सलात या सलाह (नमाज़)


सलात(नमाज़) इस्लाम के अरकान(स्तम्भों) में से दूसरा महत्वपूर्ण रुक्न(स्तम्भ) है, जिसे दिन व रात में पांच बार पढ़ना अतिआवश्यक है। नमाज़ अल्लाह सुभहानहु और बन्दे(भक्त) के बीच दुआ का माध्यम है, इस्लाम धर्म में नमाज़ का बड़ा महत्त्व है। यह सभी प्रकार के कार्यों में सबसे महत्वपूर्ण तथा सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना(इबादत) है, जो केवल अराबी भाषा में पढ़ी जाती है एवं इसमें दुआएं एवं अज़्कार हैं।

 

सामग्री या अनुक्रमणिका

 

(१):सलात का शाब्दिक अर्थ

सलात एक महत्वपूर्ण प्रार्थना है जिसे एक मुसलमान दिन और रात में पांच बार विशेष ढंग से पढ़ता है, यह अराबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है “दुआ”।

 

(२):सलात का धार्मिक अर्थ(इस्लामी अर्थ)

सलात एक फ़र्ज़(अनिवार्य) प्रार्थना(इबादत) है जो ज्ञात शब्दों और कार्यों के माध्यम से पढ़ी जाती है, यह तकबीर से प्रारम्भ और तस्लीम से समाप्त होती है। (अश्शारहुल मुमात्ते)

 

(३): क़ुरआनमें

क़ुरआन मजीद में लगभग (७०) बार नमाज़ का विषय आया है, अल्लाह सुभहानहु तआला कहते हैं: "उस किताब को पढ़ो जो आपकी ओर उतारी गई है एवं नमाज़ का आयोजन करो, निसंदेह नमाज़ अश्लीलता तथा बुराई से रोकती है, और अल्लाह को याद करना तो बहुत बड़ी चीज़ है, तुम जो कुछ कर रहे हो अल्लाह उसे पहले से ही जनता है”। (अलअन्कबूत:४५)

 

और कहा "जो कुछ वे कहते हैं उसपर धैर्य रखो और अपने परवरदिगार की तस्बीह और  तारीफ़(गुणगान) करते रहो सूरज निकलने तथा उसके डूबने से पहले, रात की अलग अलग घड़ियों में और दिन के भागों में भी तस्बीह करते रहो ताकि तुम राजीं(सन्तुष्ट) होजाओ । (ताहा:१३० )

 

(४):हदीस में

मुहम्मद (सललेल्लाहु अलैही वसल्लम) ने कहा "पांच नमाज़ें, एक जुमा से लेकर दूसरे जुमा तक(दो जुमा के बीच के अन्तर तक) उन सभी छोटे गुनाहों(पापकर्म) का प्रायश्चित है जो उसके बीच में होगें जब तक बड़े गुनाह(पापकर्म) ना किये जाए” (सही मुस्लिम :२२३)

 

मुहम्मद (सललेल्लाहु अलैही वसल्लम) ने कहा "वोह(फ़रख़ करने वाला) अहद जो हमारे और उन (काफ़िरों) के बीच है वोह नमाज़ है(अर्थात हमारे और काफिरों के बीच केवल नमाज़ ही सब से बड़ा अंतर है) तो जिसन नमाज़ छोड़ दी वह निसंदेह काफ़िर होगया “ (जामे अत्तिरमिज़ी :२६२१)

 

(५): सलात(नमाज़) का महत्त्व

सलात(नमाज़) इस्लाम धर्म के बुनयादी स्तम्भों में से महत्वपूर्ण स्तम्भ है जो सभी कार्यों में सर्वश्रेष्ठ तथा मुख्य प्राथना है, इससे मोमिन के मन को शांति प्राप्त होती है तथा मन का ज़ंग (अस्वस्थ दशा) दूर होता है, यह एक मुसलमान को अल्लाह सुब्हानहु तआला के प्रति आज्ञाकारी बनाती है परंतु जो मुस्लमान नमाज़ नहीं पढ़ता वह अल्लाह सुब्हानु तआला का आज्ञाकारी नही बन सकता क्यूंकि  मुस्लमान और काफ़िर में केवल नमाज़ का ही अंतर है, प्रलय (the Judgment day) के दिन सब से पहला प्रशन नमाज़ के बारे में ही होगा।

