अल्लाह सुब्हानहु तआला पर ईमान (पूर्ण विश्वास)


अल्लाह सुब्हानहु तआला पर ईमान(पूर्ण विश्वास) रखना ईमान के स्तम्भों में से पहला स्तम्भ है एवं यही इस्लाम धर्म के अखींदा(सिद्धांत, belief) की बुनियाद, उसका मूल एवं उसकी जड़ है, यही से इस्लामी अखींदा(सिद्धांत) का आरंभ होता है। अल्लाह सुब्हानहु तआला पर ईमान(पूर्ण विश्वास) रखना अर्थात उसके अस्तित्व(अल्लाह के वजूद पर ईमान) पर पूर्ण विश्वास रखना है तथा उसके रब(Lord) होने(तौहीदे रुबूबीयह), उसके इबादत के योग्य होने(तौहीदे उलूहीयह) और उसके नाम एवं गुणों(तौहीदे अस्मा वा सिफ़ात) पर ईमान लाना है ।

 

सूचि

 

अल्लाह सुब्हानहु तआला पर ईमान लाने की ४ बातें

(अ).अल्लाह सुब्हानहु तआला के अस्तित्व पर ईमान:

अल्लाह सुब्हानहु तआला के अस्तित्व पर ईमान लाना ४ बातों पर निर्भर करता है,

(१) अल-फ़ितरह(सत्य की ओर प्राकृतिक स्पष्ट झुकाव),

(२). अल अखंल(कारण और विश्लेषण),

(३). अश-शरीआ(आसमानी किताबें)और  

(४). अल-हिस(शारीरिक इंद्रिय)।

 

(१) अल-फ़ितरह(सत्य की ओर प्राकृतिक स्पष्ट झुकाव):

हर प्राणी अपने जन्म से ही प्राकृतिक रूप से बिना किसी सीख तथा शिक्षा के अपने सृष्टिकर्ता में एक विश्वास रखता हैं एवं इसी विश्वास के साथ उसका जन्म होता है यह विश्वास ही उसका सबसे पहला विचार होता है तथा इस प्राकृतिक अपेक्षा एवं सहज विश्वास से उसे कोई अलग नहीं कर सकता जब तक कि शैतान उसे बहका ना दे या उसका मन किसी ऐसी बात से प्रभावित होजाए जो इस विश्वास को उसके मन से हटादे, इसीलिये मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) ने कहा "हर बच्चा फ़ितरत(इस्लाम) पर पैदा होता है परंतु उसके माता पिता उसे यहूदी(Jew) , ईसाई(Christian), एवं मजूसी बनाते हैं" (सही बुख़ारी :१३५८, सही मुस्लिम :२६५८)इस हदीस से पता चलता है कि हर बच्चे को अपने जन्म के सम्य से ही ज्ञान होता है कि अल्लाह सुब्हानहु तआला ही उसके विधाता हैं।

 

(२). अल अखंल(कारण और विश्लेषण):

