनी”

(यदि मुझे कोई रूकावट पेश आ गई तो मैं वहीं हलाल हो जाऊँगा जहाँ तू मुझे रोक दे।)

और यदि उसे किसी रूकावट के पेश आने का भय न हो तो शर्त न लगाये। तथा उसके लिए ऊँचे स्वर में तल्बियह कहना मुस्तहब है यहाँ तक कि वह ईद के दिन जमरतुल अक़बह को कंकरी मारना शुरू कर दे।

 

मिना जाना

फिर वह मिना जाए और वहाँ ज़ुहर, अस्र, मग्रिब, इशा और फज्र की नमाज़ें क़स्र करके पढ़े, दो नमाज़ों को एक साथ न पढ़े, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मिना में क़स्र करते थे, दो नमाज़ों को एकत्र करके नहीं पढ़ते थे।” क़स्र कहते हैं : चार रक्अत वाली नमाज़ों को दो रक्अत करके पढ़ना, तथा मक्का वाले और उनके अलावा अन्य लोग मिना, अरफह और मुज़दलिफा में नमाज़ को क़स्र करके पढ़ेंगे, क्योंकि हज्जतुल वदाअ़ में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों को नमाज़ पढ़ाते थे और आपके साथ मक्का वाले भी थे और आप ने उन्हें नमाज़ पूरी करने का आदेश नहीं दिया, यदि नमाज़ पूरी पढ़ना उनके ऊपर अनिवार्य होता तो आप उन्हें इसका आदेश देते जिस तरह कि आप ने उन्हें मक्का पर विजय के साल इसका आदेश दिया था। लेकिन क्योंकि मक्का की आबादी बढ़ गई और वह मिना को भी सम्मिलित हो गई और वह ऐसे हो गई कि मानो वह उसका एह मुहल्ला है इसलिए मक्का वाले उसमें नमाज़ क़स्र नहीं करते हैं।

 

अरफा जाना

जब अरफह (नौ ज़ुल-हिज्जा) के दिन सूरज उग आए तो वह मिना से अरफह की ओर प्रस्थान करेगा और ज़ुहर के समय तक यदि उसके लिए आसान है तो नमिरह में पड़ाव करेगा (नमिरह: अरफा से तुरंत पूर्व एक जगह है), नहीं तो कोई बात नहीं है, क्योंकि नमिरह में पड़ाव करना सुन्नत है अनिवार्य नहीं है। जब सूरज ढल जाए (अर्थात ज़ुहर की नमाज़ का समय शुरू हो जाए) तो ज़ुहर और अस्र की नमाज़ें दो-दो रक्अत पढ़ेगा और उन दोनों के बीच जमा तक़दीम करेगा (अर्थात दोनों को ज़ुहर के समय में पढ़ेगा जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने किया ताकि अरफा में ठहरने और दुआ करने का समय लंबा हो जाए।

 

फिर नमाज़ के बाद ज़िक्र (जप), दुआ और अल्लाह सर्वशक्तिमान से रोने गिड़गिड़ाने (विनती करने) के लिए फारिग हो जाए और उसे जो पसंद हो अपने दोनों हाथों को उठाकर क़िब्ला की ओर मुँह करके दुआ करे यद्यपि अरफात की पहाड़ी उसके पीछे हो क्योंकि सुन्नत क़िब्ला की ओर मुँह करना है पहाड़ी की ओर नहीं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पहाड़ी के पास ठहरे थे और फरमाया था : “मैं यहाँ ठहरा हूँ और पूरा अरफह ठहरने की जगह है।”

 

तथा उस महान ठहरने के स्थान पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अक्सर यह दुआ पढ़ते थे : “ला इलाहा इल्लल्लाहु वह्दहू ला शरीका लहू, लहुल मुल्को व लहुल हम्द, वहुवा अला कुल्ले शैइन क़दीर” (अल्लाह के अलावा कोई सत्य पूज्य नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं, उसी के लिए बादशाहत (राज्य) है और उसी के लिए सभी प्रशंसा है और वह हर चीज़ पर शक्तिवान है।)