 

नमाज़ की शरतें

(१).इस्लाम, 


(२).बुद्धि, 


(३).सिने तमीज़(वो आयु जब बच्चा समझदार होजाए या बग़ल और मुच के बाल निकले),


(४).नमाज़ के निर्धारित समय का होना,


(५).सतर ढ़कना(सतर का अर्थ: शरीर के वह अंग जिनको छिपाने का आदेश दिया गया, औरत का पूरा जिस्म सतर है उसके हाथ और चेहरे के सिवा, अथार्त औरत के हाथ और चेहरे को छोड़के पूरे जिस्म को ढकना आवश्यक है, पुरुष का पूरा जिस्म सतर है उसके हाथ, पैर, टखंना(ankle) और सर के सिवा), 


(६).साफ़ सुथरे रहना,गंदगी से बचना,


(७). हदसे अकबर(पेशाब,मल) और  हदसे अस्ग़र(हवा निकलना) के बाद पाक होना,


(८).खिंबला की ओर रुखं करना,


(९).निय्यत (यानि दिल से इरादा करना)।

 

नमाज़ के अरकान(स्तम्भ)

रुक्न(स्तम्भ) जानबूझ कर या भूल जाने से भी समाप्त नाही होता बाल्कि उसे करना भी आवश्यक होगा , तथा ये चौदा है;


(१). फ़र्ज़(अनिवार्य) नमाज़ के बीच ख़ियाम की ताक़त(सहनशक्ति) रख्ने वाले पर ख़ियाम करना,


(२).त्क्बीरे तहरीमा मतलब "अल्लाहु अक्बर" कह्ना,


(३).सुरह फ़ातिहा पढ़ना,


(४).रुकू करना ,


(५).रुकू से उठना,


(६).रूकू से उठकर सीधे खड़े होना,


(७).सजदा करना(सर को ज़मीन पर लगाना, इस्लाम में जैसे करने को कहा),


(८ ).सजदे से उठना,


(९).दो सजदों के बीच बैठना,


(१०).नमाज़ में हर स्तम्भ कोशांति के साथ करना, 


(११).अंतिम तशह्हुद पढ़ना,


(१३).तशह्हुद तथा दोनो ओर स्लाम के लिये बैटना, 


(१३).दोनों ओर सलाम फ़ेरना,


(१४).ऊपर बताए गई सभी स्तम्भों को क्रम अनुसार करना।

 

सलात(नमाज़) के वाजिबात(अनिवार्यता)

नमाज़ के ८ वाजिबात(अनिवार्यता) हैं ,


(१ ).त्क्बीरे तहरीमा के सिवा दूसरी सभी त्क्बीरात,


(२ ).इमाम तथा मुनफ़रिद(अकेले नमाज़ पढ़ने वाला) का "समिअल्लाहु लिमन हामिदाहु" कहना,


(३ )."रब्बना वा लकल हम्दु" कहना,


(४ ).रुकू में एक बार "सुब्हाना रब्बियल अज़ीम "कहना,


(५ ).सजदे में एक बार "सुब्हाना रब्बियल आला" कहना,


(६ ).दो सजदों के बीच "रब्बीघ़ फ़िरली" पढ़ना,


(७ ).पहला तशह्हुद पढ़ना,


(८ ).पहला तशह्हुद बैठना।

 

और देखये

अरकाने इस्लाम, अख़ीदा, तौहीद, नमाज़ में खुशू व ख़ुज़ू, इबादत और अन्य;

 

संदर्भ

किताब शुरूतुस सलात व अरकानुहा व वाजिबातुहा: शेख़ुल इस्लाम मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब

http://islamqa.info/ur/65847

http://islamqa.info/ar/107701

 

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