अर्थात वह कारण और विश्लेषण जो अल्लाह सुब्हानहु तआला के अस्तित्व को प्रमाणित करती हैं : ये  विश्व संसार सारे प्राणी जीव जंतु  तथा जो कुछ भी अतीत में था एवं है वह बिना निर्माता और प्रवर्तक के नहीं होसकते निश्चयी उसका कोई विधाता है क्यूंकि कोई भी चीज़ छोटी हो या बड़ी स्वयं अपने आप को नहीं बना सकती तथा जब उस चीज़ का कोई अस्तित्व ही ना था तो यह कैसे संभव है कि वह स्वयं अपने आप की सृष्टि करे, और ये भी संभव नहीं कि कोई संयोग या दुर्घटना संसार के अस्तित्व का कारण बनी हो क्यूंकि विश्व संसार धरती आकाश वर्षा सूरज चंद तारे एवं उसमें रहने वाले जीव जंतु प्राणी हर वस्तु सब कुछ बहुत अद्भुत आश्चर्यजनक तथा शानदार संगठन के साथ व्यवस्थित रूप से रचा गया है एवं हम देखते हैं कि संसार की हर चीज़ एक दूसरे से जुड़ी हुई है और सब अपना अपना कार्य उत्तमता से कर कर रहे हैं और इसका कोई भी भाग दूसरे भाग से नहीं टकराता तो इस बात पर विश्वास करलेना कि इन सब का कोई आयोजक नहीं अविश्वसनीय है, हमारी बुद्धि कहती है इतना बड़े एवं व्यवस्थित संसार का कोई ना कोई विधाता आवश्य होगा जो आज भी संगठित रूप से उसे चलाता हुआ आ रहा है और चलाए ग तथा वह अल्लाह सुब्हानहु तआला ही है जैसे कि अल्लाह सुब्हानहु तआला स्वयं कहते हैं "ना सूर्य के लिये यह मान्य है कि वह चाँद को पकडे एवं ना रात दिन से आगे बढ़ने वाली है और सब के सब आकाश में तैर रहे हैं" (सूरा यासीन :४०), और कहते हैं "क्या ये बिना(किसी विधाता) के अपने आप पैदा होगए या ये स्वयं सृष्टिकर्ता है, क्या इन्हूं ने ही आकाश एवं धरती की सृष्टि की है बल्कि ये विश्वास ना करने वाले लोक हैं या इनके पास आप के रब के ख़ज़ाने(निधि) हैं या ये इन ख़ज़ानों(निधि) के दारोग़ा हैं" (सूरा तूर :३५-३७), इमाम बुख़ारी रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं कि जुबैर इब्ने मुतइम रज़ियल्लाहु अन्हु(अल्लाह इन से प्रसन्न हो) ने प्यारे नबी मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) को उस सम्य सूरा तूर पढ़ते हुए सुना जब वह मुस्लमान नहीं हुए थे मगर इसके बावजूद भी जब उनहूं ने इन आयतों को सुना तो उनका दिल कांप उठा एवं इन्हीं आयतों ने उन्हें सबसे पहले इस्लाम की ओर आकर्षित किया और वह मुस्लमान होगए । (सही बुख़ारी :४८५४ )

 

(३).अश-शरीआ(आसमानी किताबें):

अल्लाह सुब्हानहु तआला ने जो भी आसमानी किताबें उतारी और जो कुछ भी बातें एवं नियम विनियम क़ुरआन हदीस में उतारे सब अल्लाह सुब्हानहु तआला के अस्तित्व को प्रमाणित करते हैं एवं जीवन की आवश्यकताओं के विषयों को दर्शाते हैं और हमारा मार्गदर्शन करते हैं तथा यदि हम उन सब बातों पर विचार करें तो हमें समझ आजाएगा कि एकाकी अल्लाह सुब्हानहु तआला ही अपनी सृष्टि का पूरा ज्ञान रखता है और वह हमें वही बताता है जो हमारे लिये सर्वश्रेष्ठ है क्यूंकि यदि हम प्रकृति को ध्यान से देखे और अल्लाह सुब्हानहु के नियम विनियम को समझे तो हमें समझ आएगा कि जो कुछ भी उसने अपनी किताबों में उतारा सब सत्य है एवं उसका सत्य होना भी प्रमाणित हो चुका है इसको कोई भी झुटला नहीं स्का, इससे यही पता चलता है कि सृष्टि के बारे में स्रष्टा से अधिकतर कोई नहीं जनता।

 

(४). अल-हिस(शारीरिक इंद्रिय): इसमें दो बातें सम्मिलित हैं :

