क़ज़ा व क़द्र (भाग्य) के बारे में अह्ले सुन्नत का अक़ीदा


क़ज़ा व क़द्र (भाग्य)  पर विश्वास रखना ईमान का छठवाँ स्तंभ है। जिब्रील (आले-हिस सलाम) ने नबी से ईमान के बारे में पुछा: ” नबी (सललेल्लाहु अलैही वसल्लम) ने जवाब दिया, अल्लाह पर आस्था आखरी दिन पर आस्था, फरिश्तो पर आस्था , किताबो पर आस्था, रसूलो पर आस्था, और तक़दीर पर आस्था (सहीह मुस्लिम: 1)

 

अरकान ईमान छे हैं

  1. अल्लाहके एक होने पर संपुर्ण आस्था और यक़ीन।
     
  2. अल्लाह के नियुक्त किये हुए रसूलो पर आस्था और यक़ीन।
     
  3. अल्लाह के फरिश्तू पर आस्था और यक़ीन।
     
  4. अल्लाह के नाजिल (रहस्योद्घाटन) किये गए किताबो पर आस्था और यक़ीन।
     
  5. आखिरत के दिन पर आस्था और यक़ीन।

 

क़ज़ा व क़द्र (भाग्य) पर आस्था और यक़ीन।

 

विषय सूची

 

क़ज़ा और क़द्र का अरबी भाषा में अर्थ

अरबी भाषा में कज़ा कहते हैं किसी चीज़ को मज़बूती से करना और किसी काम को पूरा करना, और क़द्र अरबी भाषा में तक़दीर के अर्थ में है अर्थात् अनुमान करना, अंदाज़ा करना।

 

शरीअत में क़ज़ा और क़द्र की परिभाषा

क़द्र :अल्लाह तआला का अनादि काल और प्राचीन में चीज़ों का अनुमान और अंदाज़ा करना, और अल्लाह सुब्हानहु व तआला को इस बात का ज्ञान होना कि वो चीज़े एक निर्धारित समय पर और विशिष्ट गुणों के साथ घटित होंगी, और अल्लाह तआला का उन्हें लिख रखना, और अल्लाह तआला का उन चीज़ों को चाहना (मशीयत), और उनका अल्लह तआला के अनुमान के अनुसार घटित होना, और अल्लाह तआला का उन्हें पैदा करना।

 

क़ज़ा और क़द्र में अंतर

कुछ विद्वानों ने दोनों के बीच अंतर किया है, और शायद क़रीब तरीन बात यही है कि अर्थ में क़ज़ा और क़द्र के बीच कोई अंतर नहीं है, उन दोनों में से प्रत्येक दूसरे के अर्थ पर दलालत करता है, और क़ुर्आन व हदीस में कोई स्पष्ट दलील नहीं है जिस से दोनों शब्दों के बीच अंतर का पता चलता हो, और इस बात पर सहमति है कि उन में एक का दूसरे के स्थान पर बोला जाना उचित है। हाँ यह बात ध्यान के योग्य है कि क़द्र का शब्द क़ुर्आन व हदीस के उन नुसूस में सब से अधिक आया है जो इस रूक्न (स्तंभ) पर ईमान लाने की अनिवार्यता पर दलालत करते हैं। और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

 

इस्लाम धर्म में तक़्दीर पर ईमान रखने का स्थान

तक़दीर पर विश्वास रखना ईमान के उन छ: स्तंभों में से एक है जिन का वर्णन नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के उस कथन में हुआ है जिस समय जिब्रील अलैहिस्सलाम ने आप से ईमान के बारे में प्रश्न किया था : "ईमान यह है कि तुम अल्लाह पर, उसके फरिश्तों पर, उसकी उतारी हुई पुस्तकों पर, उसके रसूलों पर और आख़िरत के दिन पर ईमान लाओ, और भली बुरी तक्दीर (के अल्लाह की ओर से होने पर) ईमान लाओ।" (सहीह मुस्लिम हदीस संख्या :8)

