इस्लाम को अमान्य एवं नष्ट करने वाले विषय


महान इस्लामी विद्वान अब्दुल अज़ीज़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह(अल्लाह इनपर अपनी कृपा बनाए रखे) कहते हैं "अए मुसलमानों ! आपको यह ज्ञान होना चाहिये कि अल्लाह सुब्हानहु तआला ने सारे बन्दों(भक्तों) पर इस्लाम में सम्मिलित होने तथा उसके कहे अनुसार कार्य करने एवं जो चीज़ उसके विरुद्ध हो उस से बचने को अनिवार्य किया है और इसी बात के उपदेश के लिये अपने नबी मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम को भेजा है एवं हमें यह भी बता दिया कि जो व्यक्ति नबी मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम के आज्ञाओं का पालन करेगा वही सीधे मार्ग पर है एवं जो उसके विपरीत जाएगा वह गुमराह हुआ एवं बहुत सी आयात में मुर्तद(इस्लाम स्वीकार करके दुबारा से इस्लाम से बहार होने वाला व्यक्ति)कर देने वाले कारण एवं हर प्रकार के शिर्क(अल्लाह सुब्हानहु के साथ किसी और को साझी बनाना) एवं कुफ़्र(अल्लाह सुब्हानहु को नकारना) से डराया गया है ।

 

सूचि

 

परिचय

इस्लामी विद्वानों ने कहा कि ऐसे कई कार्य हैं जिसके कार्यान्वित करने से इस्लाम धर्म अमान्य एवं नष्ट होजाता है एवं एक मुस्लमान इस्लाम की सीमा से बाहर हो जाता है, एक मोमिन(आस्तिक) जो तौहीद (एक अल्लाह को मानने वाला) की प्रतिज्ञा करता है यदि वह इन कार्यों में से कोई कार्य कर लेता है तो उसका इस्लाम धर्म अमान्य होजाता है तथा यदि इसी अवस्था में उसकी मृत्यु हो जाए तो वह नरक वासी होजाता है।

 

इस्लाम धर्म को अमान्य एवं नष्ट करने वाले विषय १० हैं 

(१). अल्लाह सुब्हानहु तआला की आराधना में साझेदारी(association): अर्थात इस बात पर पूर्ण विश्वास रखना कि अल्लाह सुब्हानहु के सिवा कोई इबादत(पूज्ये) के योग्य नहीं, हर प्रकार की आराधना और बड़ाई केवल अल्लाह सुब्हानहु तआला के लिये ही वैध है, इसमें उसका कोई संगी नहीं जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "निसंदेह अल्लाह सुब्हानहु तआला इस चीज़ को क्षमा नहीं करेगा कि उसके साथ संगी बनाया जाए एवं इसके सिवा दूसरे अप्राद जिसे चाहे क्षमा कर देगा" (सूरा निसा :११६), और कहते हैं "विश्वास करो जो व्यक्ति अल्लाह सुब्हानहु का साझी बनाएगा अल्लाह सुब्हानहु ने उसपर स्वर्ग हराम(अवैध) करदी है एवं उसका ठिकाना नरक ही है एवं पापियों की सहायता करने वाला कोई नहीं होगा"।(अल माईदा :७२)

 

().अल्लाह सुब्हानहु तआला एवं उसके बन्दों(भक्तों) के बीच वास्ते(intermediaries) बनाना:अर्थात जो कोई व्यक्ति अपने एवं अल्लाह सुब्हानहु के बीच वास्ते(intermediaries) बनाता है एवं उनसे अनुशंसा(सिफ़ारिश) एवं समर्थन की मांग करता है और उनपे विश्वास रखता है कि वह उनके द्वारा अल्लाह सुब्हानहु तआला को प्रसन्न करलेगा तो उसने अल्लाह सुब्हानहु के साथ कुफ्ऱ(नास्तिकता) किया जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं " ख़बरदार(जान लो) अल्लाह सुब्हानहु के लिये ही विशुद्ध आराधना करना है एवं जिन लोगों ने उसके सिवा समर्थक बना रखे हैं एवं कहते हैं हम उनकी आराधना केवल इसलिये करते हैं कि यह हमे अल्लाह सुब्हानहु की सामीप्य(नज़्दीकी) स्थिति(दर्जा) प्राप्त करा दें गें, निसंदेह ये लोग जिस विषय में विभेद कर रहे हैं उसका निर्णय अल्लाह सुब्हानहु स्वयं लेगा, झूटे एवं अकृतज्ञ लोगों को अल्लाह सुब्हानहु मार्ग नहीं दिखता" (सूरा ज़ुमर : ३ )

