सृष्टि को सृष्टिकर्ता की आवश्यकता है (अल्लाह)


इन्सान यह देखता है कि, उसे किस चीज़ से लाभ है और किस चीज़ से उसे रक्षा मिलती है| यह प्राप्त करने के लिए मनुष्य को हानीकारक चीजों के बारे में पता रहना चाहिए| मनुष्य को पता रहना चाहिए कि उसे किसकी आवश्यकता है, किस पर विश्वास करना चाहिए और किस से प्रेम करना चाहिए| जब यह सब चीज़ें पता हो तो, मनुष्य की ज़िन्दगी शांति पूर्ण रहती है|

 

  1. हानी के बारे में पता होना चाहिए
     
  2. हनी को दूर करने के उपाय का भी पता रहना चाहिए
     

मनुष्य को मार्गदर्शन करने वाला कोई ऐसा होना चाहिए जिसने हर चीज़ को सम्पूर्ण बनाया है और जिसके स्वयं में अथवा उसके गुणों में कोई कमी न हो| वह अनंत हो, उसे कभी मृत्यू न आये| उसे कोई चीज़ की आवश्यकता न हो| उसके पास हर चीज़ हो| वह सब को देने वाला हो और मनुष्य की आत्मा को काबू में रखने वाला हो| मनुष्य उसके आगे बहुत तुच्छ है| वही अल्लाह है, जो वास्तविक और अकेला है| यदि मनुष्य वास्तविक अल्लाह को छोड़कर किसी और की सहायता चाहता है, तो उसे स्वयं हानी पहुचती है| अल्लाह ही मनुष्य को हानी से बचाता है, क्यों कि, अल्लाह चाहे तो ही किसी को हानी पहुँचती है|     

 

विषय सूची

 

अल्लाह को जानना

अल्लाह ने मनुष्य को मार्गदर्शन करने के लिए अपने ग्रंथ और अपने नबियों (सन्देश वाहक) को भेजा|

 

  1. रब (पालनहार - अल्लाह) को जानिए, उसने अपने बारे में विवरण दिया है और  
     
  2. उस अकेले अल्लाह को याद करो और उसके बताये हुए तारीखे पर ज़िन्दगी बिताओ|

 

अल्लाह को सही तरीखे से जानने पर मनुष्य तुच्छ चीज़ों की पूजा करना छोड़ देता है| सृष्टि की यह सब चीज़े बहुत निर्बल और तुच्छ है| इनको एक सृष्टिकरता (पालनहार) की आवश्यकता है|  

 

खुरआन

“तो (हे नबी!) आप विश्वास रखिये कि नहीं है कोई वन्दनीय अल्लाह के सिवा तथा क्षमा माँगिये अपने पाप के लिए, तथा ईमान वाले पुरुषों और स्त्रीयों के लिए....|” [खुरआन सूरा मुहम्मद 47:19]

 

अल्लाह ने कुछ और भी भगवान बनाये – ऐसा विचार रखना असत्य है| केवल अल्लाह अकेला ही वास्तविक और सब का पालनहार है| नक्षत्र, सूरज, आग इत्यादि चीज़ों की पूजा करना बहुत बड़ी गलती अथवा दोष है| अल्लाह ने यही बात कही कि, मनुष्य अपने आप को उसके हवाले करदे| किसी को अल्लाह के साथ साझी बनाने की अनुमति नहीं है| यहाँ तक कि, अल्लाह के रसूल मुहम्मद को भी यह अनुमति नहीं दी गयी| अगर वह भी ऐसा करते तो नष्ट उठाते और आप के सारे सत्कर्म नाकाम हो जाते|

 

“तथा वही की गयी है आप की ओर तथा उन (नबियों) की ओर जो आप से पूर्व (हुए) कि यदि आप ने शिर्क किया तो अवश्य व्यर्थ हो जायेगा आप का कर्म| तथा आप हो जायेंगे क्षति ग्रस्तों में से| बल्कि आप अल्लाह ही की इबादत (वंदना) करे तथा कृतज्ञों में रहे|” [खुरआन सूरा ज़ुमर 39:65-66]

 

“जो खोल दे अल्लाह लोगों के लिए अपनी दया तो उसे कोई रोकने वाला नहीं| तथा जिसे रोक दे तो कोई खोलने वाला नहीं उस का उस के पश्चात| तथा वही प्रभावशाली चतुर है|” [खुरआन सूरा फातिर 35:2]

 

“और यदि अल्लाह आप को कोई दुःख पहुचाना चाहे तो उस के सिवा कोई उसे दूर करने वाला नहीं| और यदि आप को कोई भलाई पहुचाना चाहे तो कोई उसकी भलाई को रोकने वाला नहीं| वह अपनी दया अपने भक्तों में से जिस पर चाहे करता है, तथा वह क्षमाशील दयावान है|” [खुरआन सूरा यूनुस 10:107]

 

हर (अच्छे, बुरे) समय, हमें यह याद रहना चाहिए कि, हम सब को एक दिन अल्लाह के पास लौट कर जाना है|

 

“यदि अल्लाह तुम्हारी सहायता करे तो तुम पर कोई प्रभुत्व नहीं पा सकता| तथा यदि तुम्हारी सहायता न करे, तो फिर कौन है जो उस के पश्चात तुम्हारी सहायता कर सके? अतः ईमान वालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए|” [खुरआन सूरा आले इमरान 3:160]

 