 

और क़ुर्आन में तक़दीर का उल्लेख अल्लाह तआला के इस कथन में हुआ है: "नि:सन्देह हम ने प्रत्येक चीज़ को एक निर्धारित अनुमान पर पैदा किया है।" (सूरतुल-क़मर:49)

 

और अल्लाह तआला के इस फरमान में भी: "और अल्लाह तआला के काम अंदाज़े से निर्धारित किये हुए हैं।" (सूरतुल अह्ज़ाब:38)

 

तक़दीर पर ईमान की हक़ीक़त

क़ज़ा पर ईमान रखने की हक़ीक़त यह है कि: इस बात की सुदृढ़ पुष्टि की जाये कि इस ब्रह्माण्ड में घटित होने वाली प्रत्येक चीज़ अल्लाह तआला की तक़दीर से होती है।

 

और यह कि ईमान बिल-क़द्र (तक़्दीर पर विश्वास रखना) ईमान का छठवाँ स्तंभ है और इस पर ईमान लाये बिना ईमान संपूर्ण नहीं हो सकता।

 

इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हें सूचना मिली कि कुछ लोग तक़्दीर का इंकार करते हैं, तो उनहों ने कहा : जब तुम्हारी इन से भेंट हो तो उन्हें बता देना कि मैं उन से बरी (अलग-थलग) हूँ और वो लोग भी मुझ से बरी हैं, उस अस्तित्व की क़सम जिसकी अब्दुल्लाह बिन उमर क़सम खाते हैं (अर्थात् अल्लाह की क़सम) यदि इन में से किसी के पास उहुद पर्वत के समान सोना हो, फिर वह उसे (अल्लाह के मार्ग में) खर्च कर दे, तो अल्लाह उसे क़बूल नहीं करेगा यहाँ तक कि वह क़द्र पर ईमान ले आये।" (सहीह मुस्लिम:8)

 

क़द्र के चार दर्जे हैं

क़द्र पर ईमान रखना उस वक्त तक शुद्ध नहीं हो सकता जब तक कि क़द्र के चारों मर्तबों (दर्जे) पर ईमान न ले आयें और वे निम्न लिखित हैं :

 

1.   इसबात पर ईमान लाना कि अल्लाह तआला को प्रत्येक चीज़ का सार (इज्माली) रूप से तथा विस्तार पूर्वक, अनादि-काल और प्राचीन काल से ज्ञान है।

2.   इस बात पर ईमान लाना कि अल्लाह तआला ने उन सभी चीज़ों को आसमानों और ज़मीन को पैदा करने से पचास हज़ार साल पहले ही लौहे मह्फ़ूज़ (सुरक्षित पट्टिका) में लिख रखा है।

3.   अल्लाह तआला की लागू होने वाली मशीयत (इच्छा) और उसकी व्यापक शक्ति पर विश्वास रखना, अत: इस ब्रह्माण्ड में कोई अच्छी या बुरी चीज़ अल्लाह सुब्हानहु व तआला की मशीयत ही से घटती है।

4.   इस बात पर विश्वास रखना कि संसार की सभी चीज़ें अल्लाह की सृष्टि (पैदा की हुई) हैं, अत: वह सर्व सृष्टि का रचयिता और उन की विशेषताओं और कार्यों का भी सृष्टा है, जैसाकि अल्लाह सुब्हानहु का फरमान है : "वही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है, उस के सिवाय कोई पूज्य नहीं, वह हर चीज़ का पैदा करने वाला है।" (सूरतुल अन्आम :102)

 

तक़दीर पर ईमान कब विशुद्ध होता है?

