आख़िरत (विलंबित) के दिन पर ईमान (पूर्ण विश्वास)


आख़िरत(विलंबित) के दिन से मतलब  खंयामत(पुनर्जागरण) का दिन है। "आख़िरत के दिन पर ईमान रखना" ईमान के अरकान(स्तम्भों) में से दूसरा रुक्न(स्तम्भ) है, "आख़िरत के दिन पर ईमान रखना "अर्थात इस दिन के होने पर और इसके संबंधित अल्लाह सुब्हानहु तआला एवं मुहम्मद सललेल्लाहु अलैही वसल्लम से जो कुछ जानकारी हमें प्राप्त हुई है उसपर पूर्ण विश्वास रखना और उसको मानना है, इस दिन को आख़िरत(विलंबित) का दिन इसलिये भी कहा जाता है कि इस दिन के बाद कोई दूसरा दिन नहीं होगा क्यूंकि इस दिन अल्लाह सुब्हानहु तआला मनुष्य को दुबारा जीवित करके उनसे उनके किये गए सारे कार्यों का हिसाब लेगें फ़िर सब अपने अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक में स्थित होजाएगें, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं: "तथा जो लोग ईमान लाते हैं उसपर जो आपकी ओर उतरा और जो अप से पहले उतरा और आख़िरत(विलंबित) के दिन पर भी विश्वास रखते है,यही लोग अपने रब की ओर से सीधे मार्ग(हिदायत) पर हैं एवं यही सफ़लता प्राप्त करने वाले हैं"। (अल बखंरा : ४-५),यदि कोई इसे ना माने तो अल्लाह सुब्हानहु तआला ने उसे काफ़िर(नास्तिक) बताया है क्यूंकि इसको मानना ईमान का स्तम्भ है तथा इसको ना मानने से ईमान असंपूर्ण एवं अस्वीकार्य होगा, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं: "जो व्यक्ति अल्लाह सुब्हानहु और उसके फ़रिश्तों एवं उसकी किताबों एवं  उसके रसूलों एवं खंयामत के दिन(Day of resurrection) को नकारे तो वह बहुत बड़ी गुमराही(Mislead) में जा पड़ा"।(सूरा निसा : १३६)

 

सूचि

 

आख़िरत के दिन पर ईमान लाने की ३ बातें

(अ).दुबारा जीवित किये जाने पर ईमान लाना:

दुबारा जीवित किये जाने पर ईमान लाना अर्थात दूसरी  बार सूर फूंकते समय मुर्दों को जीवित करने की स्थिति पर ईमान लाना है कि सारे मरे हुए लोग जीवित होजाएगे, वे ख़बरों से नंगे सर नंगे पैर नंगे बदन बिना ख़तना(circumcise) के निकले गें और अल्लाह सुब्हानहु तआला के सामने उपस्थित होगें, लोगों को उनके पिता के नाम से बुलाया जाएगा अल्लाह सुब्हानहु तआला स्पष्ट रूप से अपने बन्दों(भक्तों)से बात करेगें इस प्रकार कि उसके और उसके बन्दों के बीच कोई अनुवादक(translator)  नहीं होगा, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "जिस प्रकार हम ने पहले पैदा किया था दुबारा भी पैदा करेगें, यह हमारे ज़िम्मा वादा है निसंदेह हम पूरा करने वाले हैं" (अल अंम्बिया : १०४)

 

दुबारा जीवित किये जाना सत्य तथा प्रमाणित है: दुबारा जीवित किये जाना सत्य तथा क़ुरआन एवं हदीस से प्रमाणित है और इस्लामी विद्वान समिति भी इससे सर्वसम्मत हैं, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "फ़िर तुम उसके बाद मरने वाले हो फ़िर तुम खंयामत के दिन जीवित किये जाओगे"(अल मोमिनून : १५ ,१६ )

 

हदीस: मुहम्मद सललेल्लाहु अलैही वसल्लम कहते हैं "खंयामत के दिन लोगों को नंगे सर नंगे पैर नंगे बदन बिना ख़तना(circumcise) के एकत्रित किया जाएगा" (सही बुख़ारी : ६५२७, सही मुस्लिम :२८५९ )

तो इसके सत्य होने पर सर्व मुसलमानों की सर्वसम्मती है और बुद्धिमत्ता की अपेक्षा भी यही है कि अल्लाह सुब्हानहु तआला अपने बन्दों(भक्तों) को दुबारा जीवित करे और अपने रसूलों द्वारा जो धार्मिक कार्य एवं नियम लागू किये थे उसका हिसाब ले और उसी के अनुसार उसका परिणाम दे, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "तो क्या तुम यह सोचते हो कि हम ने तुम्हे व्यर्थ(बेकार) पैदा किया और यह कि तुम हमारे पास लौट कर नहीं आओगे" (अल मोमिनून : ११५ ), और एक क्षेत्र में अपने पैग़म्बर(messenger) से कहा "जिस ने तुम पर क़ुरआन को अनिवार्य(फ़र्ज़) किया क्या वह तुम्हे लौटने की जगा वापस लाएगा" ((अल खंसस : ८५)

 