 

(३).मुशरिकों एवं काफ़िरों(नास्तिकों) को मुशरिक एवं काफ़िर(नास्तिक) ना समझना : मुशरिकों को मुशरिक एवं काफ़िरों(नास्तिकों) को काफ़िर(नास्तिक) ना समझने वाला एवं उनके धर्म को सत्य समझने वाला भी नास्तिक हुआ ।

 

(४).मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम की शरीअत(धार्मिक नियम,विनियम) को सर्वश्रेष्ठ ना

समझना : अर्थात जो व्यक्ति यह विश्वास रखे कि मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम की लाई हुई शरीअत(धार्मिक नियम,विनियम) पूर्ण या परिपूर्ण नहीं है या मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम की तुलना में किसी और के नियम,विनियम अधिक श्रेष्ठ हैं उदाहरण के तौर पर मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम के सिवा किसी और ताग़ूत (अल्लाह सुब्हानहु के सिवा वे सभी जन एवं वस्तुएं  जिनकी इबादत(पूजा)या आज्ञा का पालन की जाती है ताग़ूत कहलाते हैं) के आदेशों को श्रेष्ठ समझे तो वह काफ़िर(नास्तिक)  हुआ, इसमें तीन बातें सम्मिलित हैं ,

 

(अ). नियम विनियम: जो यह विश्वास रखे कि लोगों के बनाए गए नियम विनियम इस्लामी नियम विनियम से अधिक श्रेष्ठ है या उसी के समान है या वह यह सोचता हो कि इस्लामी नियम विनियम ही सर्वश्रेष्ठ है परंतु इस युग के योग्य नहीं या यह कि यही इस्लामी नियम विनियम मुसलमानों के विकास में बाधा है या यह कि केवल अल्लाह एवं उसके भक्त(बन्दे) के बीच का संपर्क आवश्यक है जीवन के दूसरे विषयों में इसका कोई कार्य नहीं तो ऐसा विचार रखने वाला भी काफ़िर(नास्तिक) हुआ ।

 

(आ). अल्लाह सुब्हानहु द्वारा निर्धारित किये गए दंड इस युग के योग्य नहीं: अर्थात यह समझना कि अल्लाह सुब्हानहु तआला द्वारा निर्धारित किये गए दंड इस युग के लिये योग्य नहीं है उदाहरण के तौर पर चोरी का दंड हाथ काटना, विवाहित ब्लातकारी का दंड रज्म (कोड़े मारना) करना आज के युग में अनुचित है तो ऐसा समझने वाला भी काफ़िर(नास्तिक) हुआ ।

 

(इ). इस्लामी शरीअत(धार्मिक नियम,विनियम) के सिवा किसी और शरीअत को लागू करना :अर्थात जो यह विश्वास रखे कि मामलात या दंड या जीवन के किसी भी वषय में इस्लामी शरीअत के सिवा किसी और शरीअत को लागू किया जा सकता है चाहे वह यह सोचता हो कि ईस्लामी शरीअत ही सर्वश्रेष्ठ है तो ऐसा समझने वाला भी काफ़िर(नास्तिक) हुआ ।

 

(५).धर्म के किसी नियम से बैर रखना: जो व्यक्ति इस्लाम धर्म के किसी भी नियम से बैर रखता हो चाहे वह उसके अनुसार ही कार्य करता हो तो भी वह काफ़िर(नास्तिक) होगा क्यूंकि अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं " यह इसलिये कि वह अल्लाह सुब्हानहु की उतारी गई चीज़ से अप्रसन्न हुए तो अल्लाह सुब्हानहु ने उनके कार्य  व्यर्थ करदिये"।  (सूरा मुहमम्द :९)

 