तक़दीर पर ईमान के विशुद्ध होने के लिये आवश्यक है कि इन निम्नलिखित बातों पर भी आप विश्वास रखें :

  • किबन्दे को इच्छा और चयन करने का अधिकार प्राप्त है जिसके द्वारा उसके कार्य संपन्न होते हैं, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है : "उसके लिए जो तुम में से सीधे मार्ग पर चलना चाहे।" (सूरतुत्-तक्वीर: 28) तथा अल्लाह तआला ने फरमाया : "अल्लाह तआला किसी नफ्स (प्राणी) पर उसकी सामर्थ्य से अधिक भार नहीं डालता, जो पुण्य वह करे वह उसके लिए है, और जो बुराई वह करे वह उसी पर है।" (सूरतुल-बकरा:286)
  • और यह कि बन्दे की मशीयत (चाहत) और उसकी शक्ति अल्लाह तआला की शक्ति और मशीयत से बाहर नहीं है, अल्लाह ही ने उसे यह प्रदान किया है और उसे अच्छे बुरे का अंतर करने और किसी चीज़ को चयन करने पर सामर्थी बनाया है, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है : "और तुम बिना सर्व संसार के पालनहार के चाहे कुछ नहीं चाह सकते।" (सूरतुत्-तक्वीर: 29)
  • और यह कि तक़दीर अल्लाह तआला का उसकी सृष्टि में रहस्य है, अत: जो कुछ अल्लाह ने हमारे लिए स्पष्ट कर दिया है हम उसे जानते और उस पर विश्वास रखते हैं, और जो चीज़े हम से गायब और लुप्त हैं हम उन्हें स्वीकारते और उन पर विश्वास रखते हैं, और यह कि हम अपनी सीमित बुद्धियों और कमज़ोर समझबूझ के द्वारा अल्लाह से उसके कार्यों और आदेशों के विषय में झगड़ा न करें, बल्कि अल्लाह तआला के पूर्ण न्याय और व्यापक हिक्मत (तत्वदर्शिता) पर ईमान रखें, और यह कि अल्लाह सुब्हानहु व तआला जो कुछ करता है उसके बारे में उस से प्रश्न नहीं किया जा सकता।

 

यह इस महान अघ्याय में सलफ सालेहीन (पूर्वजों) का संछेप अक़ीदा है।

 

तक़दीर पर ईमान की श्रेणियाँ

तक़दीर पर ईमान उस वक़्त तक पूरा नहीं हो सकता जब तक कि आप इन चार श्रेणियों (मर्तबों) पर ईमान न रखें:

 

ज्ञान की श्रेणी

इस बात पर विश्वास रखना कि अल्लाह तआला का ज्ञान हर चीज़ को घेरे हुए है, आसमानों और ज़मीन में एक कण भी उसके ज्ञान से गुप्त नहीं हैं, और यह कि अल्लाह तआला अपने अनादि और प्राचीन ज्ञान के द्वारा अपनी समस्त सृष्टि को उन्हें पैदा करने से पूर्व ही जानता है और यह भी जानता है कि वो सब क्या कार्य करेंगे। इस बात की दलीलें बहुत हैं जिन में से एक अल्लाह तआला का यह फरमान है : "वही अल्लाह है जिसके सिवा कोई (सच्चा) पूज्य नहीं, छिपी और खुली (दृष्टि गोचर और अगोचर) का जानने वाला है।" (सूरतुल हश्र :22) और अल्लाह तआला का यह फरमान भी है : "और अल्लाह तआला ने हर चीज़ को अपने ज्ञान की परिधि में घेर रखा है।" (सूरतुत्तलाक़ :12)

 

लिखने की श्रेणी

इस बात पर विश्वास रखना कि अल्लाह तआला ने सभी प्राणियों के भाग्यों (तक़दीरों) को लौहे-मह्फूज़ (सुरक्षित पटि्टका) में लिख रखा है, इस का प्रमाण अल्लाह तआला का यह कथन है : "क्या आप ने नहीं जाना कि आकाश और धरती की प्रत्येक चीज़ अल्लाह तआला के ज्ञान में है, यह सब लिखी हुई पुस्तक में सुरक्षित है, अल्लाह तआला पर तो यह कार्य अति सरल है।" (सूरतुल-हज्ज : 70)