(१). सबसे पहली बात यह कि हम सब अल्लाह सुब्हानहु तआला के अस्तित्व पर पूर्ण विश्वास रखते हैं क्यूंकि जब हमें कोई पीड़ा होती है या हम किसी संकट में होते हैं तो पूर्ण विश्वास के साथ अल्लाह सुब्हानहु तआला को पुकारते हैं एवं उससे प्रार्थना करते हैं और वह हमारी प्रार्थनाओं को सुनता भी है और हमें उस संकट से निकाल भी देता है, बेचैन एवं व्याकुल मन केवल उसी के नाम से शांति प्राप्त करते हैं तथा यह सब निर्णायक रूप से इस बात को प्रमाणित करते हैं कि अल्लाह सुब्हानहु तआला अपनी पूरी श्रेष्ठता एवं महानता के साथ उपस्थित हैं और इस संसार का आयोजन कर रहा है जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "नूह के उस सम्य को याद करो जबकि उसने उससे पहले प्रार्थना की, हमने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और उसे और उसके घर वालों को बड़ी पीड़ा से बचाया" (अल अंम्बिया :७६), और कहते हैं "ऐयूब की उस अवस्था को याद करो जब उसने अपने रब को पुकारा कि मुझे यह पीड़ा(रोग) पहुंची है एवं तू सारे दयावानों में से अत्यंत दयावान है तो हमने उसकी सुनली एवं उसके दुख को दूर करदिया एवं उसे घर वाले(परिवार) प्रदान किये और अपनी विशेष कृपा से उनके साथ उनके जैसे और भी दिये ताकि सच्चे बंदगी करने वालों के लिये उपदेश का कारण हो"। (अल अंम्बिया :८३-८४),  

 

(२). दूसरी बात यह कि अल्लाह सुब्हानहु तआला ने अपने रसूलों को विभिन्न चमत्कार के साथ भेजा उनके सम्य के लोग इसके साक्षी हैं लोगों ने इन चमत्कारों को स्पष्ट रूप से देखा या विश्वसनीय सूत्रों से सुना उदाहरण के तौर पर अल्लाह सुब्हानहु तआला ने मूसाअलैहिस्सलाम को आदेश दिया कि वह अपनी लाठी समुद्र पर मारें उन्हूं ने ठीक ऐसा ही किया तो समुद्र १२ थल भागों में बट गया जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "तब हम ने मूसा की ओर वही की कि अपनी लाठी समुद्र पर मारे तो वह फट गया एवं प्रत्येक भाग एक बड़े पहाड़ के प्रकार होगया" (सूरा शुअरा :६२), और इसी प्रकार ईसा अलैहिस्सलामके संबंधित क़ुरआन में आया कि वह कहते हैं " मैं तुम्हारे लिये परिंदे(पंछी) के प्रकार एक परिंदे(पंछी) का आकर बनाता हूं फ़िर उसमें फूंक मारता हूँ तो वह अल्लाह सुब्हानहु के आदेश से परिंदा (पंछी) बन जाता है एवं अल्लाह सुब्हानहु के आदेश से ही अंधों एवं कोढ़ीयों को स्वस्थ करदेता एवं मृतकों को जीवित करदेता हूं "(सूरा आले इमरान :४९)

 

अल्लाह सुब्हानहु तआला के रब (Lord) होने(रुबूबीयह) पर ईमान:

अर्थात इस बात पर पूर्ण विश्वास रखना कि एकाकी अल्लाह सुब्हानहु तआला ही विश्व संसार का स्रष्टा एवं उसका संचालक है, इसमें ना उसका कोई संगी है ना सहायक, वहीं हर चीज़ का विधाता है जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला ने कई क्षेत्रों में कहा और निचे दी गई आयतों में बताया गया,

 

क़ुरआन: 

अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं :(१)."सारी प्रशंसा अल्लाह सुब्हानहु तआला के लिये है जो कि पूरे जगत का मालिक है"(अल फ़ातिहा :१), (२)."याद रखो अल्लाह सुब्हानहु के लिये ही ख़ास है स्रष्टा होना एवं शासक होना"(अल आराफ़ :५४), (३)."वह आकाश से लेके धरती तक हर कार्य की व्यवस्था करता है" (सूरा सजदा :५),  (४)."यही अल्लाह है जो तुम सबका पालनहार है और उसी का राज्य है तथा जिनको तुम अल्लाह सुब्हानहु के सिवा पुकार रहे हो तो वे खजूर की गुटली के छिलके के भी बारबार नहीं" (फ़ातिर :१३) मालूम हुआ की केवल अल्लाह सुब्हानहु तआला ही पूरे संसार का स्रष्टा एवं आयोजक है और इस बात से मक्का के काफ़िर(नास्तिक) भी सहमत थे और बहुधा काफ़िर(नास्तिक) और दूसरे धर्म वाले भी इस से सहमति रखते हैं जैसे अल्लाह सुब्हानहु कहते हैं "  कहदो कि तुम्हें आकाश एवं धरती से अन्न कौन देता है या वह कौन है जो कानों तथा आँखों पर पूरा अधिकार रखता है और वह कौन है जो जीविन्त को मृतक से एवं मृतक को जीविन्त से निकालता है और वह कौन है जो सारे विषयों की व्यवस्था करता है तो वे निसंदेह कहें गे अल्लाह, तो उनसे कहे कि फ़िर तुम डरते क्यूं नहीं" (यूनुस :३१)