हदीस

उम्मुल मोमिनीन (विश्वासियों की माँ) आयिशा रजिअल्लाहुअन्हा कहते है कि, “मै अल्लाह केरसूल मुहम्मद को एक रात (अपने पास बिस्तर पर) नहीं पाया तो मैंने आपको नमाज़ पढ़ने की जगह ढूंडा, तो मैंने आप को सजदा करते हुए पाया| उस समय आप के दोनों पैर खड़े हुए थे, और आप दुआ कर रहे थे – “हे अल्लाह| मै तेरे क्रोध से तेरी संतुष्टि (रजामंदी)  की पनाह (शरण) चाहता हूँ, तेरे सजा से तेरी क्षमा की पनाह (शरण) चाहता हूँ, और मै तुझ से तेरी पनाह (शरण) चाहता हूँ, तेरी प्रशंसा जैसी करनी है वैसे मै नहीं कर सकता, तू वैसा ही है जैसे तू ने अपनी प्रशंसा की है|” [सही मुस्लिम 486 & सुनन इब्ने दावूद 879]    

 

बरा बिन आज़िब रजिअल्लाहुअन्हु ने उल्लेख किया कि अल्लाह के रसूल मुहम्मद ने ऐसा फ़रमाया : “हे फलां! जब तुम अपने बिस्तर पर सोने जाओ तो यह दुआ (प्रार्थना) करो – ‘हे अल्लाह! मैंने अपनी जान तेरे हवाले कर दी और अपना रुख तेरी तरफ कर दिया और अपना मामला (अवस्था) तेरे हवाले कर दिया और तेरे शरण में आया, तेरी मुहब्बत और तेरे डर से| तेरे सिवा कोई शरण और मुक्ति की जगह नहीं, मै तेरी किताब पर ईमान (विश्वास) लाया जो तूने नाज़िल (प्रकटीकरण) किया और तेरे नबी पर ईमान लाया जो तूने भेजे|” फिर कहा : “यदि तुम आज रात मर गए तो फितरत (प्राकृतिक मृत्यू) पर मरोगे और सुबह तक जीवित रहोगे तो सवाब (पुण्य) मिलेगा|” [सही बुखारी 7488 & सही मुस्लिम 2710]    

 

उद्देश्य

इस संसार में मनुष्य के जन्म का एक मुख्य उद्देश है| हमें अल्लाह ने जो जीवन दिया है वह बहुत महत्वपूर्ण है| अल्लाह के आदेश के अनुसार जीवन बिताना भी इबादत (वंदना) है| अल्लाह ने खुरआन में ऐसा कहा : “हे मनुष्यों! तुम सभी भिक्षु हो अल्लाह के| तथा अल्लाह ही निःस्वार्थ प्रशंसित है|” [खुरआन सूरा फातिर 35:15]

 

निष्कर्ष, परिणाम

खुरआन इंसान को गलत चीज़ों से बचाता है और सच्ची स्वतंत्रता दिलाता है| उसके द्वारा मनुष्य को मनश्शंती प्रार्त होती है| विश्वासी को कपट वा छल से बचाती है| सोचिये कि किसी विश्वासी को अपने काम करने की जगह कुछ समस्या का सामना करना पड़ रहा है| वह कुछ गलत तथा अनैतिक देखता है| वह गलत कार्य को ठुकराने में संकोच नहीं करता है| उसे यह पता है कि, पालनहार केवल अल्लाह ही है, इसलिए यदि उसकी नौकरी चले भी जाये तो वह परवाह नहीं करता| अगर वह अल्लाह के लिए किसी गलत काम (नौकरी) को छोड़ देता है, तो अल्लाह उसे और भी अच्चा काम (नौकरी) दिलाएगा| यह हर विश्वासी (मुस्लिम) का विश्वास होता है| “....और जो कोई डरता है अल्लाह से तो वह बना देगा उस के लिए कोई निकलने का उपाय| और उसको जीविका प्रदान करेगा उस स्थान से जिस का उसे अनुमान (भी) न हो....|” [खुरआन सूरा तलाख 65:2,3]

 

इस पूरे चर्चा का असल सार यह है कि, मनुष्य को केवल अकेले अल्लाह पर ही निर्भर होना चाहिए| मनुष्य केवल अल्लाह ही की वंदना करना चाहिए| प्रेम और ख़ुशी केवल अल्लाह ही के लिए करनी चाहिए| जो लोग इस संसार ही को अपना लक्ष्य बनाते है, वह जीवन भर कभी भी खुश नहीं रह पाते है| हर समय दुनियावी चीज़ों को पाने के लिए भटकते रहते है| उन्हें कभी मनाश्शंती नहीं मिलती| अबू हुरैरा रजिअल्लाहुअन्हु ने उल्लेख किया कि, अल्लाह के रसूल मुहम्मद फ़रमाते है : “अल्लाह फरमाते है : ‘आदम के बेटे! तू मेरी इबादत (वंदना) के लिए एकसू (खालिस) हो जा, मै तेरे दिल को निःछिद्र कर दूंगा, और तुझे किसी पर निर्भर होने से मुक्त कर दूंगा| यदि तूने ऐसा नहीं किया तो मै तेरा दिल व्यस्त कर दूंगा और तेरी निर्भरता दूर नहीं करूंगा|” [सुनन तिरमिज़ी 2466 & सुनन इब्ने माजा 4107]   

 

आधार, हवाला

By Dr. Saleh as-Saleh,Based on the article taken from the book "Igathatul-Lahfan min Massa'id Ash-Shaytaan (The Relief of the Yearning (Person) from the Traps of the Devil)"  by Imaam Ibn al Qayyim al-Jawzeeyah,  Vol 1, PP 6-42. (english)

http://www.wisdom.edu.ph/Tawheed/TawhidCreation.htm (english)

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