(आ). इस बात पर ईमान लाना कि हर व्यक्ति के कर्मों का हिसब होग और सबको उनके कर्म अनुसार परिणाम दिया जाएगा

अर्थात मनुष्य के हर कार्ये का हिसाब होगा और सबको उनके कर्म अनुसार ही परिणाम दिया जाएगा तथा यही क़ुरआन एवं हदीस से भी प्रमाणित है और इस्लामी विद्वान समिति भी इससे सर्वसम्मती रखती है, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "तथा जो कोई अल्लाह सुब्हानहु के हाँ एक पुण्य लेके आएगा उसको वैसी ही १० पुण्यफ़ल मिले गें तथा जो बुराई(पाप) लाएगा उसको वैसे ही (उसके पाप अनुसार) दंड मिलेगा एवं उनकी साथ कोई अन्याय ना होगा" (अल अनआम : १६० ) एक और आयत में अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "तथा खंयामत के दिन हम न्याय की तुला स्थापित करेंगे फ़िर किसी भी व्यक्ति पर कुछ अन्याय ना होगा तथा यदि वह (कर्म) राय के दाने ही के बराबर हो तो उसे भी हम ले आएगें एवं हम ही हिसाब लेने के लिये पर्याप्त हैं" (अल अंम्बिया : ४७), अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु सूचित करते हैं कि मुहम्मद सललेल्लाहु अलैही वसल्लम ने कहा: " खंयामत के दिन अल्लाह सुब्हानहु तआला मोमिन(believer) व्यक्ति को अपने पास बुलाकर परदे से डाक लेगा फ़िर उससे पूछेगा क्या इन पापों को जनता है(क्या तूने ये ये पाप किये) वह कहेगा हाँ, हाँ इसी प्रकार वह अपने सारे पाप प्रकट रूप में स्वीकार करलेगा और यह सोचकर चिन्तन होजाएगा कि वह तो अब बर्बाद होगया तभी अल्लाह सुब्हानहु तआला कहे गें " मैं नें दुनिया में तेरे पापों को छिपाया था, आज तेरे पापों को क्षमा करता हूँ फ़िर उसको उसके पुण्य कर्मों का लिखित प्रमाण(नामाए आमाल) दिया जाएगा परंतु कुफ़्फ़ार(इंकार करने वाले,नास्तिक) तथा मुनाफ़िखों(पाखंडीयों,Hypocrite) को प्रत्येक सृष्टि के सामने बुला कर कहा जाएगा कि "ये वे लोग हैं जिन्हूं ने अपने रब(lord) को अस्वीकार किया, ख़बरदार(सतर्क रहो) अन्याय करने वालों पर अल्लाह सुब्हानहु तआला की लाअनत है" (सही बुख़ारी : २४४१ ), एक और हदीस में है कि मुहम्मद सललेल्लाहु अलैही वसल्लम कहते हैं: " जो व्यक्ति किसी पुण्य के काम करने का मनोरथ(इरादा) करे तथा उसे ना कर पाए तब भी अल्लाह सुब्हानहु तआला उसके लिये अपने हां एक पुण्य लिख देता है एवं यदि वह मनोरथ(इरादा) करेने के बाद वह पुण्य का काम करले तो अल्लाह सुब्हानहु तआला उसके लिये अपने हां उस एक पुण्य का १०(10) गुना(times) से ७००(700) गुना बल्कि उससे भी अधिक पुण्य लिख देता है और जो व्यक्ति किसी पाप के काम करने का मनोरथ(इरादा) करे  तथा उसे ना कर पाए तो अल्लाह सुब्हानहु तआला उसके लिये अपने हां एक पुण्य लिख देता हैएवं यदि वह मनोरथ(इरादा) करेने के बाद वह पाप करले तो उसके बदले केवल एक पाप लिखा जाता है" (सही बुख़ारी : ७५०१, सही मुस्लिम : २३७,१२९ ,१३०)

 

खंयामत के दिन प्रत्येक मानवजाति के कर्मों का हिसाब तथा उसके अनुसार परिणाम  दिये जाने के विषेय से प्रत्येक मुसलमान सर्वसम्मत हैं और बुद्धिमत्ता की अपेक्षा भी यही है क्यूँकि अल्लाह सुब्हानहु तआला ने अपने बन्दों(भक्तों) के मार्गदर्शन के लिये रसूलों को भेजा और  उनके द्वारा किताबें उतारी और उनके माध्यम से धार्मिक कार्य एवं नियम लागू किये उसको स्वीकार करना और उसको करना अनिवार्य किया तथा जो लोक उसके विरुदी हो उनके साथ युद्ध को अनिवार्य किया और उनके प्राण, उनके संतान उनकी महिलाओं तथा उनकी धन-सम्पत्ति को वैध बताया तो यदि इन सारे कार्यों का हिसाब ही ना हो और उसके अनुसार परिणाम  ना दिया जाए तो सारे नियम तथा विनियम बेकार एवं मूल्यहीन होजाए गें, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "फ़िर हम उन लोक से अवश्य पूंछेगें जिनके पास पैग़म्बर  भेजे गए थे एवं उन पैग़म्बरों से भी अवश्य पूंछेगें फ़िर अपने ज्ञान के आधार पर उनके सामने सब बता देगें तथा हम कहीं उपस्थित ना थे" (अल आराफ़ : ६-७)