(६).इस्लाम धर्म की हंसी उड़ाना: जो कोई व्यक्ति इस्लाम धर्म की या उसके किसी नियम की या हमारे नबी मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम की हंसी उड़ाता हो तो वह भी काफ़िर(नास्तिक) होगा, जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं " कहदो कि अल्लाह सुब्हानहु एवं उसकी आयात एवं उसका रसूल ही तुम्हारे हंसी उड़ाने के लिये रह गए हैं ? तुम बहाने न बनाओ निसंदेह तुम अपने ईमान के पश्चात काफ़िर होगए " । (सूरा तौबाः ६५- ६६)

 

(७).जादू: जो कोई जादू करता हो या करवाता हो या उसके करने से सहमति रखता होतो वह  काफ़िर(नास्तिक) होगा, क्यूंकि अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं " और वह दोनों भी किसी व्यक्ति को उस सम्य तक नहीं सिखाते जब तक ये न कहदें कि हुम तो एक परीक्षण है तू नास्तिकता न कर "  । (अल बखंरा :१०२ )

 

(८).मुसललमनों के विरुद्ध जाकर मुशरिकों एवं काफ़िरों(नास्तिकों) की सहायता करना : जो कोई व्यक्ति मुसललमनों के विरुद्ध जा के मुशरिकों एवं काफ़िरों(नास्तिकों) की सहायता करे तो वह काफ़िर(नास्तिक) हुआ, क्यूंकि अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं"तुम में से जो कोई उन में से किसी से मित्रता करेगा वह निसंदेह उन्हीं में से होगा निसंदेह अल्लाह सुब्हानहु तआला अत्याचारियों को मार्ग नहीं दिखाता "। (सूरा माइदा :५१ )

 

(९).जो कोई व्यक्ति यह विश्वास रखे कि कुछ लोगों के लिये इस्लाम धर्म से निकलना वैध होता है : जो कोई यह विश्वास रखता हो कि कुछ लोगों के लिये इस्लाम धर्म से निकलना वैध है जैसे खिज़र अलैहिस्सलाम के लिये हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की शरीअत से निकलना वैध था तो ऐसा विश्वास रखने वाला व्यक्ति भी काफ़िर(नास्तिक) हुआ क्यूंकि अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "जो व्यक्ति इस्लाम के सिवा कोई और धर्म तलाशेगा तो उसका वह धर्म अस्वीकरणीय होगा एवं वह आख़िरत(विलंबित) में घाटा उठाने वालों में से होगा " ।  (आले इमरान :८५ )

 

(१०).इस्लाम धर्म से दूर भागना : इस्लाम धर्म से दूर भागना न तो उसकी शिक्षा लेना एवं न ही उसके नियमों के अनुसार चलना तो ऐसा व्यक्ति भी काफ़िर(नास्तिक) होगा जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं " उस से अधिक अत्याचारी कौन होगा जिसे अल्लाह सुब्हानहु की आयतों का उपदेश दिया गया है फिर भी उसने उससे मुंह फेर लिया निसंदेह हम भी अपराधियों से बदला लेने वाले हैं "    (सूरा सज्दा : २२ )

 

एक चेतावनी

ऊपर बताए गए इस्लाम को अमान्य एवं नष्ट करने वाले १० विषयों में से कोई भी विषय गंभीरता से किया जाए या मज़ाक में, करने वाला काफ़िर(नास्तिक) हो जाए ग यदि ये विषय किसी से ज़बरदस्ती करवाया जाए तो उसपर कोई हर्ज(हानि) नहीं क्यूंकि उसे न चाहते हुए वह विषय करना पड़ा तथाअल्लाह सुब्हानहु तआला अपने बन्दों(भक्तों) की इरादा (नियत) को देखता हैउसके कार्यों को नहीं।

 

अल्लाह सुब्हानहु तआला हम सबको सदैव ईमान पर रखे एवं हमें मौत आए तो ईमान की अवस्था में ही आए । (आमीन)

 

और देखये

ईमान, इस्लाम, शिर्क, तौहीद, सुन्नत इत्तेबा औरअन्य;

 

संदर्भ

किताब नवाक़िज़ुल-इस्लाम : अश-शेख़ मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब। 

http://www.askislampedia.com/ur/wiki/-/wiki/Urdu_wiki/%D9%86%D9%88%D8%A7%D9%82%D8%B6+%D8%A7%D8%B3%D9%84%D8%A7%D9%85

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