 

अल्लाह सुब्हानहु तआला के इबादत(पूज्ये) के योग्य होने(उलूहीयह) पर ईमान:

अर्थात इस बात पर पूर्ण विश्वास रखना कि अल्लाह सुब्हानहु तआला ही हर प्रकार की इबादत(पूज्ये) के योग्य है उसकेसिवाकोई इबादत(पूज्ये) के योग्य नहीं, नमाज़ रोज़ा ज़कात हज बलिदानहर प्राकर की अराधनाए शारीरिक या ज़बानी तौर पर सब अल्लाह सुब्हानहु तआला के लिये ही ख़ास है, हर प्रकार की अराधना और बड़ाई केवल अल्लाह सुब्हानहु तआला के लिये ही वैद है, इसमें इसका ना कोई संगी है ना सहायक एवं यही वह मुख्य एवं श्रेष्ट प्रयोजन था है जिसके उपदेश के लिये रसूलों को भेजा गया, किताबें उतारी गईं और रसूलों को नकारा गया और यही वह आस्था है जिसके माध्यम से मोमिम(आस्तिक) एवं  काफ़िर(नास्तिक) स्वर्ग एवं नरक वालों में अंतर किया जासकता है जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला ने कई क्षेत्रों में कहा और निचे दी गई आयतों में बताया गया,

 

क़ुरआन: अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं : (१)."हमने हर जाति में रसूल भेजा कि (लोगों) केवल अल्लाह सुब्हानहु की बंदगी करो एवं ताग़ूत(अल्लाह सुब्हानहु के सिवा वे सभी जन एवं वस्तुएं जिनकी पूजा की जाती है) से बचो तो कुछ लोगों को अल्लाह सुब्हानहु ने हिदायत(मार्गदर्शन) दी और कुछ लोगों पर गुमराही(Mislead) प्रमाणित होगई” (अन नहल: ३६), (२). "तुम्हारा पूज्ये-प्रभु एक ही है एवं उसके सिवा कोई पूज्ये के योग्य नहीं वह कृपाशील एवं अत्यंत दयावान है"(अल बक़रा :१६३), (३)."अल्लाह सुब्हानहु तआला फ़रिश्ते एवं ज्ञान वाले इस बात के साक्षी हैं कि अल्लाह सुब्हानहु तआला के सिवा कोई पूज्ये के योग्य नहीं एवं वह न्याय को स्थापित करने वाला है इस प्रभावशाली एवं बुद्धिमान के सिवा कोई पूज्ये के योग्य नहीं"(अल इमरान :१८), (४)."यह इसलिये भी है कि अल्लाह सुब्हानहु तआला सत्य है एवं उसके सिवा जिसे भी यह पुकारते हैं असत्य है निसंदेह अल्लाह ही सर्वोच्च एवं महान हैं" (अल हज :६२), इसी प्रकार अल्लाह सुब्हानहु तआला ने काफ़िरों के बुतों के बारे में कहा कि "यह तो सिवाए नामों के कुछ नहीं जो तुमने एवं तुम्हारे बाप दादों ने रख लिये हैं अल्लाह सुब्हानहु तआला ने उनका कोई प्रमाण नहीं उतारा" (सूरा नज्म: ३२), इसी प्रकार यूसुफ़ ने अपने जेल(क़ैदख़ाना) के संगियों से कहा "अय मेरे जेल(क़ैदख़ाना) के संगियों। क्या अलग अलग बहुत से रब श्रेष्ठतर हैं या एक अल्लाह सुब्हानहु तआला जो कि प्रभुत्व रखने वाला प्रभावशाली है उस्के सिवा तुम जिनको पूज रहे हो वह सब नाम ही नाम है जो तुमने तुम्हारे बाप दादों ने स्वयं अपने मन से रख छोड़े हैं अल्लाह सुब्हानहु तआला ने इसका कोई प्रमाण नहीं उतारा" (सूरा यूसुफ़ :४०) ।