 

तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान भी प्रमाण है कि : "अल्लाह तआला ने आकाशों और धरती की रचना करने से पचास हज़ार वर्ष पूर्व समस्त सृष्टि के भाग्यों (तक्दीरों) को लिख रखा था।" (सहीह मुस्लिम हदीस संख्या : 2653)

 

इरादा (इच्छा) और मशीयत (चाहत) की श्रेणी

इस बात पर विश्वास रखना कि इस संसार में जो कुछ भी होता है, वह अल्लाह तआला की मशीयत और चाहत ही से होता है, अत: अल्लाह तआला ने जिस चीज़ को चाहा वह हुई और जिस चीज़ को नहीं चाहा वह नहीं हुई, उसके इरादे से कोई चीज़ बाहर नहीं हो सकती।

 

इस की दलील अल्लाह तआला का यह फरमान है : "और कभी किसी पर इस तरह न कहें कि मैं इसे कल करूँगा, लेकिन साथ ही इन-शा अल्लाह (यदि अल्लाह ने चाहा तो) कह लें।" (सूरतुल कह्फ :23-24)

 

और अल्लाह तआला का यह फरमान भी है : "और तुम बिना सर्व संसार के पालनहार के चाहे कुछ नहीं चाह सकते।" (सूरतुत्-तक्वीर: 29)

 

रचना करने की श्रेणी

इस बात पर विश्वास रखना कि अल्लाह तआला प्रत्येक चीज़ का रचयिता और पैदा करने वाला है, और उन्हीं में से बन्दों के कार्य भी हैं, अत: इस ब्रह्माण्ड में जो चीज़ भी घटित होती है उसका रचयिता अल्लाह तआला ही है, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है : "अल्लाह प्रत्येक चीज़ का पैदा करने वाला है।" (सूरतुज़-ज़ुमर : 62) तथा अल्लाह तआला का फरमान है : "हालाँकि तुम्हें और तुम्हारी बनाई हुई चीज़ों को अल्लाह ही ने पैदा किया है।" (सूरतुस्-साफ़्फात:96)

 

और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "हर बनाने वाले और उसकी बनाई हुई चीज़ की रचना अल्लाह तआला ही करता है।" (इस हदीस को बुखारी ने  खल्क़ो अफ्आलिल इबाद हदीस संख्या :25के तहत और इब्ने अबी आसिम ने अस्सुन्नह पृ0 257और 358पर उल्लेख किया है, और अल्बानी ने अस्सहीहा हदीस संख्या :1637के तहत इसे सहीह कहा है।)

 

शैख इब्ने सादी रहिमहुल्लाह कहते हैं : "अल्लाह तआला ने जिस तरह लोगों को पैदा किया है, उसी तरह उसने उनकी शक्ति और इच्छा (इरादा) को भी पैदा किया जिस के द्वारा वह कोई काम करते हैं, फिर उन्हों ने अपनी उस शक्ति और इच्छा से जिन्हें अल्लाह तआला ने पैदा किया है विभिन्न प्रकार के आज्ञापालन और अवज्ञा के काम करते है।" (अद्दुर्रतुल बहिय्या शर्हुल क़सीदतित्ताईया पृ0 :18)

 