 

यदि उसे उकताहट और आलस्य लगे और वह अपने साथियों के साथ लाभदायक बात चीत के द्वारा या लाभदायक किताबों को पढ़कर विशेषकर जिनका संबंध अल्लाह सर्वशक्तिमान की दानशीलता और उसके व्यापक उपहारों से है, ताकि उस दिन में आशा का पहलू मज़बूत हो तो ऐसा करना अच्छा है। इसके बाद वह फिर से अल्लाह सर्वशक्तिमान से रोने, गिड़गिड़ाने और दुआ करने में व्यस्त हो जाए और दिन के अंतिम समय को दुआ में बिताने का इच्छुक और लालायित बने, क्योंकि सर्वश्रेष्ठ दुआ अरफह के दिन की दुआ है।

 

मुज़दलिफा जाना

जब सूरज डूब जाए तो अरफह की ओर रवाना हो . . . जब अरफह पहुँच जाए तो एक अज़ान और दो इक़ामत से मग्रिब और इशा की नमाज़ पढ़े।

 

और यदि उसे इस बात का भय हो कि वह मुज़दलिफा आधी रात के बाद पहुँचे गा तो वह रास्ते में ही नमाज़ पढ़ लेगा, उसके लिए इशा की नमाज़ को आधी रात के बाद तक विलंब करना जाइज़ नहीं है।

 

और वह मुज़दलिफ़ा में रात बितायेगा, जब फज्र स्पष्ट हो जाए तो अज़ान और इक़ामत के साथ फज्र की नमाज़ सवेरे पढ़ेगा फिर मश्अरूल हराम का क़सद करेगा (और वह मुज़दलिफा में मौजूद मस्जिद का स्थान है) तो अल्लाह की एकता का वर्णन करेगा और तक्बीर कहेगा और अपनी पसंदीदा दुआ करेगा यहाँ तक भली भांति रोशनी हो जाए (इस से अभिप्राय यह है कि सूरज उगने से पूर्व दिन की रोशनी स्पष्ट हो जाए)। यदि उसके लिए मश्अरूल हराम तक जाना आसान न हो तो वह अपने स्थान पर ही दुआ करेगा क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : मैं यहाँ ठहरा हूँ और पूरा मुज़दलिफा ठहरने की जगह है। ज़िक्र करने और दुआ करने की हालत में वह अपने दोनों हाथों को उठाए हुए क़िब्ला की ओर मुँह किए होगा।

 

मिना की तरफ प्रस्थान

जब अच्छी तरह रोशनी फैल जाए तो सूरज उगने से पहले वह मिना की ओर प्रस्थान करेगा, और वादी मुहस्सर (मुज़दलिफा और मिना के बीच एक वादी है) में तेज़ी से चलेगा। मिना पहुँचकर जमरतुल अक़बह को कंकरी मारेगा और वह मक्का के निकट सबसे अंतिम जमरह है (वह मक्का से सबसे निकट जमरह है) वह एक के बाद एक लगातार सात कंकरियाँ मारेगा, हर कंकरी लगभग लूबिया के दाने के बराबर होगी, हर कंकरी के साथ तक्बीर कहेगा (जमरतुल अक़बह को कंकरी मारते समय सुन्नत यह है कि आदमी जमरह की ओर मुँह करे और मक्का को अपने बायें ओर और मिना को अपने दाहिने ओर कर ले)। कंकरी मारने से फारिग होने के बाद अपने हदी (क़ुर्बानी के जानवर) को ज़बह करे, फिर अपने सिर को मुंडाए या उसके बालों को छोटा करवाए यदि वह पुरूष है, रही बात महिला की तो वह अपने बालों से एक उंगल (पोर) के बराबर बाल काट लेगी। (इसके द्वारा मोहरिम को पहला तहल्लुल प्राप्त हो जायेगा, अतः उसके लिए अपनी पत्नी से संभोग करने के अलावा एहराम की हालत में निषिद्ध हर चीज़ हलाल हो जायेगी) फिर वह मक्का जाए और हज्ज का तवाफ और सई करे। (फिर उसे दूसरा तहल्लुल प्राप्त हो जायेगा तो उसके लिए हर वह चीज़ हलाल हो जायेगी जो एहराम के कारण उसके लिए हराम थी)।