 

(इ). स्वर्ग और नरक पर ईमान लाना

स्वर्ग और  नरक ये सृष्टि के हमेशा रहने के ठिकाने हैं, स्वर्ग सुखद वस्तुओं का घर है जिसे अल्लाह सुब्हानहु तआला ने उन धर्मपरायणों एवं पवित्र व्यक्तियों के लिये बनाया है जो उसपर ईमान लाए और उन चीज़ों पर भी ईमान लाए जिनपर ईमान लाने का अल्लाह सुब्हानहु तआला ने आदेश दिया और अल्लाह सुब्हानहु तआला एवं उसके रसूलों के आज्ञाकारी रहे तथा उनके प्रति विशुद्ध रहे तो ऐसे जन के लिये स्वर्ग में कई प्रकार की सुखद वस्तुऐं हैं -एक हदीस में है "(वहा ऐसी सुखद वस्तुऐं हैं) जिसे ना किसी आंख ने देखा, ना किसी कान ने सुना और ने किसी व्यक्ति के मन में उसका विचार भी आया" (सही बुख़ारी : ३२४४ ) ।

 

अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "निसंदेह वे लोक जो ईमान लाए तथा अचछे कर्म किये तो जगत सृष्टि में ये श्रेष्ठ लोक हैं, उनका परिणाम उनके रब के पास सदा रहने वाली स्वर्ग है जिसके निचे नहरें बह रही होगीं एवं वे उसमें सदैव रहेगें, अल्लाह सुब्हानहु तआला उनसे प्रसन्न हुआ और वे उससे प्रसन्न हुए, ये सब उसके लिये है जो अपने रब से डरता है" (अल बैयिना : ७,८ ), एक और क्षेत्र में अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "फ़िर कोई व्यक्ति नहीं जानता कि उसके कर्मों के बदले में उनकी आँखों की क्या ठंडक छिपा कर रखी है" (अल सजदा :१७ )

 

स्वर्ग के विपरीत नरक दुख और पीड़ा का घर है अल्लाह सुब्हानहु तआला ने उसे उन अन्याय करने वाले काफ़िरों(नास्तिक) के लिए बनाया जिनहूं ने अल्लाह सुब्हानहु तआला एवं उसके रसूलों के नकारा एवं उनकी आज्ञाओं का उल्लंघन किया, नरक में कई प्रकार के इतने भीषण(भयानक) दण्ड है कि कोई व्यक्ति उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता, अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "तथा उस आग से बचो जो इंकार करने वालों के लिये निर्माण की गइ है" (आले इमरान : १३१ )

 

एक और क्षेत्र में कहा " निसंदेह हम ने अत्याचारीयों के लिये आग निर्माण कर रखी है उन्हें इसकी खिंनातें घेर लेगीं तथा यदि फ़रयाद करेगें तो ऐसे जल से फ़रयादपूरी की जाए गी जो तांबे के प्रकार पिघला हुआ होगा मुहानों को भून देगा क्या ही बुरा पय होगा एवं क्या ही बुरी विश्रामस्थल होगी" (अल कहफ़ : २९) और अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते "निसंदेह अल्लाह सुब्हानहु तआला ने अत्याचारीयों पर लानत की है और उनके लिए नरक का निर्माण किया है जिसमें वे सदैव रहेगें ना कोई मित्र पाएगें और ना कोई सहायक जिस दिन उनके मुंह आग में उलट पलट किये जाए गें कहें गें अए काश हम ने अल्लाह सुब्हानहु एवं उसके रसूल का कहा माना होता" (अल अहज़ाब :६४-६६)

 

आख़िरत के दिन पर ईमान लाने के लाभ

(१). उस दिन के सवाब(पुण्य फल) की आशा एवं चाह में आज्ञाकारी तथा अत्यधिक आज्ञा पालन के प्रति मन में उत्सुकता जनम लेती है,

(२)  उस दिन के पापकष्ट(पाप दंड) से बचने के लिये अत्यधिक आज्ञालंघन से मन ऊबा जाता है,

(३) आख़िरत की सुखद वस्तुओं एवं सवाब(पुण्य फल) की आशा के कारण दुनिया की सुखद वस्तुओं के ना मिलने पर भी मन संतुष्ट रहता है।

 

और देखये

अरकाने इस्लाम(इस्लाम के स्तम्भ);अरकाने ईमान( ईमान के स्तम्भ);स्वर्ग;नरक;पुले-सिरात;मीज़ान(तुला); खंयामत की निशानियां(संकेत)और अन्य;

 

संदर्भ

शरह उसूलुल ईमान: अश-शेख़ मुहम्मद बिन सालेह अलउस्मैन

http://www.askislampedia.com/ur/wiki/-/wiki/Urdu_wiki/%D8%A2%D8%AE%D8%B1%D8%AA+%D9%BE%D8%B1+%D8%A7%DB%8C%D9%85%D8%A7%D9%86

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