 

अल्लाह सुब्हानहु तआला के नाम एवं गुणों(अस्मा वा सिफ़ात) पर ईमान:

अल्लाह सुब्हानहु तआला ने अपनी किताब(क़ुरआन) में जो अपने नाम एवं गुण बताए हैं तथा मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) ने अपनी सुन्नत(हदीस) में जो अल्लाह सुब्हानहु के नाम एवं गुण बताए हैं केवल उसी पर पूर्ण विश्वास रखना बिना किसी तहरीफ़(अर्थ बदलना), ताअतील(नकारना), तमसील(उदाहरण देना) और तकयीफं(परिस्थिति बताना) के, जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं" तथा अल्लाह सुब्हानहु के लिये ही अच्छे अच्छे नाम हैं तुम उसे उन्हीं नामों से पुकारो और जो लोक उसके नामों में अधर्मता करते हैं उन्हें छोड़ दो जल्द ही उन्हें उनके कार्यों का दंड दिया जाएगा "(अल आराफ़:१८०), और कहते हैं "उसी की श्रेष्ठ एवं उच्चतम विशेषताएँ हैं आकाश तथा धरती में भी और वही अत्यंत प्रभावशाली एवं बुद्धिमान है" (सूरा रूम: २७) ये दोनों आयतें अल्लाह सुब्हानहु तआला के नाम एवं उसके गुणों को प्रमाणित करती हैं एवं यह भी बतलाती हैं कि अल्लाह सुब्हानहु तआला अपने हर गुण में परिपूर्ण है।अल्लाह सुब्हानहु तआला के नाम एवं उसके गुणों के विषय में बहुधा लोगों के बीच मतभेद पाया जाता है भिन्न लोक भिन्न विचार रखते हैं तथा इस मतभेद में हमारा निर्णय वही है जिसका आदेश हमें अल्लाह सुब्हानहु तआला ने दिया अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "यदि तुम किसी चीज़ में मतभेद करो तो उसे अल्लाह एवं उसके रसूल की ओर लौटाओ यदि तुम अल्लाह और आख़िरत(विलंबित) के दिन पर ईमान(पूर्ण विश्वास) रखते हो" (सूरा निसा :५९) तो हम यह मतभेद भी अल्लाह सुब्हानहु तआला एवं उसके रसूल मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम की सेवा में पेश करते हैं और देखते हैं कि इस विषय में मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) एवं उनके सहाबा(साथी) रज़ियल्लाहु अन्हुम(अल्लाह इन सबसे से प्रसन्न हो) एवं उनके अनुयायियों के क्या विचार थे क्यूंकि सहाबा वे पवित्र लोक थे जिनको अल्लाह सुब्हानहु तआला ने अपने रसूल की सांगत के लिये चुन लिया था जिनहूं ने रसूल सललेल्लाहु अलैही वसल्लम से धर्म को सीखा स्पष्ट रूप से, युद्ध लड़े अपने रसूल के साथ, हर पीड़ा का डटकर सामना किया, अपना धन प्राण परिवार सब रसूल सललेल्लाहु अलैही वसल्लम पर बलिदान करदिया,वे पूरे संसार में सबसे अधिक अपने रसूल की बात को समझने वाले तथा सबसे अधिक धर्म का ज्ञान रखने वाले लोक थे इसीलिये कहा गया धर्म को वैसे ही समझो जैसे सलफ़ ने समझा था धर्म में अपनी बुद्धि मत लड़ाओ जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "यदि वे उस प्रकार ईमान लाएं जिस प्रकार तुम ईमान लाए हो तो ही वे सीधे मार्ग पर हैं" (अल बक़रा :१३७)