 

सुन्नत यह है कि जब वह कंकरी मारने और सिर मुंडाने के बाद तवाफ के लिए मक्का जाने का इरादा करे तो खुश्बू लगाए, क्योंकि आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा का फरमान है कि : “मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को आपके एहराम बांधने के समय तथा आपके हलाल होने के समय काबा का तवाफ करने से पूर्व खुश्बू लगाती थी।” (बुखारी: हदीस संख्या : 1539,मुस्लिम: हदीस संख्या : 1189).

 

जमरात को कंकरी मारना

तवाफ और सई करने के बाद मिना लौट आए और वहाँ ज़ुल-हिज्जा की ग्यारहवीं और बारहवीं तारीख की रात गुज़ारे और दोनों दिनों में सूरज ढलने के बाद तीनों जमरात को कंकरी मारे, सर्वश्रेष्ठ यह है कि वह कंकरी मारने के लिए पैदल चलकर जाए और यदि वह सवारी कर लेता है तो कोई पाप की बात नहीं है। वह सर्व प्रथम पहले जमरह को कंकरी मारेगा और वह मक्का से सबसे दूर का जमरह है और वही मस्जिदे खैफ़ के निकट है, एक के बाद एक लगातार सात कंकरियाँ मारे और हर कंकरी के बाद अल्लाहु अक्बर कहे, फिर थोड़ा आगे बढ़कर अपनी पसंद के अनुसार लंबी दुआ करे, यदि उसके लिए देर तक ठहरना कष्टदायक हो तो जितना भी उसके लिए आसान हो दुआ करे चाहे थोड़ा ही सही, ताकि सुन्नत पर अमल हो जाए। 

 

फिर मध्य जमरह (अल-जमरतुल वुस्ता) को एक के पीछे एक सात कंकरियाँ मारे और हर कंकरी के साथ अल्लाहु अक्बर कहे, फिर बायें ओर हो जाए और क़िब्ला की ओर मुँह करके अपने दोनों हाथों को उठाकर खड़ा हो और यदि उसके लिए आसान हो तो लंबी दुआ करे, नहीं तो जितना उसके लिए आसान हो उतना ही ठहरे, और उसके लिए दुआ के लिए ठहरने को त्याग करना उचित नहीं है क्योंकि यह सुन्नत है, जबकि बहुत से लोग अज्ञानता के कारण या लापरवाही में उसे छोड़ देते हैं, और जब भी किसी सुन्नत को नष्ट कर दिया जाए तो उसको करना और लोगों के बीच उसको प्रकाशित करना अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है ताकि उसे छोड़ा न जाए और वह मिटने न पाए।

 

फिर जमरतुल अक़बह को एक के बाद एक सात कंकरियाँ मारे और हर कंकरी के साथ अल्लाहु अक्बर कहे, फिर वहाँ से चला जाए और उसके बाद दुआ न करे।

 

जब बारहवें दिन सभी जमरात को कंकरी मार ले तो यदि चाहे तो जल्दी करे और मिना से बाहर निकल जाए, और यदि चाहे तो विलंब करे और वहाँ तेरह ज़ुलहिज्जा की रात बिताए और सूरज ढलने के बाद तीनों जमरात को कंकरी मारे जैसा कि पीछे गुज़र चुका। जबकि विलंब करना सर्वश्रेष्ठ है, और ऐसा करना अनिवार्य नहीं है सिवाय इसके कि बारह ज़ुलहिज्जा को सूरज डूब जाए और वह मिना ही में हो, तो ऐसी स्थिति में उसके लिए विलंब करना अनिवार्य है यहाँ तक कि वह अगले दिन सूरज ढलने के बाद तीनों जमरात को कंकरी मार ले, किंतु यदि बारह ज़ुल-हिज्जा को उसके ऊपर मिना में सूरज उसकी इच्छा के बिना डूब जाए, उदाहरण के तौर पर उसने प्रस्थान कर दिया हो और सवारी पर बैठ गया हो, किंतु गाड़ियों की भीड़ इत्यादि के कारण विलंब हो जाए तो ऐसी स्थिति में उसके लिए विलंब करना अनिवार्य नहीं है, क्योंकि सूरज डूबने तक उसका विलंब होना उसकी इच्छा के बिना हुआ है।