क़द्र के मसाईल में बुद्धि के द्वारा बहस करने से चेतावनी

तक़दीर पर ईमान ही विशुद्ध रूप से अल्लाह तआला पर ईमान के स्तर का वास्तविक मानदण्ड और कसौटी है, और वह इस बात का मज़बूत और शक्तिशाली परीक्षण है कि मनुष्य अपने रब को कितना पहचानता है, और इस पहचान और जानकारी पर निष्कर्षित होने वाला अल्लाह तआला पर सच्चा विश्वास, और उसके लिए प्रतिभा और प्रवीणनता और परिपूर्णता के जो गुणों अनिवार्य हैं, इसलिए कि जो आदमी अपनी सीमित बुद्धि की लगाम को छोड़ दे उसके सामने क़द्र के विषय में ढेर सारे प्रश्न और सवालात पैदा होते हैं, क़द्र के संबंध में मतभेद भी बहुत अधिक हैं, इसके उल्लेख में क़ुर्आन की जो आयतें आई हैं उनकी तावील करने और उनके बारे में बहस करने में लोगों ने विस्तार से काम लिया है, बल्कि इस्लाम के दुश्मनों ने क़द्र के बारे में बात करके और उसके बारे में सन्देहों को ठूँस कर मुसलमानों के अक़ीदे के बारे में हर ज़माने में कोलाहल पैदा करते रहे हैं, जिसके कारण शुद्ध ईमान और अटूट विश्वास पर वही आदमी टिक पाता है जो अल्लाह तआला को उसके अस्माये हुस्ना और सर्वोच्च गुणों के द्वारा जानता पहचानता हो, अपने मामले को अल्लाह के हवाले करने वाला, सन्तुष्ट और अल्लाह पर भरोसा रखने वाला हो, तो ऐसी अवस्था में संदेह और शंकाये उसके दिल में रास्ता नहीं पाती हैं, औ इस में कोई शक नहीं कि यह सभी स्तंभो के बीच इस स्तंभ पर ईमान लाने की महत्ता का प्रमाण है। तथा बुद्धि स्वयं तक़दीर की जानकारी प्राप्त नहीं कर सकती, तक़दीर अल्लाह तआला का उसकी मख्लूक़ में रहस्य और भेद है, अत: जो कुछ अल्लाह तआला ने अपनी किताब या अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज़ुबानी हमारे लिए स्पष्ट कर दिया है हम उसे जानते, उसकी पुष्टि करते और उस पर विश्वास रखते हैं, और जिस से हमारा पालनहार खामोश है उस पर और उसके पूर्ण न्याय और व्यापक हिकमत पर हम ईमान रखते हैं, और यह कि अल्लाह तआला जो कुछ करता है उसके बारे में उस से पूछा नहीं जासकता, और लोगों से उनके कार्यों के बारे में पूछा जायेगा। और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखने वाला है, और अल्लाह तआला की शान्ति, दया और बरकत अवतरित हो उसके बन्दे और ईश्दूत मुहम्मद पर, तथा आप की संतान और साथियों पर।

 

कज़ा व कद्र (भाग्य) पर ईमान लाने के फायदे

  • जोकुछ मुकद्दर था और घट चुका है उस पर राज़ी और प्रसन्न होने से हार्दिक आनंद और संतोष प्राप्त होता है, इसलिए जो चीज़ घटित हुई है या प्र[प्त होने से रह गयी है उसके प्रति शोक और चिंता का कोई प्रश्न नहीं रह जाता है, और यह बात किसी पर रहस्य नहीं कि हार्दिक आनंद और संतोष का न होना बहुत सारी मानसिक बीमारियों जैसे कि शोक, चिंता का कारण बनता है जिनका शरीर पर नकारात्मक (उल्टा) प्रभाव पड़ता है, जबकि कज़ा व कद्र पर ईमान, जैसा कि अल्लाह ताला ने सूचना दी है, इनसब चीज़ों को समाप्त कर देता है, अल्लाह ताला का फ़रमान है: “न कोई आपत्ति (संकट) संसार में आती है न विशिष्ठ रूप से तुम्हारी प्राणों में परन्तु इस से पूर्व कि हम उसको उत्पन्न करे वह एक विशेष पुस्तक में लिखी हुई है, यह काम अल्लाह पर अत्यन्त सरल है| ताकि तुम अपने से छीन जाने वाली चीज़ पर दुखी न हो जाया करो और न प्राप्त होने वाली चीज़ पर प्रफुल्ल हो जाया करो, अल्लाह ताला गर्व करने वाले अभिमानी लोगों से प्रेम नहीं करता|” [खुरआन सूरा हदीद 22,23