 

पता चला कि ईमान वैसा ही होना चाहिये जैसे कि रसूल सललेल्लाहु अलैही वसल्लम एवं उनके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम का था और यही ईमान के स्वीकार्यता की शर्त है एवं जो भी उनके पथ से हटा गुमराह(Mislead)होगया जैसे अल्लाह सुब्हानहु तआला कहते हैं "जो व्यक्ति मार्गदर्शन के पथ के स्पष्ट होने के पश्चात भी रसूल का विरोध करे एवं सारे मोमिनों(आस्तिकों) के मार्ग छोड़ कर चले तो हम उसे उधर ही आकर्षित कर देते हैं जिधर वह स्वयं आकर्षित हुआ एवं हम स्वयं उसे नरक में डालें गें" (सूरा निसा :११५), सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम(अल्लाह इन सबसे से प्रसन्न हो) एवं उनके अनुगामी एवं सलफ़ केवल अल्लाह सुब्हानहु तआला के उन्हीं नाम एवं गुणों पर पूर्ण विश्वास रखते थे जो अल्लाह सुब्हानहु ने अपनी किताब(क़ुरआन) में तथा मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) ने अपनी सुन्नत(हदीस) में बताए हैं बिना किसी तहरीफ़(अर्थ बदलना), ताअतील(नकारना), तमसील(उदाहरण देना) और तकयीफं(परिस्थिति बताना) के,

 

सलफ़ : सलफ़ में सबसे पहले सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम(अल्लाह इन सबसे से प्रसन्न हो) आते हैं सलफ़ अर्थात वे लोग जिनको अल्लाह सुब्हानहु तआला ने धर्म की सम्झ एवं उसका ज्ञान प्रदान किया है जो अल्लाह सुब्हानहु एवं रसूल मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम के सच्चे अनुगामी हैं, जिनके ज्ञान एवं मार्ग दर्शक होने पर जाति को विश्वास है, जो लोगों को बिदअत(मनगढ़ंत योजना) से बचाते एवं शुद्ध धर्म पर चलने की ओर बुलाते हैं सलफ़ कहलाते हैं,जैसे कि हम जानते ही हैं कि निश्चयी हमारे मार्ग दर्शक एवं आदर्श व्यक्ति रसूल सललेल्लाहु अलैही वसल्लम हैं तो उनके बाद से लेकर खंयामत(प्रलय) तक जितने भी ऐसे लोग आएं गें सारे सलफ़ में सम्मिलित होंगे हैं इस प्रकार सलफ़ में सबसे पहले सहाबा आते हैं फ़िर वे लोग जो उनके बाद आते हैं एवं जो उनके बाद (सही बुखारी ८: ४३७ , ३ : ८२० ) इसी प्रकार खंयामत तक यह श्रंखला चलते रहेगा जैसे कि रसूल सललेल्लाहु अलैही वसल्लम ने कहा "लोगों में सबसे सर्वश्रेष्ठ युग मेरा है फ़िर वह लोग जो उनके बाद होगें फ़िर वह लोग जो उनके बाद होगें" (सही बुखारी ८: ४३७ , ३ : ८२०,मुस्लिम २५३३ )पता चला कि लोगों में सबसे सर्वश्रेष्ठ लोक सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम(अल्लाह इन सबसे से प्रसन्न हो) थे फ़िर वह लोग जो उनके बाद आए फ़िर वह लोग जो उनके बाद आए।

 

४ महज़ूरात(मनाही)

(अ). तहरीफ़:

अल्लाह सुब्हानहु तआला के नाम एवं गुणों के अर्थ को बदल के उसे दूसरे अर्थ में प्रयोग करना जो कि अल्लाह सुब्हानहु एवं मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) के बतलाए गए अर्थ से अलग हो जैसे जहा कहीं क़ुरआन में अल्लाह सुब्हानहु के हाथ का उल्लेख आया तो कुछ लोगों उसे हाथ ना समझते हुए उससे संतुष्टि(delight) एवं प्रकृति का अर्थ लेते हैं जो कि अनुपयुक्त है क्यूंकि हमें अल्लाह सुब्हानहु तआला के उन्हीं नाम एवं गुणों पर उसी प्रकार पूर्ण विश्वास रखना है जैसे अल्लाह सुब्हानहु ने अपनी किताब(क़ुरआन) में तथा मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) ने अपनी सुन्नत(हदीस) में बताए हैं।

 

(आ). ताअतील: 

अल्लाह सुब्हानहु तआला के नाम एवं गुण जो भी अल्लाह सुब्हानहु ने अपनी किताब(क़ुरआन) में तथा मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) ने अपनी सुन्नत(हदीस) में बताए हैं उन सब को नकारना या उनमें से कुछ को नकारना,ऐसा करना निषिद्ध है एवं भी जो ऐसा करेगा उसका ईमान असंपूर्ण एवं अस्वीकार्य होगा क्यूंकि हमें अल्लाह सुब्हानहु तआला के नाम एवं गुणों पर उसी प्रकार पूर्ण विश्वास रखना है जैसे अल्लाह सुब्हानहु ने अपनी किताब(क़ुरआन) में तथा मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) ने अपनी सुन्नत(हदीस) में बताए हैं।

 

(इ). तमसील:

अल्लाह सुब्हानहु तआला के गुणों को उसकी सृष्टि के गुणों जैसे बताना जैसे कहना कि अल्लाह सुब्हानहु तआला का हाथ हमारे हाथ के प्रकार है एवं इसी प्रकार दुसरे गुणों के सम्बंधित कहना तो ऐसा करना निषिद्ध है एवं जो भी ऐसा करेगा उसका ईमान असंपूर्ण एवं अस्वीकार्य होगा क्यूंकि हमें अल्लाह सुब्हानहु तआला के नाम एवं गुणों पर उसी प्रकार पूर्ण विश्वास रखना है जैसे अल्लाह सुब्हानहु ने अपनी किताब(क़ुरआन) में तथा मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) ने अपनी सुन्नत(हदीस) में बताए हैं।

 

(ई). तकयीफं:

अपनी बुद्धि एवं अनुमान से अल्लाह सुब्हानहु तआला के गुणों का विवरण करना, उसकी स्थिति को विस्तृत करना तो यह निषिद्ध है एवं जो भी ऐसा करेगा उसका ईमान असंपूर्ण एवं अस्वीकार्य होगा क्यूंकि हमें अल्लाह सुब्हानहु तआला के नाम एवं गुणों पर उसी प्रकार पूर्ण विश्वास रखना है जैसे अल्लाह सुब्हानहु ने अपनी किताब(क़ुरआन) में तथा मुहमम्द सललेल्लाहु अलैही वसल्लम(इनपर अल्लाह की रहमत ओर सलामती हो) ने अपनी सुन्नत(हदीस) में बताए हैं।

 

तो यह हुऐ वह ४ मनाही जिससे बचना हर मुस्लमान के लिये अति आवश्यक है, ये ईमान का विनाश करने वाली बातें हैं अल्लाह सुब्हानहु तआला से से प्रार्थना है कि अल्लाह सुब्हानहु हमें सदैव ईमान पर रखे एवं हमें धर्म की उचित समझ प्रदान करे एवं अपने सलफ़ के मार्ग पर चलने वालों में से बनाए। (आमीन या रब्बुल आलमीन)

 

और देखये

अल्लाह सुब्हानहु तआला,ईमान, रसूल सललेल्लाहु अलैही वसल्लम, तौहीद, अस्माए-हुस्ना और अन्य;

 

संदर्भ

शरह उसूलुल ईमान: अश-शेख़ मुहम्मद बिन सालेह अलउस्मैन।

http://www.askislampedia.com/ur/wiki/-/wiki/Urdu_wiki/%D8%A7%D9%84%D9%84%DB%81+%D9%BE%D8%B1+%D8%A7%DB%8C%D9%85%D8%A7%D9%86

 

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