 

फिर जब वह मक्का से निकल कर अपने देश जाने का इरादा करे तो वह बाहर न निकले यहाँ तक कि विदाई तवाफ कर ले, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : “कोई व्यक्ति कूच न करे यहाँ तक कि उसका अंतिम काम अल्लाह के घर (काबा) का तवाफ हो।” (मुस्लिम: हदीस संख्या : 1327), तथा एक रिवायत के शब्द यह हैं कि : “लोगों को आदेश दिया गया है कि उनका अंतिम काम अल्लाह के घर का तवाफ करना हो सिवाय इसके कि मासिक धर्म वाली औरत के लिए रूख्सत दी गई है।” (बुखारी: हदीस संख्या : 1755,मुस्लिम: हदीस संख्या : 1328)

 

चुनाँचे मासिक धर्म और प्रसव वाली औरत पर विदाई तवाफ अनिवार्य नहीं है, तथा उन दोनों के लिए विदाई के लिए मस्जिदुल हराम के द्वार के पास खड़ा होना उचित नहीं है क्योंकि ऐसा करना नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित नहीं है।

 

तथा वह विदाई तवाफ को अल्लाह के घर का अंतिम काम बनाए, जब वह यात्रा के लिए कूच करने का इरादा करे, तो यदि वह विदाई तवाफ के बाद साथियों की प्रतीक्षा के लिए या अपनी सवारी को लादने के लिए ठहर जाए या रास्ते में कोई आवश्यकता की चीज़ खरीद ले तो उस पर कोई पाप नहीं है, और वह तवाफ को नहीं लौटायेगा सिवाय इसके  कि वह अपने सफर को स्थगित करने की नीयत कर ले, उदाहरण के तौर पर वह दिन के आरंभ में सफर करना चाहता है तो वह विदाई तवाफ कर ले फिर वह सफर को उदाहरण के तौर पर दिन के अंत तक निलंबित कर दे, तो ऐसी स्थिति में उसके लिए तवाफ को लौटाना अनिवार्य है ताकि वह उसका अल्लाह के घर का अंतिम काम हो जाए।

 

लाभदायक जानकारी

हज्ज या उम्रा का एहराम बांधने वाले पर निम्नलिखित बातें अनिवार्य हैं:

  1. अल्लाह तआला ने अपने धर्म के जो प्रावधान उसके ऊपर अनिवार्य किए हैं जैसे कि जमाअत के साथ नमाज़ को उसके समय पर पढ़ना, उसका पालन करना।
     
  2. अल्लाह तआला ने उसे जिन कामुक बातों, गुनाहों और उल्लंघनों से रोका है उनसे दूर रहे क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है: “अतः जिस ने इन महीनों में हज्ज को फर्ज़ कर लिया, तो हज्ज में संभोग और कामुक बातें, फिस्क़ व फुजूर (अवज्ञा और पाप) तथा लड़ाई-झगड़ा (वैध) नहीं है ।” (सूरतुल बक़रा: 197)
     
  3. मुसलमानों को अपने कथन या कर्म से, चाहे वह मशाइर के पास हो या उसके अलावा में, कष्ट पहुँचाने से बाज़ रहे।

 