 

  • अल्लाहताला ने इस संसार में जो चीज़ें रखी है उनको जानने और उनकी खोज करने का निमंत्रण है, इस प्रकार कि मनुष्य पर जो चीज़ें मुकद्दर है जैसे कि बीमारी तो वह अल्लाह ताला की तकदीर है जो उसे उस उपचार के खोजने पर उभारती है जो पहले तकदीर को दूर कर सके, और वह इस प्रकार कि अल्लाह ताला ने इस संसार में जो चीज़ें पैदा की है उन में दवावों के स्रोत की खोज करे|

 

  • इंसानके साथ जो दुर्घटनाएं घटती है वह हलकी और साधारण हो जाती है, अगर किसी आदमी का उसकी तिजारत में घाटा हो जाये, तो यह घाटा उसके लिए एक दुर्घटना है, अब अगर वह इस पर शोक और चिंता प्रकट करे तो उसकी दो मुसीबतें (दुर्घटनाएं) हो गयी, एक घाटा उठाने की मुसीबत और दूसरी शोक और चिंता की मुसीबत| परन्तु जो मनुष्य कज़ा व कद्र (भाग्य) पर विश्वास रखता है वह पहले घाटे पर संतुष्ट हो जायेगा, क्योंकि वह जनता है कि वह उसके ऊपर मुकद्दर था और आवश्यक रूप से घटने वाला था, अल्लाह के रसूल मुहम्मद फरमाते है: “शक्ति शाली मोमिन अल्लाह ताला के निकट निर्बल मोमिन से उत्तम और प्रियतम है, वैसे तो दोनों के अन्दर भलाई है, जो चीज़ तुम्हे लाभ पहुचाये उसके इच्छुक और अभिलाषी बनो तथा अल्लाह ताला से सहायता मांगो और निराश न हो, यदि तुम्हे कोई संकट पहुँचे तो यह न कहो कि यदि मैंने ऐसा किया होता तो ऐसा ऐसा होता, बल्कि ऐसा कहो कि अल्लाह ने भाग्य में यही निर्धारित किया था और जो अल्लाह ने चाहा वह हुआ, क्योंकि शब्द (लौ) अर्थात यदि शैतानी कार्य का द्वार खोलता है| [सहीह मुस्लिम 4/2052, हदीस नं 2664]

 

तकदीर पर ईमान रखना आवश्यक भरोसे, कार्य न करने और कारणों (असबाब) को न अपनाने का नाम नहीं जैसा कि कुछ लोगों का गुमान है, यह अल्लाह के रसूल मुहम्मद को देखिये कि आप उस आदमी से जिस ने आप से पूछा था कि क्या मै अपनी ऊंटनी को छोड़ दू और तवक्कुल करू? फरमाते है: “उसे बांध दो और तवक्कुल करो}” [सहीह इब्ने हिब्बन 2/590, हदीस नं 739]

 

और देखये

इस्लाम के मुलस्त्म्भ, ईमान के मुलस्त्म्भ, अल्लाह के अधिकार, मुहम्मद ने मानवता को क्या दियाआधी।

 

संदर्भ

  1. आलामुस्सुन्नहअल-मन्शूरह/ शैख हाफिज अल हकमी.
     
  2. अलक़ज़ावल क़द्र फी ज़ौइल किताब वस्सुन्नह/शैख डा. अब्दुर्रहमान अल-महमूद.
     
  3. अल-ईमान बिल क़ज़ा वल-क़द्र/शैख मुहम्मद अल-हमद.

https://islamqa.info/hi/49004

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