एहराम की हालत में निषिद्ध सभी चीज़ों से बचना

(क) - अपने बाल या नाखून से कोई चीज़ न काटे, जहाँ तक काँटे को निकालने की बात है तो उसमें कोई पाप की बात नही है, भले ही खून निकल आए।

 

(ख) - अपना एहराम बाँधने के बाद अपने शरीर, या कपड़े, या खाने या पीने की चीज़ में खुश्बू न लगाए और न ही खुश्बूदार साबून से सफाई सुथराई करे, रही बात उस बाक़ी बचे सुगंध के प्रभाव की जो उसने अपने एहराम से पहले इस्तेमाल की थी तो उसमें कोई हानि नहीं है।

 

(ग) - शिकार को न मारे।

 

(घ) - अपनी पत्नी से संभोग न करे।

 

(ङ) - तथा कामुकता के साथ स्पर्श या चुंबन या आलिंग्न वग़ैरह न करे।

 

(च) - स्वयं अपना या किसीदूसरे का विवाह न करे, तथा किसी औरत से अपनी या किसी अन्य की मंगनी न करे।

 

(छ) - दस्ताने न पहने। रही बात दोनों हाथों को कपड़े (चीथड़े) से लपेटने की तो इसमें कोई बात नहीं है।

 

ये सातों निषिद्ध चीज़ें पुरूष और स्त्री दोनों के लिए निषिद्ध हैं।

 

जबकि निम्नलिखित चीज़ें पुरूष के लिए विशिष्ट हैं:

  • अपने सिर को किसी चिपकने वाली (सिर से मिली या चिपकी हुई) चीज़ से न ढाँपे, रही बात छत्री, गाड़ी की छत और खैमा से साया करने, सिर पर सामान उठाने की, तो इसमें कोई गुनाह नहीं है।
  • वह क़मीज, पगड़ी, टोपी (हैट) पायजामा और मोज़ा न पहने, सिवाय इसके कि यदि वह इज़ार (तहबंद) न पाए तो पायजामा पहन ले या यदि जूते न पाए तो मोज़े पहन ले।
  • तथा कोई ऐसी चीज़ न पहने जो उन चीज़ों के अर्थ में हो जिनका पीछे उल्लेख किया गया है, चुनाँचे वह बुरक़ा, कंटोप, बनियान इत्यादि न पहने।
  • तथा उसके लिए जूते, अंगूठी, चश्मा, हेड-फून पहनना जाइज़ है, तथा वह अपने हाथ में घड़ी पहने, या उसे अपनी गर्दन में लटका ले, तथा बेल्ट बांधना ताकि उसमें अपने खर्च का पैसा रख सके।
  • तथा उसके लिए ऐसी चीज़ के द्वारा सफाई करना जाइज़ है जिसमें सुगंध न हो, या अपने सिर या शरीर को धोना और खुजलाना जाइज़ है और यदि ऐसा करने से बिना इच्छा के कोई बाल गिर जाए तो उसके ऊपर कोई चीज़ नहीं है।

 

तथा महिला नक़ाब नहीं पहने गी, नक़ाब उस कपड़े को कहते हैं जिस से वह अपना चेहरा छिपाती है जिसमें उसकी दोनों आंखों के लिए सूराख बना होता है, तथा वह बुरक़ा भी नहीं पहने गी।

 

सुन्नत यह है कि वह अपने चेहरे को खोले रखे सिवाय इसके कि उसे उसके गैर मह्रम मर्द देख रहे हों तो ऐसी स्थिति में उसके ऊपर एहराम की हालत और उसके अलावा में भी चेहरा छिपाना अनिवार्य है . . .”

 

देखिए : अल्बानी रहिमहुल्लाह की किताब मनासिकुल हज्ज वल उम्रा, तथा इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह की किताब सिफतुल हज्ज वल उम्रा, तथा किताब अल-मनहज लि-मुरीदिल उम्रति वल-हज्ज।

 

और देखें

अल्लाह; उम्रह; एहराम;  इबादत; एहराम ।

 

संदर्भ

https://islamqa.info/hi/31822

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